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    होम / खबरें / मनोरंजन की खबरें / 'द वैक्सीन वॉर' रिव्यू: विषय जोरदार, सितारों का अभिनय भी शानदार; फिर भी चूके विवेक अग्निहोत्री
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    'द वैक्सीन वॉर' रिव्यू: विषय जोरदार, सितारों का अभिनय भी शानदार; फिर भी चूके विवेक अग्निहोत्री
    जानिए कैसे है विवेक अग्निहोत्री की फिल्म 'द वैक्सीन वॉर'

    'द वैक्सीन वॉर' रिव्यू: विषय जोरदार, सितारों का अभिनय भी शानदार; फिर भी चूके विवेक अग्निहोत्री

    लेखन मेघा
    Sep 28, 2023
    03:57 pm

    क्या है खबर?

    बीते दिनों सिनेमाघरों में रोमांस, एक्शन और कॉमेडी से भरपूर कई फिल्में रिलीज हुईं, वहीं अब विवेक अग्निहोत्री कोरोना वायरस की भयावह तस्वीर दर्शाती अपनी फिल्म 'द वैक्सीन वॉर' लेकर पर्दे पर लौटे हैं।

    महामारी के बारे में सभी जानते हैं, लेकिन देश के वैज्ञानिकों ने इससे कैसे जंग लड़ी, यह फिल्म इसी कहानी को पेश करती है।

    आइए जानते हैं वैज्ञानिकों के वैक्सीन बनाने की जद्दोजहद को विवेक पर्दे पर उतारने में कितने सफल रहे।

    कहानी

    इस किताब पर आधारित है फिल्म की कहानी

    'द वैक्सीन वॉर' की कहानी भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के पूर्व महानिदेशक डॉ बलराम भार्गव की किताब 'गोइंग वायरल' पर आधारित है।

    यह फिल्म उन चुनौतियों को दिखाती है, जिनका सामना ICMR और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) के वैज्ञानिकों ने वैक्सीन बनाने के दौरान किया और कैसे 7 महीनों में सफलता प्राप्त की।

    फिल्म देश की उन 70 प्रतिशत महिला वैज्ञानिकों के लिए सबसे बड़ा सम्मान है, जिनका वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया में अहम योगदान रहा था।

    कहानी

    कोरोना वैक्सीन बनाने के पीछे का संघर्ष दिखाती है फिल्म

    'द वैक्सीन वॉर' की शुरुआत 2020 के उस दिन से होती है, जब निमोनिया जैसे वायरस के लक्षण वाले मरीज के सामने आने की खबरें आई थीं।

    इसके बाद कोरोना का पता चलता है और फिर शुरू होती है वायरस से लोगों की जान बचाने वाले देश के असली नायकों की कहानी।

    फिल्म में वैज्ञानिकों के वैक्सीन बनाने के संघर्ष को 12 भागों में बांटा गया है, जिसमें उनके सामने आईं हर चुनौतियों से रू-ब-रू कराया गया है।

    अभिनय

    ICMR के महानिदेशक के किरदार में खूब जचे नाना पाटेकर

    नाना पाटेकर ने फिल्म में ICMR के महानिदेशक डॉ भार्गव का किरदार निभाया है, जो वैक्सीन बनाने वाली टीम का नेतृत्व कर रहे हैं।

    पाटेकर ने अपनी उम्दा अदाकारी से साबित कर दिया है कि वह एक कमाल के अभिनेता हैं और किसी भी भूमिका को आसानी से अपना बना लेते हैं।

    अनुपम खेर एक कैबिनेट सचिव की भूमिका में कुछ ही देर के लिए पर्दे पर नजर आते हैं, लेकिन अपनी छाप छोड़ने में सफल रहते हैं।

    अभिनय

    महिला किरदारों ने भी डाली अपने अभिनय से जान

    फिल्म में पल्लवी जोशी NIV की निदेशक डॉ प्रिया अब्राहम के किरदार में दिखी हैं, जो यूं तो बेहद भावुक हैं, लेकिन जब काम की बारी आती है तो पीछे नहीं हटतीं। एक मलयाली किरदार कैसे हिंदी में बात करेगा, उस लहजे को पल्लवी ने बखूबी पकड़ा है। वह अपने हर भाव को दिखाने में सफल रही हैं।

    निवेदिता भट्टाचार्य, गिरिजा ओक और पत्रकार बनीं राइमा सेन ने भी अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय किया है।

    कमी

    संपादन हो सकता था बेहतर

    फिल्म की शुरुआत धीमी है, इसलिए यह शुरुआत में ही उबाऊ लगने लगती है, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है और वैज्ञानिकों का लोगों की जान बचाने के प्रति जुनून देखता है, यह दर्शकों को लुभाने में कामयाब रहती है।

    हालांकि, बीच-बीच में कुछ सीन बेवजह के लगते हैं और ऐसे में 2 घंटे 42 मिनट की इस फिल्म का अंत तक दर्शकों को बांधे रखना मुश्किल हो जाता है।

    ऐसे में फिल्म में संपादन की कमी बड़ी खटकती है।

    कमी

    यहां भी मात खा गए विवेक 

    फिल्म की सबसे बड़ी कमी इसका एकतरफा कहानी को पेश करना है। विवेक की कोशिश मीडिया संस्थानों को दी गई "टूलकिट" को बेनकाब करना था, लेकिन वह इसमें विफल रहे।

    इसमें एक ही मीडिया संस्थान की पत्रकार (राइमा) को वैक्सीन की नकारात्मक छवि बनाने और फर्जी खबरें छापने के लिए आमादा दिखाया गया है, जो अजीब है।

    दूसरा पक्ष न दिखाए जाने के चलते मन में सवाल आता है कि क्या पूरे मीडिया को ही वैज्ञानिकों पर विश्वास नहीं था?

    दर्द

    नहीं दिखाईं जनता की परेशानियां

    विवेक इस फिल्म को एक बेहतरीन डॉक्यूमेंट्री की तरह बना सकते थे, जिसमें वैज्ञानिकों के परिवार और आम जनता की परेशानी को भी दिखाया जाता।

    हालांकि, निर्देशक ने 2 महिला वैज्ञानिकों की आपबीती बताने के अलावा किसी और को दिखाया ही नहीं।

    वैज्ञानिकों की कहानी कहने में विवेक आम जनता को भूल ही गए। फिल्म में दिखाए गए 5 मिनट के एक सीन को हटा दें तो इसमें कहीं भी जनता के दर्द को नहीं दिखाया गया है।

    दृश्य

    कुछ हिस्से करेंगे भावुक

    विवेक ने फिल्म को वैज्ञानिकों पर केंद्रित किया है। इस फिल्म में राजनीतिक रैलियों पर भी सवाल उठाया गया है।

    फिल्म में कुछ हिस्से ऐसे भी हैं, जो आपको भावुक कर देंगे। खासकार गिरिजा का डिप्रेशन से जूझ रहे बेटे को घर पर छोड़कर काम के लिए जाना और सप्तमी गौड़ा का 3 दिन तक लगातार काम करने के बाद सबके मरने की बात कहना।

    परिणाम

    देखें या न देखें? 

    क्यों देखें?- अगर आप कोरोना को मात देने वाली वैक्सीन और वैज्ञानिकों के इसे बनाने के संघर्ष के बारे में जानना चाहते हैं तो आपको सिनेमाघरों का रुख जरूर करना चाहिए। यह फिल्म बाकी मसालेदार फिल्मों से आपको एक अलग अनुभव कराएगी।

    क्यों न देखें?- अगर आपको मनोरंजन और ड्रामे से भरपूर फिल्में पसंद हैं तो यह आपके लिए नहीं है, वहीं अगर ज्यादा लंबी फिल्में देखने से परहेज करते हैं तो भी इससे दूर ही रहें।

    न्यूजबाइट्स स्टार- 2.5/5

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