#NewsBytesExplainer: 4K में दोबारा कैसे रिलीज की जाती हैं पुरानी फिल्में?
9 जून को बॉलीवुड की यादगार फिल्म 'गदर' दोबारा रिलीज हुई है। यह फिल्म 2001 में रिलीज हुई थी। यह फिल्म एक पूरी पीढ़ी के दिल के करीब है। फिल्म में सनी के संवाद हों या उनका अभिनय, हर कोई इसे दोहराता था। VCR के उस दौर की यह फिल्म अब बड़े पर्दे पर 4K में रिलीज हुई है। फिल्मों को दोबारा रिलीज करना न सिर्फ आर्थिक रूप से मुश्किल है, बल्कि यह तकनीकी रूप से भी जटिल है।
क्यों दोबारा रिलीज की जाती हैं फिल्में?
बीते जमाने की फिल्मों को दोबारा पर्दे पर देखना किसी टाइम ट्रैवल से कम नहीं। फिल्मों के दोबारा रिलीज होने पर अकसर दर्शकों की अच्छी प्रतिक्रिया मिलती है और बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई भी होती है। इस साल वैलेंटाइन्स डे के मौके पर कई पुरानी फिल्में दोबारा दिखाई गईं। किसी खास कलाकार के सम्मान में उनकी फिल्में दोबारा प्रदर्शित की जाती हैं। किसी बड़ी फिल्म के सीक्वल से पहले निर्माता उनके पिछले भाग को फिर से रिलीज करते हैं।
क्या होता है 4K?
4K एक हाई रेजॉल्यूशन फॉर्मैट है। पर्दे पर दृश्यों की स्पष्टता, उसके रेजॉल्यूशन से तय होती है। जिस वीडियो का जितना ज्यादा रेजॉल्यूशन होगा, वह पर्दे पर उतना साफ और स्पष्ट दिखाई देगा। 480p, 720p, 1080p, HD और 4K बढ़ते क्रम में वीडियो के फॉर्मैट होते हैं। बड़े पर्दे पर 4K के अलावा फिल्में 3D, 4DX और IMAX में भी रिलीज होती हैं। इन फिल्मों में ग्राफिक पर भी बारीकी से काम किया जाता है।
क्यों रीमास्टर की जाती हैं पुरानी फिल्में?
वक्त के साथ-साथ फिल्म निर्माण की प्रक्रिया और तकनीक भी बदले हैं। करीब एक दशक पहले तक ज्यादातर फिल्में रील पर बनती थीं। अब हर फिल्म का निर्माण डिजिटल रूप में होता है। सिनेमाघर भी दर्शकों को बेहतरीन सिनेमाई अनुभव देने के लिए आधुनिक तकनीक से लैस हैं। ऐसे में जब कोई पुरानी फिल्म को फिर से रिलीज करना होता है तो सबसे पहले उसके नेगेटिव या प्रिंट को डिजिटल किया जाता है। इसे फिल्मों को रीमास्टर करना कहते हैं।
कैसे होता है पुरानी फिल्मों का डिजिटलीकरण?
फिल्मों को रीमास्टर करने के लिए उसके नेगेटिव की अच्छी तरह से जांच की जाती है। अगर उनपर किसी तरह के स्क्रैच या गंदगी है तो उसे एक खास प्रक्रिया के जरिए हटाया जाता है। इसके बाद नेगेटिव के एक-एक फ्रेम को स्कैन किया जाता है और उनका डिजिटलीकरण होता है। फिल्म के ऑडियो को भी नई तकनीक के जरिए बेहतर किया जाता है। इसके बाद इन्हें एक्सपोर्ट करके कंप्यूटर में सेव कर लिया जाता है।
रंगों और ग्राफिक पर भी होता है काम
आजकल के वीडियो एडिटर के पास ग्राफिक का एक बड़ा हथियार है। एक बार फिल्म रील से कंप्यूटर सॉफ्टवेयर पर आ गई, इसके बाद इसे दुरुस्त करने के लिए इसमें ग्राफिक भी जोड़ा जाता है। हालांकि, विशेषज्ञ असली फिल्म से छेड़छाड़ के ज्यादा पक्षधर नहीं होते हैं। इनके अलावा दृश्यों को बेहतर बनाने के लिए उनके रंगों को भी ठीक किया जाता है। वीडियो एडिटिंग सॉफ्टवेयर पर फिल्मों के एक-एक फ्रेम में रंग एडिट किए जाते हैं।
फिल्मों को सहेजना भी है मकसद
फिल्मों को रीमास्टर सिर्फ इन्हें दोबारा रिलीज करने के लिए नहीं किया जाता है। पुरानी फिल्मों को बचाकर रखने के लिए भी इनके डिजिटलीकरण का काम हो रहा है। फिल्मों के नेगेटिव वक्त के साथ खराब हो जाते हैं। इनके टूटने या खोने का भी डर है। ऐसे में निर्माता अपने प्रोडक्शन हाउस की पुरानी फिल्मों को सहेजने के लिए इनका डिजिटलीकरण करवा रहे हैं। कुछ दिन पहले सत्यजीत रे की यादगार फिल्मों को रिस्टोर करने की खबर आई थी।
कितना मंहगा है यह काम?
फिल्मों के डिजटीलीकरण की लागत इस पर निर्भर है कि फिल्म पर क्या-क्या काम करने की जरूरत है। 1975 की फिल्म 'शोले' को 2014 में 3D में रिलीज किया गया था। इस पर करीब 25 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। हिंदी सिनेमा की यादगार फिल्म 'मुगल-ए-आजम' को 2004 में रंगीन करके रिलीज किया गया था। इस फिल्म को करीब 15-20 करोड़ रुपये में रंगीन किया गया था। ऐसे ही फिल्म 'गदर' पर 2 करोड़ रुपये खर्च किये गए हैं।