#NewsBytesExplainer: रामायण पर 106 साल पहले बनी थी 'लंका दहन'
प्रभास, कृति सैनन और सैफ अली खान की फिल्म 'आदिपुरुष' 16 जून को रिलीज हो गई है। एक बार फिर पर्दे पर रामायण देखने को मिली है, लेकिन आधुनिक, जिसे देख आपका दिमाग चकरा जाएगा। इस फिल्म में जहां प्रभास भगवान राम बने हैं, वहीं कृति माता सीता की भूमिका में हैं। आइए आज हम आपको भारतीय सिनेमा की रामायण पर बनी पहली फिल्म 'लंका दहन' के बारे में बताएंगे, जिसने उस जमाने में जबरदस्त कमाई की थी।
... जब पहली बार पर्दे पर हुए रामायण के दर्शन
'लंका दहन' 1917 में यानी 106 साल पहले आई थी '। तब भारत अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों से बंधा हुआ था। लोगों के पास TV नहीं थे और ना ही तकनीक इतनी बड़ी थी कि फिल्म के डायलॉग सुनाई दें। ऐसे में VFX और एनिमेशन तो दूर की बात है। यह एक मूक फिल्म थी, जिसमें केवल चलचित्र देखे जा सकते थे। बिना आवाज वाली इस फिल्म को हिंदी सिनेमा के जनक दादा साहेब फाल्के ने बनाया था।
कहां से आया फिल्म बनाने का आइडिया?
एक बार फाल्के दौरे पर विदेश गए, जहां उन्होंने ईसा मसीह पर बनी फिल्म देखी। इसे देख उन्हें लगा कि भारत में भी पौराणिक फिल्में बनाई जा सकती हैं। 'राजा हरिश्चंद्र' के बाद उन्होंने 1913 में 'मोहिनी भस्मासुर' और फिर 1917 में 'लंका दहन' बनाई।
भारतीय सिनेमा की पहली 'जुड़वा' फिल्म
आपने डबल रोल वाली फिल्में बड़ी देखी होंगी, लेकिन क्या आप जानते हैं भारतीय सिनेमा की पहली डबल रोल वाली फिल्म कौन-सी थी? आज तमाम तकनीकों की मदद से डबल रोल को शूट और एडिट करना एक मायने में काफी आसान है, लेकिन भारत की पहली डबल रोल वाली फिल्म 'लंका दहन' ही थी। इस फिल्म में अभिनेता अन्ना सालुंके ने भारतीय सिनेमा के इतिहास का पहला डबल रोल किया था। वह फिल्म में राम के साथ सीता भी बने।
सीता के लिए महिला कलाकार को क्यों नहीं लिया गया?
बता दें कि भारतीय फिल्मों में डबल रोल की शुरुआत करने वाले सालुंके पहले कलाकार थे। फाल्के अपनी इस फिल्म में पहले सीता के किरदार के लिए महिला कलाकार तलाश रहे थे, लेकिन उस जमाने में महिलाओं का फिल्मों में काम करना बुरा समझा जाता था, इसलिए महिलाओं के किरदार भी पुरुष ही निभाया करते थे। खास बात यह है कि सालुंके ने फिल्म में राम और सीता दोनों ही किरदारों को अपने उम्दा अभिनय से जीवंत बना दिया था।
फाल्के की फिल्म 'राजा हरिशचंद्र' में सालुंके ही बने थे तारामति
सालुंके इससे पहले फाल्के की फिल्म 'राजा हरिशचंद्र' में तारामति का किरदार निभा चुके थे। इससे उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि फाल्के ने सीता माता भी भूमिका भी उन्हीं को सौंपी। फाल्के एक अभिनेता के तौर पर उन्हें बेहद पसंद करते थे। सालुंके उस दौर के सुपरस्टार थे। वह उस जमाने के सबसे लोकप्रिय अभिनेता और अभिनेत्री दोनों थे। 'लंका दहन' में लोग राम और सीता के रूप में फिल्मी पर्दे पर उनके दर्शन के लिए ही आते थे।
न्यूजबाइट्स प्लस
सालुंके ने अपने 18 साल के फिल्मी करियर में 5 फिल्मों में डबल किरदार निभाए थे और वो सभी महिला किरदार थे। फिल्मों में आने से पहले सालुंके बावर्ची का काम करते थे। हिंदी सिनेमा में उनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण है।
बैलगाड़ियों में भरकर निर्माता तक पहुंचाई जाती थी कमाई
'लंका दहन' देखने के लिए सिनेमाघर के बाहर लंबी कतारें लगी रहती थीं। लोग टिकट के लिए लड़ते थे क्योंकि फिल्म ज्यादातर हाउसफुल रहती थी। सिनेमाघर के बाहर खूब भगदड़ मचती थी। फिल्म लगातार 23 हफ्ते तक सिनेमाघर में लगी रही थी। फिल्म इतिहासकार अमृत गंगार के मुताबिक, टिकट काउंटरों से सिक्कों को बोरियों में इकट्ठा कर निर्माता के ऑफिस तक बैलगाड़ी से पहुंचाया जाता था। 10 दिनों में ही इस फिल्म ने 35,000 रुपये की कमाई कर ली थी।
फिल्म की कमाई से फाल्के ने बनाया शानदार स्टूडियो
1914 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फिल्मों का कारोबार धीमा पड़ गया था। ऐसे में जब 'लंका दहन' 1917 में रिलीज हुई तो यह फिल्म भारतीय सिनेमा के लिए वरदान साबित हुई। इससे पहले फाल्के के पास ओपन एयर स्टूडियो था, लेकिन इस फिल्म ने इतनी कमाई कर डाली थी कि फाल्के ने एक शानदार स्टूडियो बना लिया। कह सकते हैं कि इस फिल्म की कमाई ने भविष्य में बनने वाली भारतीय फिल्मों की नींव रखी।
सिनेमाघर बन गए मंदिर
'लंका दहन' हिंदी सिनेमा की पहली फिल्म थी, जिसने सिनेमाघरों को मंदिर बना दिया। दरअसल, कोई भी शख्स सिनेमाघर के अंदर जूते-चप्पल लेकर नहीं जाते थे। जूते-चप्पल बाहर उतारकर दर्शक सिनेमाघर में कदम रखते थे और पूरा समय हाथ जोड़कर रखते थे। भगवान राम के पर्दे पर आते ही दर्शक उन्हें देख सिर झुकाने लगते थे। पहली बार किसी फिल्म में दर्शकों को रामायण देखने को मिली थी। लिहाजा लोगों ने फिल्म पर जमकर प्यार लुटाया था।
फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी राम के 14 साल के वनवास से शुरू होकर रावण के वध पर खत्म हुई थी। इसमें हनुमान जी का किरदार गणपत शिंदे ने निभाया था। यह फिल्म फाल्के की कलम से निकली थी, जिन्होंने भारत में फिल्मों को जीवन दिया था।