सुपर 30: कमजोर कहानी के साथ ऋतिक की निराशाजनक परफॉर्मेंस, पढ़ें फिल्म का रिव्यु
आजकल बॉलीवुड में लगातार बायोपिक बन रही हैं। अब तक हमें कई बेहतरीन बायोपिक देखने को मिल चुकी हैं। इनके जरिए दर्शकों तक असली नायकों की कहानियां पहुंचती हैं जो उन्हें प्रभावित करती हैं। कई दर्शकों पर इनका इतना असर होता है कि फिल्म के नायक की तरह वे भी अपनी समस्याओं का हल निकालने लगते हैं। इस शुक्रवार एक और बायोपिक 'सुपर 30' रिलीज़ होने जा रही है। आइये, जानते हैं कि यह फिल्म कैसी है।
पटना के मैथमैटिशियन आनंद कुमार पर आधारित है फिल्म की कहानी
'सुपर 30' की कहानी पटना के मैथमैटिशियन आनंद कुमार पर आधारित है। आनंद अपने कोचिंग संस्थान 'सुपर 30' में गरीब बच्चों को IIT की कोचिंग फ्री में देते हैं। इसके लिए उन्हें कई अवॉर्ड भी मिल चुके हैं। हालांकि, उन पर कई तरह के आरोप भी लगे हैं कि वह अपनी कोचिंग द्वारा IIT में सेलेक्ट हुए बच्चों के आंकड़ों के बारे में झूठ बोलते हैं। लेकिन इस बायोपिक में आपको इन सवालों के जवाब नहीं मिलने वाले हैं।
आनंद का एक छात्र लंदन से बताता है अपने सर की कहानी
अब आते हैं फिल्म पर, इसमें आनंद का किरदार निभा रहे हैं ऋतिक रोशन। ऋतिक यानी आनंद की कहानी को उनका एक छात्र रहा फुग्गा नैरेट कर रहा है। लंदन में बैठा फुग्गा कहानी को पहुंचाता है बिहार, जहां होती है ऋतिक की एंट्री। आनंद एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखता है जो सबसेे ज्यादा गणित से प्यार करता है। फिल्म की शुरुआत में ही बीच-बीच में ऋतिक की लव इंटरेस्ट मृणाल ठाकुर की झलक दिखती है।
खराब स्थिति की वजह से नहीं जा पाता कैंम्ब्रिज
आनंद शुरुआत में प्रदेश के शिक्षामंत्री से गोल्ड मैडल लेते दिखता है। इसके बाद शुरू होती है संघर्ष की यात्रा। उसे कैम्ब्रिज में एडमिशन मिल जाता है, लेकिन आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से वह नहीं जा पाता। शिक्षामंत्री उसकी सहायता करने से मना कर देते हैं। अंतत: आनंद के पोस्टमास्टर पिता को यह सदमा बर्दाश्त नहीं होता। इसके बाद आनंद पापड़ बेचने तक के लिए मजबूर हो जाता है। इंटरवल से पहले तक फिल्म की कहानी फास्ट है।
अचानक ही चरित्र का दिखता है दूसरा पहलू!
आनंद को लल्लन सिंह (आदित्य श्रीवास्तव) अध्यापक की नौकरी दिलाता है। इस दौरान आनंद का दूसरा पहलू दिखता है, अचानक गरीब परिवार से आया इंसान गरीब को ही कम पैसे होने पर पढ़ाने से मना कर देता है। अचानक हुए ये परिवर्तन हमारी समझ से तो परे है। फिर अचानक एक रिक्शेवाले की बात से वह पिघलता भी है और ठानता है कि अब गरीब बच्चों को फ्री में पढ़ाएगा। मेकर्स इस ट्रांसफॉर्मेशन को अच्छे से सिंक कर सकते थे!
दूसरे पार्ट में है ओवर ड्रामा
अब इंटरवल के बाद फिर एक बार शुरू होती है आनंद के संघर्ष की कहानी, जिसे फालतू में बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है। इस दौरान क्या ट्विस्ट और टर्न आते हैं यह आपको पूरी फिल्म देखने के बाद ही पता चल पाएगा।
ऋतिक का परफॉर्मेंस करेगा निराश
ये तो हुई कहानी, अब आते हैं स्टारकास्ट के परफॉर्मेंस पर। आनंद बने ऋतिक आपको इसमें निराश करने वाले हैं। बिहारी एक्सेंट को बोलने के चक्कर में वह अपना एवरेज ही दे पाए। वह ना ही आनंद के लुक को और ना ही बिहारी एक्सेंट में ढले हैं। फिल्म के कई शॉट्स में तो शायद वह ये तक भूलते दिख रहे हैं कि उन्हें यहां खुश होना है या फिर रोना है। इसमें पूरी तरह से डायरेक्शन की कमी है!
सपोर्टिंग कास्ट ने डाली फिल्म में जान!
ऋतिक को छोड़कर पूरी सपोर्टिंग स्टारकास्ट ने फिल्म में जान डाली है। मंझे हुए कलाकार पंकज त्रिपाठी (शिक्षामंत्री) अपने डायलॉग और हाव-भाव से भरपूर मनोरंजन करने वाले हैं। पंकज के आते ही स्क्रीन पर जान आती है। वहीं, आदित्य श्रीवास्तव (लल्लन) 'एजुकेशन माफिया' के रूप में आपका दिल जीत लेंगे। लीड अभिनेत्री मृणाल, प्यारी और मासूम अदाओं से आपको मोह लेने वाली हैं। हालांकि, वह स्क्रीन पर ज्यादा दिखाई नहीं देंगी, पर जितनी हैं दिल जीतने के लिए काफी हैं।
फिल्म की सिनेमेटोग्राफी कमाल
फिल्म की कहानी थोड़ी कमजोर है जो यकीनन आपको यह सोचने पर मजबूर करेगी कि क्या यह वाकई बायोपिक है? 'सुपर 30' के डायलॉग्स कमाल हैं। हालांकि, विकास बहल से 'क्वीन' के बाद उम्मीदे काफी थीं, जिस पर वह खरे नहीं उतरे। सिनेमेटोग्राफी भी लाजवाब है। एक सीन में बच्चों की क्लास के दौरान तारीख को दिखाया गया है जहां ब्लैकबोर्ड पर साल 2002 लिखा दिखता है। मालूम हो आनंद ने भी 2002 में अपनी कोचिंग शुरू की थी।
टेलीविज़न इंडस्ट्री के कलाकार फिल्म का हिस्सा
इसके अलावा आनंद के पिता के किरदार में वीरेंद्र सक्सेना, भाई के रोल में नंदीश संधू, रिपोर्टर के रोल में अमित साध और आनंद के कोचिंग में पढ़ने वाले सारे बच्चे अपने आप में ही जबरदस्त अवतार में हैं। एक और गौर फरमाने वाली बात यह भी है कि ऋतिक-पंकज को छोड़कर ज्यादातर अभिनेता टेलीविज़न (मृणाल, नंदीश, वीरेंद्र, अभिजीत) से हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि अभिनय आना चाहिए भले ही मंच कोई भी हो।
अगर आप में है धर्य तो देखने जाएं 'सुपर 30'
फिल्म के संवाद बेहतरीन हैं जैसे 'राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा।' लोग इससे सीख भी ले सकते हैं और परिश्रम पर भरोसा कर सकते हैं। इस प्रेरणा देने वाली कहानी में शिक्षा को व्यापार ना बनाया जाए जैसे पहलुओं पर ज्यादा जोर दिया जाना चाहिए था बजाय की उसमें मेलोड्रामा डालने के। ऐसे में अगर आपमें ढाई घंटे बोर होने का धैर्य है तो आप फिल्म देख सकते हैं। हमने फिल्म को पांच में से दो स्टार दिए हैं।