'अकेली' रिव्यू: ISIS के चंगुल में फंसी लड़की के संघर्ष की कहानी, नुसरत ने संभाली जिम्मेदारी
क्या है खबर?
नुसरत भरूचा हर फिल्म के साथ खुद को एक बेहतरीन अदाकारा साबित करती जा रही हैं।
पिछली बार वह फिल्म 'जनहित में जारी' में सामाजिक मुद्दे पर बात करती नजर आई थीं तो अब वह अपनी महिला प्रधान फिल्म 'अकेली' के साथ वापस लौटी हैं।
इस बार नुसरत एक ऐसी लड़की की कहानी लाई हैं, जो अपने परिवार की जिम्मेदारियों के बोझ के तले दबी हुई है, लेकिन संघर्ष करने से पीछे नहीं हटती।
आइए जानते हैं कैसी है फिल्म।
कहानी
परिवार को कर्ज से मुक्ति दिलाने की संघर्ष से भरी कहानी
'अकेली' पंजाब की ज्योति (नुसरत) की कहानी है, जो अपने परिवार के सिर से कर्ज का बोझ हल्का करना चाहती है।
इसके लिए उसे नौकरी की तलाश है, जो इराक के मोसुल शहर में कपड़े के एक कारखाने में जाकर पूरी होती है।
ज्योति इराक के राजनीतिक माहौल से अवगत होने के बावजूद घर झूठ बोलकर मोसुल नौकरी करने चली जाती है।
वहां उसकी मुलाकात रफीक (निशांत दहिया) से होती है, लेकिन वह युद्धग्रस्त क्षेत्र में फंस जाती है।
कहानी
शुरू होती है वापस देश लौटने की जद्दोजहद
एक ओर ज्योति ISIS और इराक के बीच हो रही जंग में फंस गई है, वहीं उसे वापस अपने देश आना है।
हालांकि, ISIS कमांडर उसे बंदी बना लेता है और उसका यौन शोषण करने की कोशिश होती है।
इसके बाद ज्योति की ISIS से चंगुल से निकलकर वापस अपने देश, मां के पास आने की जद्दोजहद शुरू होती है।
अब ज्योति इराक से वापस अपने देश लौटती है या नहीं, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
अभिनय
हर भाव को दर्शाने में कामयाब रहती हैं नुसरत
'अकेली' का भार नुसरत के अपने कंधों पर बखूबी उठाया है। चाहे घबराना हो, नौकरी ढूंढने की बेचैनी हो या सुरक्षित अपने घर वापस लौटने की जिद, वह ज्योति के हर भाव को ईमानदारी के साथ दर्शाने में सफल रही हैं। नुसरत ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी संभाली है।
रफीक के किरदार में निशांत दहिया अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे हैं। नुसरत के साथ उनके प्यार की शुरुआत भी अच्छी है, वहीं सहायक कलाकारों का प्रदर्शन भी बढ़िया है।
कमियां
सिनेमैटोग्राफी शानदार, लेकिन रह गईं ये कमियां
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी का जिम्मा पुष्कर सिंह पर है, जिसे उन्होंने उज्बेकिस्तान में मोसुल को दिखाकर उम्दा तरीके से निभाया है, वहीं ड्रोन फोटोग्राफी भी दमदार लगती है।
हालांकि, फिल्म देखते समय कई जगह पर खिंचाव महसूस होता है और ऐसे में इसके संपादन में कमी खटकती है। ऐसा लगता है कि इसकी अवधि थोड़ी छोटी की जा सकती थी।
फिल्म का संगीत भी कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाया है और दमदार संवादों की भी कमी नजर आती है।
निर्देशन
निर्देशक प्रणय मेश्राम की कोशिश शानदार
'क्वीन' और 'कमांडो 3' जैसे फिल्मों में बतौर सहायक निर्देशक काम करने वाले प्रणय मेश्राम ने 'अकेली' के साथ निर्देशन में शुरुआत की है।
इस फिल्म के साथ उन्होंने अपनी छाप छोड़ने की पूरी कोशिश की और इसलिए वह तारीफ के काबिल हैं।
हालांकि, कॉन्सेप्ट अच्छा होने के बाद भी कमजोर स्क्रिप्ट के चलते वह ज्यादा कुछ नहीं कर पाए हैं।
इसी वजह से उनकी यह थ्रिलर फिल्म दर्शकों को आखिर तक अपने साथ बांधे रखने में असफल रहती है।
कमियां
कुछ सीन लगते हैं अटपटे
फिल्म में कुछ ऐसे सीन हैं, जो थोड़े अटपटे से लगते हैं। जैसे ज्योति का सैकड़ों हथियारबंद आतंकवादियों के बीच से भागने में सफल हो जाना थोड़ा अविश्वसनीय है।
एक आतंकी को गोली से छलनी करने के बाद भी उसकी मौत न होना और एक ही बटन से ही पूरे हवाई अड्डे की लाइट बंद कर देना समझ में नहीं आता।
फिल्म को स्क्रिप्ट के स्तर पर थोड़ा और विकसित करने की जरूरत थी।
निष्कर्ष
देखें या नहीं देखें?
क्यों देखें?- 'अकेली' को नुसरत के शानदार अभिनय के लिए देखा जा सकता है। साथ ही अगर आप महिला प्रधान फिल्मों के शौकीन हैं तो यह आपके लिए अच्छी साबित होगी।
क्यों नहीं देखें?- अगर आपको गंभीर मुद्दों पर बनी फिल्में पसंद नहीं है तो इसे छोड़ा जा सकता है। वैसे फिल्म में कुछ नयापन भी नहीं है, इसलिए आप अपने पैसे खर्च न करके इसके OTT पर आने का इंतजार भी कर सकते हैं।
न्यूजबाइट्स स्टार- 2.5/5