'गैसलाइट' रिव्यू: विक्रांत मैसी हैं इस फिल्म को देखने की इकलौती वजह
पिछले काफी समय से फिल्म 'गैसलाइट' चर्चा में थी और अब आखिरकार यह फिल्म रिलीज हो गई है। यह 31 मार्च को डिज्नी+ हॉटस्टार पर स्ट्रीम हुई है। फिल्म इसलिए खास है, क्योंकि इसमें सारा अली खान मुख्य भूमिका में हैं, वहीं विक्रांत मैसी और चित्रांगदा सिंह भी इसमें अहम भूमिका निभा रहे हैं। फिल्म के निर्देशन की बागडोर पवन कृपलानी ने संभाली तो प्रोडक्शन का काम रमेश तौरानी ने संभाला है। फिल्म देखने से पहले जानें कैसी है 'गैसलाइट'।
पिता के कत्ल का राज ढूंढतीं मीशा
कहानी व्हीलचेयर पर बैठी राजकुमारी मीशा (सारा) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो 15 साल बाद अपने पिता की गुजारिश पर मायागढ़ महल लौटती है। हालांकि, वहां उसे पता चलता है कि उसके पिता लापता हैं। उसकी सौतेली मां रुक्मिणी (चित्रांगदा) शक के घेरे में है, जो उसे समझाती है कि उसके पिता कुछ दिन के लिए बाहर गए हैं। मीशा को लगता है कि उसके पिता का कत्ल हुआ है और वह हत्या का राज खोजने में जुट जाती है।
क्या अपने मिशन में कामयाब हो पाएगी मीशा?
इसी बीच मीशा की मुलाकात कपिल (विक्रांत) से होती है, जो राजा साहब का विश्वासपात्र कर्मचारी था, लेकिन उनकी निजी जिंदगी से अनजान था। अब दोनों मिलकर पता लगाने की कोशिश करते हैं कि आखिर राजा साहब के साथ हुआ क्या? मीशा को इस दौरान कई चुनौतियों और धमकियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन वह सच जानने के लिए प्रतिबद्ध है। अब अपने इस मिशन में मीशा कामयाब होगी या नहीं, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
बेअसर रहीं सारा
सारा ने निराश किया है। इससे बेहतर अभिनय उन्होंने अपनी पिछली फिल्म 'अतरंगी रे' में किया था। दरअसल, सारा पूरी फिल्म में एक तरह के हाव-भाव लेकर चलती हैं। ट्रेलर देख लग रहा था कि फिल्म में उनकी अदाकारी का ऊंचा आसमान देखने को मिलेगा, लेकिन एक बेबस और गंभीर किरदार में उन्हें सोच पाना भी मुश्किल है। सारा फिल्म की कमजोर कड़ियों में से एक हैं। भावुक दृश्यों में कई जगह उनकी अदाकारी की कमजोरियां साफ झलकती हैं।
विक्रांत ने बचाई मंद पड़ी 'गैसलाइट' की रोशनी
विक्रांत का अभिनय साबित करता है कि वह अपनी पीढ़ी के प्रतिभाशाली कलाकारों में से एक हैं। एक हिली हुई कथा-पटकथा को उन्होंने ढेर होने से बचाने की पूरी कोशिश की। अच्छे और बुरे आदमी का किरदार उन्होंने बखूबी पर्दे पर उतारा। उनकी डायलॉग डिलिवरी कमाल की है। खासकर फिल्म के क्लाइमैक्स में विक्रांत दिल जीत लेते हैं। चित्रांगदा अपने मिजाज और अंदाज से अपनी भूमिका में जंचती हैं। राहुल देव और अक्षय ओबेरॉय का काम भी ठीक-ठाक है।
निर्देशन से भटके कृपलानी
'रागिनी MMS' और 'फोबिया' जैसी फिल्में बना चुके कृपालानी ने एक यादगार थ्रिलर फिल्म देने की पूरी कोशिश की, लेकिन यह कमजोर पटकथा की भेंट चढ़ गई। ऐसा लगता है मानो कृपलानी बस फिल्म के विषय में ही हैं, निर्देशन से वह लापता दिखे हैं। कृपलानी और नेहा वीणा शर्मा की कलम से निकली इस कमजोर कहानी में दिखाई गईं घटनाओं में नयेपन की कमी भी खलती है, वहीं पहले हाफ में ही आगे की कहानी पता चल जाती है।
संगीत और सिनेमैटोग्राफी
फिल्म का संगीत शोर और परेशान करता है। फिल्म को अच्छा लुक देने की जिम्मेदारी कैमरामैन की होती है और अच्छी बात है कि वह अपनी जिम्मेदारी निभाने से नहीं चूके। फिल्म के दृश्य पूरा समय सीट पर बैठे रहने की हिम्मत देते रहते हैं।
कई हैं कमियां
फिल्म की सबसे बड़ी कमी है पटकथा, जो बेजान है। दूसरा संपादन चुस्त नहीं है। पहले हाफ में तो रफ्तार इतनी धीमी है कि उबासी आने लगती है। कहने को यह मिस्ट्री थ्रिलर है, लेकिन इसका रोमांच बिल्कुल नहीं चौंकाता। दरअसल, रहस्य और रोमांच का पुराना फॉर्मूला इसमें परोसा गया है। कई दृश्य बड़े बचकाने लगते हैं। फिल्म में सारा तो अखरी हैं ही, क्योंकि 'केदारनाथ' और 'अतरंगी रे' जैसी फिल्मों के बाद उनसे और अच्छा करने की उम्मीद थी।
फिल्म देखें या न देखें?
क्यों देखें?- अगर आपके पास डिज्नी+ हॉटस्टार का सब्सक्रिप्शन पहले से ही है तो टाइमपास और विक्रांत के लिए आप इसे एक मौका दे सकते हैं। क्यों न देखें?- अगर रोमांच के लालच में फिल्म देखने की सोच रहे हैं तो निराशा हाथ लगेगी। नया सब्सक्रिप्शन लेकर तो फिल्म न ही देखें। कुल मिलाकर हम कहेंगे, "ये फिल्म नहीं आसां बस इतना समझ लीजे...।" न्यूजबाइट्स स्टार: 5 में 1.5 स्टार।