इसमें न तो डर है और न ही कॉमेडी, अक्षय की 'लक्ष्मी' ने किया निराश
सुपरस्टार अक्षय कुमार की मोस्ट अवेटेड फिल्म 'लक्ष्मी' भी आखिरकार कोरोना वायरस के कारण सिनेमाघरों की बजाय डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज कर दी गई है। फैंस काफी समय से इस फिल्म को लेकर बेहद उत्साहित थे। हालांकि, अगर कोरोना काल न होता तो यह फिल्म मई में ईद पर ही रिलीज हो गई होती। अब दिवाली के मौके पर रिलीज हुई यह फिल्म सुपरहिट दक्षिण भारतीय फिल्म 'कंचना' की हिन्दी रीमेक है। चलिए जानते हैं कैसी है फिल्म।
आसिफ और रश्मि की लव स्टोरी से शुरू हुई कहानी
कहानी हरियाणा, रेवाड़ी के आसिफ (अक्षय कुमार) और रश्मि (कियारा आडवाणी) की है। रश्मि ने परिवार के खिलाफ जाकर एक मुस्लिम लड़के से शादी की थी, इस कारण शादी के तीन साल बाद भी रश्मि के पिता उनसे नाराज हैं। एक दिन अचानक रश्मि की मां का फोन आता है, जो सभी गिले-शिकवे भुलाकर उन्हें आसिफ के साथ अपनी 25वीं सालगिराह पर आमंत्रित करती है। आसिफ फैसला करता है कि अब वह रश्मि के पिता का दिल जीतकर ही रहेगा।
आसिफ की गलती से बदली जिंदगी
आसिफ और रश्मि उनके परिवार से मिलने जा ही रहे होते है कि रास्ते में दोनों गलती से एक ऐसी जगह रुक जाते हैं जिसके कारण दोनों की पूरी जिंदगी बदल जाती है। इसके बाद भी आसिफ जाने-अनजाने कई ऐसी गलतियां करता रहता है जिसके कारण उस पर कई आत्माओं का कब्जा हो जाता है। यहीं से ही आसिफ ऐसी हरकतें करने लगता है जो रश्मि और उसके परिवार के लिए बेहद खौफनाक और हैरान करने वाली होती हैं।
अक्षय के अभिनय ने किया निराश
फिल्म में अक्षय की एंट्री शानदार है। उन्होंने वही किरदार निभाया जो 'कंचना' में राघव लॉरेंस ने निभाया था। जिन लोगों ने 'कंचना' देखी है वह ना चाहते हुए भी अक्षय के अभिनय की तुलना राघव से करने के लिए मजबूर हो जाएंगे। इसका कारण है कि जहां भी वह 'लक्ष्मी' के रूप में दिखे, वहां ऐसा लगता है कि वह राघव को कॉपी करने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि उन्होंने आसिफ की भूमिका को खूबसूरती से निभाया है।
बाकी कलाकार का काम भी औसत रहा
कियारा के पास पिछली फिल्मों की तरह इस बार भी करने के लिए बहुत कुछ नहीं है। हालांकि, उन्हें जितना कहा गया उन्होंने उसे ठीक-ठाक निभाया है। वहीं, शरद केलकर ने फिल्म में 'लक्ष्मी' का किरदार निभाया है। उन्होंने किन्नर की भूमिका को बेहद खूबसूरती से पर्दे पर उतारा है। उनका रोल छोटा और काफी दमदार है। जो दर्शकों पर छाप छोड़ने में कामयाब रहता है। जबकि राजेश शर्मा, आएशा रजा और मनु ऋषि का अभिनय औसत है।
राघव ने दिखाई दक्षिण भारतीय फिल्मों की झलक
फिल्म का निर्देशन राघव लॉरेंस ने किया है, जिन्होंने 'कंचना' सीरीज भी बनाई है। अब शायद यह उनका ही कमाल है कि कलाकारों के एक्सप्रेशन से लेकर फिल्म के सीन्स और डायलॉग्स में भी दक्षिण भारत की झलक साफ नजर आती है। जो लोग दक्षिण भारतीय फिल्में पसंद नहीं करते वह शायद इसे पसंद नहीं कर पाएंगे। ऐसे में राघव को ध्यान रखना होना कि बॉलीवुड और दक्षिण भारतीय फिल्मों के दर्शक बिल्कुल अलग हैं।
फिल्म को और तोड़ रहा है म्यूजिक
फिल्म का संगीत इसे खराब करने के लिए बची-कुची कसर भी पूरी करता है। बेशक गाना 'बुर्ज खलीफा' पहले ही हिट हो चुका है, लेकिन फिल्म में जिस तरह से जोड़ा गया है वह बिल्कुल फिट नहीं बैठता। फिल्म का पहला गाना 'स्टार्ट स्टॉप' भी बहुत बेतुका लगता है। हालांकि, अगर क्लाइमेक्स के गाने की बात करें, जिसे फिल्म के किन्नरों और अक्षय पर फिल्माया गया है वह काफी अहम लगता है।
सिनेमैटोग्राफी
फिल्म में सिनेमैटोग्राफी की बात करें तो वेट्री पलानीसामी ने खासतौर पर हर सीन को डरावना दिखाने की कोशिश की है। वह इसमें कामयाब भी होते हैं। उन्होंने हर दृश्य को और रंग को बारीकी से कैमरे में कैद किया है।
देखें या ना देखें?
इस हॉरर-कॉमेडी फिल्म में कुछ सीन्स ऐसे हैं जो आपको चौंकाएंगे, लेकिन इसमें न तो डर है और न ही अच्छी कॉमेडी। कई जगहों पर लगता है कि जबरदस्ती कॉमेडी बनाने के लिए ऐसे सीन्स और अंग्रेजी संवाद डाले गए हैं। हालांकि, फिल्म में किन्नरों को भी समाज में समान अधिकार का संदेश देने में कामयाब होती है। अगर आप अक्षय के फैन हैं तो यह फिल्म देख सकते हैं। हम इसे पांच में से दो स्टार दे रहे हैं।