'मुंबईकर' रिव्यू: उलझन भरी कहानी की भेंट चढ़ी विजय सेतुपति की उम्दा अदाकारी
क्या है खबर?
फिल्म 'मुंबईकर' का भले ही जोर-शोर से प्रमोशन नहीं हुआ, लेकिन विजय सेतुपति के प्रशंसक इससे जुड़े हर छाेटे-बड़े अपडेट पर नजर बनाए हुए थे।
अब आखिरकार उनकी यह फिल्म दर्शकों के बीच आ गई है।
फिल्म 2 जून को जियो सिनेमा पर स्ट्रीम हुई है। खास बात यह है कि ये सेतुपति की पहली हिंदी फिल्म है। संतोष सिवान ने इस एक्शन थ्रिलर फिल्म का निर्देशन किया है।
देखने से पहले जान लीजिए कैसी है 'मुंबईकर'।
कहानी
गैंगस्टर की गलती ने खड़ा किया बखेड़ा
फिल्म की कहानी का मुख्य किरदार सेतुपति का है, जो खुद को 'गैंग्स्टर इन मेकिंग' बताता है। वह गलती से माफिया डॉन के बेटे का अपहरण कर लेता है।
यहां भी कहानी में पेंच तब और फंस जाता है, जब जिस बच्चे को गैंगस्टर ने उठाया होता है, वो रफू चक्कर हो जाता है।
डॉन का किरदार निभाया है रणवीर शौरी ने, जिससे गैंगस्टर ने पंगा लेकर अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मार दी है।
कहानी
कहानी में उलझन की भरमार
फिल्म में अभिनेता विक्रांत मैसी भी हैं। डॉन ने बच्चे का पता लगाने वाले के लिए 1 करोड़ रुपये का इनाम रखा है। विक्रांत का किरदार इसी इनाम को पाने की फिराक में है।
सचिन खेड़ेकर एक पुलिसवाले के किरदार में हैं। इधर भी लोचा है क्योंकि उसकी टीम ने गड़बड़ी में किसी और को पकड़ लिया है। अब अपहरण से और कितना ड्रामा होता है, यह फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा।
अभिनय
सेतुपति अपनी पहली हिंदी फिल्म में रहे विजयी
सेतुपति के अभिनय का अंदाज निराला है, जो उनके प्रशंसकों को खूब भाता है। इस फिल्म में भी उनका वो ही स्टाइल देख आप उन पर फिदा हो जाएंगे।
फिल्म देखने की वजह ही सेतुपति हैं। दक्षिण भारतीय सिनेमा में तो उनकी तूती बोलती ही है और अब अपनी पहली हिंदी फिल्म में भी उन्होंने कमाल कर दिया है।
फिल्म को रफ्तार ही उनकी एंट्री से मिलती है। शुरुआत से लेकर अंत तक केवल वही मूड बनाए रखते हैं।
अभिनय्र्र
कलाकारों में और किसने दिया साथ?
विक्रांत यकीनन एक बेहतरीन कलाकार हैं, लेकिन इस फिल्म में उन्होंने कुछ खास प्रभावित नहीं किया। उनकी भूमिका एक ऐसे शख्स की है, जिसका अपने गुस्से पर जोर नहीं। उनकी ओवर एक्टिंग अखरती है।
तान्या मानिकतला और संजय मिश्रा ने भी बड़ी औसत अदाकारी की।
फिल्म से बॉलीवुड में अपनी पारी शुरू करने वाले हृदु हारून ने दिल जीत लिया। अंडरवर्ल्ड के डॉन बने रणवीर अपने हिस्से में मुस्तैद दिखे, वहीं सचिन भी खाकी वर्दी में अपना असर छोड़ गए।
निर्देशन
कहां हुई निर्देशक से चूक?
सिवान ने अपनी पहली ही फिल्म 'स्टोरी ऑफ टिबलू' से राष्ट्रीय पुरस्कार अपने नाम किया था, लेकिन 'मुंबईकर' को वह रोमांचकारी अंदाज में पेश करने से चूक गए।
कुछेक दृश्य देख लगता है मानों सहायक कलाकार कहानी में जबरदस्ती ठूंस दिए गए हों।
पहला हाफ तो ऐसा है, जो शर्तिया आपको परेशान कर देगा।
फिल्म हंसने-गुदगुदाने के मोर्चे पर भले ही गच्चा नहीं देती, लेकिन उलझनों से लबरेज यह कहानी दिमाग की बत्ती जरूर बुझा देती है।
खामियां
कमियां कम नहीं
फिल्म का पहला हाफ दिल कचोड़ता है। हालांकि, अगर आप सेतुपति के प्रशंसक हैं तो दूसरे हाफ तक पहुंचने की हिम्मत कर ही लेंगे। कहीं-कहीं पर फिल्म की कहानी उबाऊ लगती है। दर्शकों का इससे जुड़ पाना दूर की बात है।
फिल्म में चुस्त संपादन की कमी खलती है।
विजय ने भले ही अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाते हुए 'मुंबईकर' में जान फूंकने की पूरी कोशिश की, लेकिन कमजोर कहानी और लचर निर्देशन ने उनकी धाकड़ अदाकारी पर पानी फेर दिया।
जानकारी
संगीत और सिनेमैटोग्राफी
संगीत से भी फिल्म को गति नहीं मिली। इसका बैकग्राउंड संगीत ऐसा नहीं है, जो जहन में बैठ जाए। दूसरी तरफ सिनेमैटोग्राफर ने मायानगरी यानी मुंबई को अगर और खूबसूरती से कैमरे में कैद किया होता तो यह फिल्म देखने का अनुभव कुछ और होता।
फैसला
देखें या न देखें?
क्यों देखें?- सेतुपति के प्रशंसकों को यह फिल्म कतई निराश नहीं करेगी, लेकिन अगर आप उनके प्रशंसकों में शुमार नहीं हैं तो अपने जोखिम पर यह फिल्म देखें। कहानी की खामियाें को नजरअंदाज कर दिमाग पर ज्यादा जोर न डाला जाए तो इसे आप एक मौका दे सकते हैं।
क्यों न देखें?- एक बढ़िया कहानी या शानदार थ्रिलर फिल्म सोचकर अगर आप 'मुंबईकर' देखने की तैयारी में हैं तो बेशक ठगा हुआ महसूस करेंगे।
न्यूजबाइट्स स्टार- 1.5/5
जानकारी
न्यूजबाइट्स प्लस
'मुंबईकर' तमिल फिल्म 'मानगरम' का हिंदी रीमेक है। छोटे बजट की इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया था। बतौर निर्देशक लोकेश कनगराज की यह पहली फिल्म थी, जिसे तेलुगु में 'नगरम' और मलयालम में 'मेट्रो सिटी' नाम से डब किया गया था।