Page Loader
'कालीधर लापता' रिव्यू: अभिषेक बच्चन और दैविक बघेला की जोड़ी बेजोड़, पर कहानी कमजोर

'कालीधर लापता' रिव्यू: अभिषेक बच्चन और दैविक बघेला की जोड़ी बेजोड़, पर कहानी कमजोर

Jul 04, 2025
05:51 pm

क्या है खबर?

अभिषेक बच्चन पिछली बार फिल्म 'हाउसफुल 5' में नजर आए थे, जिसमें उनकी काॅमिक टाइमिंग की तारीफ हुई थी। पिछले कई दिनों से वह फिल्म 'कालीधर लापता' को लेकर सुर्खियों में थे, जो अब आखिरकार दर्शकों के बीच आ गई है। फिल्म OTT प्लेटफॉर्म ZEE5 पर स्ट्रीम हो रही है। उनकी इस फिल्म को लेकर दर्शकों का उत्साह तभी बढ़ गया था, जब इसका ट्रेलर रिलीज हुआ था। आइए जानतें हैं कैसी है अभिषेक की ये नई फिल्म।

कहानी

कालीधर के जीवन के आसपास घूमती है कहानी

फिल्म कालीधर (अभिषेक) के इर्द-गिर्द बुनी गई है, जो अपने भाई-बहनों को पाल-पोसकर बड़ा करता है, लेकिन उसकी बीमारी का पता चलते ही घरवाले प्रॉपर्टी के लालच में उसे कुंभ में छोड़ आते हैं। जब कालीधर को पता चलता है कि उसके परिवारवाले इलाज कराने के बजाय उसे छोड़ना चाहता है तो वह खुद उनसे दूर चला जाता है। फिर उसकी मुलाकात एक अनाथ बच्चे बल्लू (दैविक बघेला) से होती है और उसकी जिंदगी पूरी तरह से बदल जाती है।

अभिनय

अदाकारी में अव्वल नंबर रहे अभिषेक और दैविक

अभिषेक ने अपने किरदार के साथ पूरा इंसाफ किया है। उन्हें इसके लिए सम्मान सहित उतीर्ण किया जा सकता है। उधर 8 साल के दैविक कमाल कर गए हैं। उनके उम्दा अभिनय से उनका किरदार बोल उठता है। फिल्म के सबसे बड़े सरप्राइज दैविक हैं, जो अभिषेक के आगे कहीं भी उन्नीस साबित नहीं होते। दैविक और अभिषेक की केमिस्ट्री इस फिल्म की जान है। उधर निमरत कौर और जीशान अयूब की भूमिका को खिलने का मौका ही नहीं मिला।

निर्देशन

निर्देशक ने किया निराश

'कालीधर' तमिल फिल्म 'KD' का हिंदी रीमेक है। निर्देशक मधुमिता ने हुबहू वही कहानी हिंदी दर्शकों के लिए परोस दी। किरदार, भाषा और उम्र बदली है। निर्देशक सहायक कलाकारों को सही किरदारों में ढालने में असफल रहीं। कहानी बेहद कमजोर। ऊपर से पटकथा उससे भी लचर। निर्देशन देख लगता है कि मधुमिता को अभी कई पाठशालाओं में हाजिरी लगानी पड़ेगी। कुल मिलाकर उन्होंने बस 'KD' का 'कालीधर' किया है। एक अच्छी मनोरंजक हिंदी फिल्म बनाने से वह चूक गई हैं।

कमियां

और क्या हैं कमियां?

अभिषेक और दैविक पर फोकस करने के चक्कर में जीशान अयूब जैसे बाकी किरदारों को जाया कर दिया गया है। मनोरंजन की कमी खलती है। संवाद भी बहुत चलताऊ किस्म के हैं। लेखन के मोर्चे पर भी फिल्म कमजोर है। अच्छा हुआ कि इसे सीधे OTT पर लाया गया, क्योंकि इसे टुकड़ों-टुकड़ों में ही देखा जा सकता है। ये 2 घंटे पकड़कर बिठाने वाली फिल्म नहीं है। दरअसल, फिल्म का बीज ही इतना कमजोर है कि बस क्या कहा जाए..!

निष्कर्ष

फिल्म देखें या ना देखें?

क्यों देखें?- फिल्म देखने की बड़ी वजह अभिषेक और दैविक का अभिनय है। उनके अलावा फिल्म में देखने लायक कुछ भी नहीं। खाली बैठे हैं तो इसे एक मौका दे सकते हैं। क्यों न देखें?- 1 घंटे 50 मिनट की इस फिल्म का एक भी सीन ऐसा नहीं है, जो यूं लगे कि मूल तमिल फिल्म से कुछ अलग सा है या कि उत्तर भारत के दर्शकों को कुछ नया अनुभव देता हो। न्यूजबाइट्स स्टार- 1.5/5