#NewsBytesExplainer: जब चप्पल उतारकर फिल्म देखने जाते थे दर्शक, ऐसा रहा भारतीय पौराणिक फिल्मों का सफर
क्या है खबर?
इन दिनों हर तरफ फिल्म 'आदिपुरुष' की चर्चा हो रही है। इस फिल्म में रामायण के चरित्रों से छेड़छाड़ के लिए इसकी खूब आलोचना हो रही है।
निर्माताओं को उलाहना देते हुए दर्शक पुरानी पौराणिक फिल्मों का उदाहरण दे रहे हैं।
भारत में पौराणिक कहानियों पर बनी फिल्मों का हमेशा से विशेष महत्व रहा है, लेकिन नए निर्माता इसे लेकर लापरवाह नजर आ रहे हैं। आज बात करते हैं भारत में पौराणिक फिल्मों के सफर पर।
दादा साहेब फाल्के
पौराणिक फिल्मों से हुई भारतीय सिनेमा की शुरुआत
भारतीय सिनेमा के जनक कहे जाने वाले दादा साहब फाल्के की अधिकांश फिल्में भारतीय पौराणिक कहानियों पर आधारित थीं।
1913 में उन्होंने 'मोहिनी भस्मासुर' बनाई थी। 1917 में उनकी फिल्म 'लंका दहन' आई थी। यानी कि करीब 100 साल पहले पहली बार 'रामायण' पर फिल्म देखने को मिली थी।
इसके बाद उन्होंने 'श्री कृष्ण जन्म', 'सेतुबंधन', 'गंगावतरण' जैसी फिल्में बनाईं।
ऐसे में कहा जा सकता है कि भारतीय सिनेमा की शुरुआत पौराणिक कहानियों के साथ ही हुई थी।
राम राज्य
'राम राज्य' बनी अमेरिका में दिखाई जाने वाली पहली भारतीय फिल्म
1943 की फिल्म 'राम राज्य' अमेरिका में दिखाई गई पहली भारतीय फिल्म बनी थी। इस फिल्म को विजय भट्ट ने बनाया था। इस फिल्म में प्रेम आदिब और शोभना समर्थ ने राम और सीता की भूमिका निभाई थी।
फिल्म को इसलिए भी महत्व मिला क्योंकि उन दिनों आजादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गांधी अक्सर 'राम राज्य' का प्रयोग करते थे।
यह फिल्म इतनी लोकप्रिय हुई कि प्रेम और शोभना की तस्वीरें राम और सीता के रूप में लगने लगीं।
जय संतोषी मां
जय संतोषी मां ने दर्शकों पर डाला अलग प्रभाव
'जय संतोषी मां' उन शुरुआती फिल्मों में शुमार है, जिसने बॉक्स ऑफिस पर इतिहास रचा था।
1975 में आई इस फिल्म में देवी संतोषी और उनकी भक्त सत्यवती की कहानी दिखाई गई थी। कहा जाता है कि इस फिल्म को देखने के लिए लोग सिनेमाघरों के बाहर चप्पल उतारकर जाते थे। इस फिल्म को देखने के बाद लोग संतोषी मां के भक्त बन गए थे।
25 लाख रुपये में बनी इस फिल्म ने करीब 5 करोड़ रुपये कमाए थे।
टीवी
80 के दशक में आया यह बदलाव
80 के दशक में पौराणिक कथाएं बड़े पर्दे से छोटे पर्दे पर शिफ्ट हो गईं।
1987 में दूरदर्शन पर रामानंद सागर की 'रामायण' का प्रसारण शुरू हुआ। इस धारावाहिक की धाक आज तक कायम है। शो में अरुण गोविल राम और दीपिका चिखलिया सीता की भूमिका में नजर आए थे।
1988 में बीआर चोपड़ा ने 'महाभारत' शुरू की। इसके बाद 'श्री कृष्ण', 'विष्णु पुराण', 'ओम नम: शिवाय', जैसे कई पौराणिक धारावाहिक टीवी पर शुरू हुए।
कार्टून
बच्चों के लिए बनीं कई कार्टून फिल्में
2000 और 2010 के दशक में पौराणिक कहानियों ने बड़े पर्दे पर वापसी की। इस बार निर्मताओं ने अपना दर्शक वर्ग बच्चों को चुना और पौराणिक किरदारों पर कई कार्टून फिल्में रिलीज की गईं।
'माई फ्रेंड गणेश', 'बाल हनुमान' जैसे किरदारों पर कार्टून फिल्में बनीं और नई पीढ़ी का रोचक ढंग से इन किरदारों से परिचय हुआ।
इसी दौर में रामायण और महाभारत भी VFX की तकनीक के साथ छोटे पर्दे पर नए सिरे से आने लगे।
प्रेरणा
पौराणिक कहानियों से प्रेरणा लेने लगे निर्माता
बदलते वक्त के साथ निर्माताओं ने पौराणिक कथाओं पर फिल्में बनाने की बजाय इनसे प्रेरणा लेना शुरू किया।
2010 में आई मणिरत्नम की फिल्म 'रावण' की कहानी 'रामायण' के सीता हरण से प्रेरित थी।
इसी साल प्रकाश झा की फिल्म 'राजनीति' बनाई थी। आधुनिक राजनीति की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म की कहानी 'महाभारत' में कौरवों-पांडवों की लड़ाई से प्रेरित थी।
शाहरुख खान की 'रावन' भी राम और रावण की लड़ाई पर आधारित थी।
रचनात्मक
रचनात्मक तरीके फिल्मों में शामिल हो रहीं पौराणिक घटनाएं
नए दौर में निर्माता इन कहानियों पर पूरी फिल्म बनाने की जगह इनकी कुछ घटनाओं और किरदारों को दिलचस्प तरीके से पर्दे पर शामिल कर रहे हैं।
'RRR' में निर्देशक एसएस राजामौली ने बारीकी से राम, सीता और हनुमान के किरदार को अपनी कहानी में शामिल किया था।
इस साल आई फिल्म 'भोला' का स्क्रीनप्ले भी ऐसे लिखा गया कि एक दृश्य में अजय देवगन के माथे पर भस्म, हाथ में त्रिशूल लिए महादेव का रूप ले लेते हैं।
आगामी फिल्में
पौराणिक कहानियों पर ये फिल्में हैं कतार में
पौराणिक कहानियों पर 'आदिपुरुष' के बाद कई फिल्में अभी कतार में हैं।
निर्देशक नितेश तिवारी की 'रामायण' चर्चा में हैं। मधु मंटेना महाभारत पर काम कर रहे हैं।
अलौकिक देसाई की 'सीता: द इनकार्नेशन' में कंगना रनौत सीता की भूमिका में दिखेंगी। उधर, प्रभास और दीपिका पादुकोण की फिल्म 'प्रोजेक्ट के' भी महाभारत की कहानी से प्रेरित है।