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    #NewsBytesExplainer: हिंदी सिनेमा में नायिकाओं का उदय, कैसे टूटा 'नायक प्रधान' हो चले बॉलीवुड का चलन? 
    हिंदी सिनेमा में यूं टूटी 'नायक प्रधान' बॉलीवुड की परिपाटी

    #NewsBytesExplainer: हिंदी सिनेमा में नायिकाओं का उदय, कैसे टूटा 'नायक प्रधान' हो चले बॉलीवुड का चलन? 

    लेखन नेहा शर्मा
    Mar 08, 2024
    01:31 pm

    क्या है खबर?

    हिंदी सिनेमा के हर दौर की नायिकाओं ने अपनी खूबसूरती से दर्शकों को अपना मुरीद बनाया।

    वो बात अलग है कि 50 और 60 के दशक में हीरोइनें हमेशा हाशिये पर रहीं, लेकिन बदलते वक्त के साथ निर्देशकों-लेखकों ने नारी की खूबसूरती को अलग-अलग रंग में ढालना शुरू किया।

    अतीत के पन्नों को पलटकर देखेंगे तो जानेंगे कि बॉलीवुड में महिलाओं के चित्रण में क्या बदलाव आया।

    अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन इसी बदलाव पर एक खास रिपोर्ट।

    हालत

    मूक फिल्मों के दौर में महिलाओं की स्थिति

    आज के समय में कोई भी फिल्म बिना महिलाओं के अधूरी मानी जाती है। हर जगह महिलाओं का अहम योगदान है।

    आज बॉलीवुड में ऐसी कई अभिनेत्रियां और निर्माता-निर्देशक हैं, जो देश ही नहीं, विदेशों में भी अपने हुनर का लोहा मनवा चुकी हैं, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था, जब फिल्मों में काम करने के लिए लड़कियों को समाज के ताने सुनने पड़ते थे।

    मूक फिल्मों के दौर में महिलाओं का किरदार भी अमूमन पुरुष ही निभाया करते थे।

    मशक्कत

    ....जब हीराेइन की तलाश में दर-दर भटके फाल्के

    जब 110 साल पहले दादा साहेब फाल्के ने भारतीय सिनेमा की पहली फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' का निर्माण किया था तो उसमें महिला का किरदार भी पुरुष ने निभाया था। उस वक्त भारतीय सिनेमा की नींव रखी गई थी।

    हीरोइन के लिए फाल्के को खूब पापड़ बेलने पड़े। वह मुंबई की हर गली-कूचे से लेकर लाल बत्ती इलाके तक गए, लेकिन उन्हें कोई अभिनेत्री नहीं मिली। यहां तक की तवायफों ने भी फिल्म में काम करने से मना कर दिया था।

    जानकारी

    पुरुष को ही बनाया गया महिला

    'राजा हरिश्चंद्र' में हरिश्चंद्र की पत्नी रानी तारामति का किरदार अभिनेता अण्णा सालुंके ने निभाया। इसके बाद 'लंका दहन', जो भारत की पहली डबल रोल फिल्म मानी जाती है, इसमें भी अण्णा ने ही राम और सीता दोनों का किरदार निभाया था।

    विरोध

    पहली बार पर्दे पर हुए हीराेइन के दर्शन तो समाज ने किया बेदखल

    जिस समय किसी भी महिला का पर्दे पर आना गिरा हुआ काम माना जाता था, उस दौर में साहस दिखाते हुए दुर्गाबाई कामत ने फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा।

    उनके आने से दूसरी महिलाओं के लिए रास्ते जरूर खुले, लेकिन शादीशुदा और एक बेटी की मां दुर्गाबाई के फिल्मों में आने से हंगामा मच गया था।

    यहां तक कि इस अभिनेत्री को समाज ने भी बेदखल कर दिया था, लेकिन दुर्गाबाई ने सारे मिथक और समाज की बेड़ियां तोड़ डालीं।

    दबदबा

    बदलाव के दौर में इन नायिकाओं ने जमाई धाक

    जिस तरह दुर्गाबाई ने भारतीय सिनेमा की पहली महिला हीरोइन बनकर उस बंदिश को तोड़ा, उसी तरह जद्दनबाई हुसैन ने भी हिंदी सिनेमा की पहली महिला म्यूजिक कंपोजर बनकर इतिहास रच दिया।

    उस बदलते दौर में खतरनाक स्टंट कर महिलाओं ने भारतीय सिनेमा में वीरता को फिर से परिभाषित किया। नायिकाओं के स्टंट करने की नींव 1930 में आस्ट्रेलिया मूल की भारतीय मैरी एन इवांस ने रखी, जो आगे चलकर 'फीयरलेस नादिया' के नाम से जानी गईं।

    योगदान

    इन महिलाओं ने भी बदली हिंदी सिनेमा की तस्वीर

    1980 में जब फिल्म प्रोडक्शन का तकनीकी काम केवल पुरुष करते थे, तब बीआर विजय लक्ष्मी कैमरा और लाइट क्रू में काम करने वाली एशिया की पहली महिला बनीं।

    उधर फातिमा बेगम हिंदी सिनेमा की पहली निर्देशक थीं, जिन्होंने फिल्में निर्देशित भी की, लिखी भी और बनाई भी।

    उमा देवी खत्री हिंदी सिनेमा की पहली कॉमेडियन थीं। जिस जमाने में भारतीय महिलाएं समाज में खुलकर हंस नहीं सकती थीं, उस वक्त उमा ने अपनी कॉमेडी से लोगों को लोटपोट किया।

    बदलवा की बयार

    बॉलीवुड ने उठाई महिलाओं की आवाज

    वो दिन लद गए, जब नायक के इर्द गिर्द ही कहानी का पूरा ताना-बाना बुना जाए या अभिनेत्रियों को रोमांस, आइटम सॉन्ग या फिर हीरो को हमदर्दी देने वाला किरदार दिया जाता रहे।

    महिलाओं के पर्दे पर चित्रण में बदलते वक्त के साथ काफी तब्दीलियां आई हैं और हिंदी फिल्मों में नायिकाओं का उदय हुआ है।

    महिलाओं पर आधारित अब कई ऐसी फिल्में बनने लगी हैं, जिनमें दिखाया गया है कि समाज में एक महिला का योगदान बेहद अहम है।

    बढ़िया कहानियां

    2016 में महिलाओं की कहानियों को अच्छी जगह मिली

    2016 में महिलाओं की कहानियां कहती हुईं ऐसी कई फिल्में आईं, जिन्होंने लैंगिक भेदभाव पर और पितृसत्ता पर करारी चोट की और साबित किया कि आज का सिनेमा काफी बदल चुका है।

    जैसे 'दंगल' में कुश्ती जैसे 'मर्दों' के खेल में पिता का अपनी बेटियों को लाना और लड़कियों के लिए बनाई गईं सामाजिक रीतियों को तोड़ना बड़ी खूबसूरती से दिखाया गया है।

    'कहानी 2', 'नीरजा', 'डीयर जिंदगी', 'पिंक', 'पार्च्ड' और 'की एंड का' जैसी फिल्में भी 2016 में आईं।

    जानकारी

    हाल-फिलहाल आईं इन महिला केंद्रित फिल्माें ने जीता दिल

    हाल-फिलहाल आईं बढ़िया महिला प्रधान फिल्माें में 'गंगूबाई काठियावाड़ी' खूब चर्चा में रही, जिसका दारोमदार संभाल चुकीं आलिया भट्ट को कई पुरस्कार मिले। 'घूमर' और 'मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे' ने भी खूब वाहवाही लूटी। फिलहाल दर्शकों को अनुष्का शर्मा की 'चकदा एक्सप्रेस' का इंतजार है।

    जानकारी

    नए हिंदी सिनेमा में नई स्त्री

    जैसे-जैसे कहानियां स्त्री की तलाश कर रही हैं, नायिकाएं बदल रही हैं। जैसे-जैसे स्त्री की मौजूदगी और उसकी भूमिकाओं का मूल्यांकन होता जाएगा, नई नायिकाएं आती जाएंगी और नायिकाओं का चेहरा और चरित्र बदलता जाएगा, जिसकी आज सख्त जरूरत भी है।

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