13 दिसंबर, 2001: जब लोकतंत्र के मंदिर पर पांच आतंकियों ने बरसाई थी गोलियां...
आज से ठीक 18 साल पहले 13 दिसंबर को पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने संसद भवन पर हमला किया था। 13 दिसंबर, 2001 को पांच आतंकवादी लाल बत्ती और गृह मंत्रालय का नकली स्टीकर लगी एंबेसडर कार से संसद भवन परिसर में घुसे। जैसे ही यह कार गेट नंबर 12 की तरफ बढ़ने लगी, तभी संसद की सुरक्षा में तैनात एक सुरक्षाकर्मी को इस पर संदेह हुआ। उसके बाद क्या हुआ? आइये, जानते हैं।
30 मिनट तक चली थी गोलीबारी
12 नंबर गेट की तरफ बढ़ रही कार को जब सुरक्षाकर्मियों ने वापस मुड़ने पर मजबूर किया तो यह तत्कालीन उप राष्ट्रपति कृष्ण कांत के वाहन से टकरा गई। टक्कर होते ही आतंकवादी कार से उतरे और गोलियां बरसानी शुरू कर दी। तब तक अलार्म बजा दिया गया था और संसद के सारे दरवाजे बंद कर दिए गए थे। लगभग 30 मिनट तक चली फायरिंग में सभी पांचों आतंकवादी मारे गए। वहीं एक माली और आठ सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए।
हमले के समय संसद में मौजूद थे 100 से ज्यादा सांसद
इस हमले के समय संसद में 100 से ज्यादा सांसद मौजूद थे, लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने अपनी जान पर खेलते हुए उन्हें खरोंच तक नहीं आने दी। हमले में 15 लोग घायल हुए थे।
संसद हमले के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए प्रधानमंत्री मोदी
हमले का जिम्मेदार कौन था?
इस हमले के बारे में बोलते हुए तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने लोकसभा में कहा था, "इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि संसद पर हुए हमले को पाकिस्तान में स्थित और उसके द्वारा समर्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद ने मिलकर अंजाम दिया है।" उन्होंने कहा कि इन दोनों संगठनों को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI का समर्थन प्राप्त है। हमला करने वाले पांचों आतंकी मौके पर मारे गए और उनकी मदद करने वालों को गिरफ्तार किया गया था।
अफजल गुरू समेत चार लोगों की हुई गिरफ्तारी
पुलिस ने आतंकी हमले के संबंध में 13 दिसंबर को FIR दर्ज की। कुछ ही दिनों में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने हमले में इस्तेमाल की गई कार और सेलफोन के रिकॉर्ड्स के जरिए चार लोगों को गिरफ्तार किया। ये मोहम्मद अफजल गुरू, उसके भाई शौकत हुसैन गुरू, उसकी पत्नी अफ्सान गुरू और दिल्ली यूनिवर्सिटी में अरबी पढ़ाने वाले एस ए आर गिलानी थे। कोर्ट ने अफ्सान को रिहा कर दिया और बाकी तीनों को मौत की सजा सुनाई।
2013 में हुई अफजल गुरू को फांसी
हमले के दो साल बाद 2003 में गिलानी को भी रिहा कर दिया गया था। 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने अफजल की मौत की सजा बरकरार रखी, लेकिन शौकत की सजा को कम कर 10 साल कर दिया। 26 सितंबर, 2006 को कोर्ट ने अफजल की फांसी के आदेश जारी किए। अक्टूबर में उसकी पत्नी ने दया याचिका दायर की जिसे खारिज कर दिया गया। 6 फरवरी, 2013 को अफजल गुरू को फांसी दे दी गई।