#NewsBytesExplainer: क्या होती है शूटिंग के दौरान बूम माइक की भूमिका? जानिए इससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
लाइट... कैमरा... एक्शन... ये शब्द सुनते ही किसी बॉलीवुड फिल्म की शूटिंग शुरू होने का दृश्य सामने आता है। जहां कैमरे का फोकस सितारों पर होता है तो टीम सीन को फिल्माने में लगी होती है। इसके साथ ही सितारों के पास एक शख्स लंबा-सा माइक लिए खड़ा नजर आता है। क्या आपने कभी इस पर गौर किया है? दरअसल, वो शख्स बूम ऑपरेटर कहलाता है और बूम माइक की जिम्मेदारी संभालता है। आइए आज इसके बारे में जानते हैं।
कौन होते हैं बूम ऑपरेटर?
जब भी किसी फिल्म की शूटिंग होती है तो उसके साउंड विभाग में बूम ऑपरेटर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनकी जिम्मेदारी माइक लगाने की होती है। एक अच्छे बूम ऑपरेटर की पहचान होती है कि वो माइक या बूम पोल को कैमरे के फ्रेम में लाए बिना उसे अभिनेता के जितना संभव हो उतना करीब लगाता है। वो कैमरा विभाग, निर्देशक और अन्य प्रोडक्शन टीमों के साथ मिलकर काम करते हैं ताकि सही समय पर माइक को लगाया जा सके।
क्या होता है बूम माइक?
बूम माइक सितारों को बिना माइक लगाए शूटिंग करने की छूट देता है। साथ ही आसपास की आवाजों को दूर कर देता है। ये माइक एक पोल से जुड़ा है, जिसे 'फिशपोल' भी कहा जाता है। इसे बूम ऑपरेटर सीन की जरूरत के हिसाब से सितारों के पास लेकर खड़ा होता है ताकि आवाज रिकॉर्ड हो सके। शूटिंग के दौरान ऑपरेटर इस पोल को घुमाता रहता है ताकि ये सीन में न आए, लेकिन उसके दायरे में बना रहे।
एक निर्देशक के गुस्से के बाद प्रचलन में आया था बूम माइक
1920 तक माइक सेट पर छिपा दिए जाते थे, लेकिन 1928 में हॉलीवुड फिल्म 'बेगर्स ऑफ लाइफ' की शूटिंग के दौरान निर्देशक विलियम ए वेलमैन अपने साउंडमैन से नाराज हो गए। साउंडमैन माइक को स्थिर रखने पर जोर दे रहा था और निर्देशक 2 अभिनेताओं का सड़क पर चलते हुए शॉट लेना चाहते थे इसलिए उन्होंने माइक्रोफोन को झाड़ू के हैंडल पर लगाकर गुस्से में इंजीनियर को इसके साथ चलने कह दिया। इसके बाद ही बूम पोल इस्तेमाल में आए।
ऑपरेटर के लिए जरूरी होती हैं ये बातें
बूम ऑपरेटर की जिम्मेदारी फिल्म निर्माण में काफी पहले शुरू हो जाती है। उन्हें स्क्रिप्ट का ध्यान रखना होता है ताकि जब सीन में अलग-अलग कलाकार बात करे तो वो माइक की स्थिति को आसानी से बदल सके। उन्हें कैमरे के लेंस के बारे में भी समझ रखनी होती है। साथ ही ऑपरेटर का शारीरिक रूप से स्वस्थ होना जरूरी है क्योंकि उन्हें बूम माइक को घंटों तक शूटिंग में स्थिर लेकर खड़ा होना पड़ता है, जिसमें मेहनत लगती है।
इन उपकरणों का होता है इस्तेमाल
एक बूम ऑपरेटर उच्च गुणवत्ता में आवाज रिकॉर्ड करने के लिए विभिन्न ऑडियो उपकरणों का उपयोग करता है। इसमें बाहर शूटिंग के लिए 'शॉटगन माइक्रोफोन' तो अंदर शूटिंग के लिए छोटे 'डायाफ्राम हाइपरकार्डियोइड माइक्रोफोन' का इस्तेमाल होता है। बूम पोल आमतौर पर एल्यूमीनियम से बना होता है, जो 2 से 7 फीट तक बड़ा हो जाता है। इसके अलावा माइक ब्लिंप भी जरूरी है, जो हवा को रोकने वाला कवर है और आसपास के शोर को कम कर देता है।
क्या होते हैं बूम माइक के फायदे?
बूम माइक की मदद से दूर से भी सितारों की आवाज को रिकॉर्ड किया जा सकता है। साथ ही आसपास की आवाजें रिकॉर्ड नहीं होती और पूरा फोकस मुख्य कलाकार पर ही रहता है। बूम माइक ड्रम जैसी मुश्किल आवाजों को रिकॉर्ड करने के लिए भी सबसे सही होते हैं, जिसके लिए सीधे डिजिटल ऑडियो वर्कस्टेशन (DAW) में रिकॉर्डिंग करना मुश्किल हो सकता है। थिएटर में इसका उपयोग करने से कलाकार की आवाज पूरे सभागार में सुनी जा सकती है।
कैसे पकड़ा जाता है माइक?
बूम माइक को पकड़ने का कोई विशेष तरीक नहीं है। ऑपरेटर स्थिति को देखते हुए इसे अपने हिसाब से पकड़ते हैं और जब तक बिना किसी हादसे के सही से आवाज रिकॉर्ड हो रही है, इसे सही तरीका ही माना जाता है। ऑपरेटर की सबसे आम तकनीक होती है कि वो बूम माइक को ऊपर की ओर पकड़कर अभिनेता के पास ले जाए। इसके अलावा लंबे सीन में वे कई बार अपने कंधों पर भी पोल को रख लेते हैं।