'ऐ वतन मेरे वतन' रिव्यू: सारा अली खान ने किया निराश, स्पर्श बने फिल्म की जान
क्या है खबर?
बॉलीवुड में हर साल देशभक्ति की भावना से लबरेज कई फिल्में रिलीज होती हैं। कुछ फिल्में लोगों के दिलों में छाप छोड़ने में सफल रहती हैं तो कुछ उन्हें निराश कर जाती हैं।
अब काफी समय से सारा अली खान की फिल्म 'ऐ वतन मेरे वतन' सुर्खियों में थी, जो 21 मार्च को अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हो गई है।
आइए जानते हैं कि स्वतंत्रता सेनानी उषा मेहता की कहानी पर्दे पर लाने में सारा कितनी सफल रही हैं।
कहानी
क्या है फिल्म की कहानी?
ये कहानी एक जज (सचिन खेडेकर) की बेटी उषा (सारा) की है, जिसके दिल में बचपन से ही आजाद भारत का सपना पल रहा है।
बचपन में वह पिता के खिलाफ नहीं जा पाती तो कॉलेज में पहुंचते ही वह आजादी के लिए कांग्रेस के साथ जुड़ जाती है।
उषा का आजादी का सपना इतना अडिग है कि वह महात्मा गांधी की विचारधारा से प्रभावित होकर ब्रह्मचर्य अपना लेती है।
इतना ही नहीं, वह अपना घर तक छोड़ देती है।
विस्तार
रेडियो से किया देशवासियों को एकजुट
इधर, उषा अपने दोस्तों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने को तैयार है तो दूसरी ओर कांग्रेस के नेताओं की गिरफ्तारी हो जाती है।
ऐसे में उषा, फहाद (स्पर्श श्रीवास्तव) और कौशिक (अभय वर्मा) के साथ अपना एक अंडरग्राउंड रेडियो शुरू करती है।
ये रेडियो अंग्रेजों के पसीने छुड़ा देता है तो देशवासियों के दिलों में फिर से आजादी के लिए लड़ने का जज्बा पैदा करता है।
ऐसे में यह रेडियो देश की आजादी में अहम योगदान देता है।
अभिनय
सारा की अदाकारी नहीं दिखा सकी कमाल
कई बार जब फिल्म की कहानी लड़खड़ाती है तो कलाकारों का प्रदर्शन उसमें जान फूंक देता है, लेकिन यहां ऐसा नहीं हो पाया है।
सारा के पास खुद को साबित करने का शानदार मौका था, लेकिन वह इसमें बुरी तरह विफल रही हैं।
सारा के बोलने के तरीके को देखकर आपको फिल्म 'लव आजकल' का उनका डायलॉग, 'तुम मुझे तंग करने लगे हो...' याद आ जाएगा।
ये कहना गलत नहीं होगा कि सारा का प्रदर्शन इसकी सबसे कमजोर कड़ी है।
प्रदर्शन
स्पर्श का दिखा अद्भुत प्रदर्शन
सारा अपनी छाप छोड़ने में असफल रही हैं तो वेब सीरीज 'जामताड़ा' और फिल्म 'लापता लेडीज' में अपनी अदाकारी से वाहवाही बटोरने वाले अभिनेता स्पर्श श्रीवास्तव एक बार फिर छा गए हैं। फहाद के किरदार में स्पर्श ने साबित कर दिया है कि वह एक बेहतरीन कलाकार हैं, जो हर भूमिका को आसानी से अपना बना लेते हैं।
इमरान हाशमी का राम मनोहर लोहिया के किरदार में कैमियो अच्छा है तो बाकी सभी साथी कलाकारों का प्रदर्शन भी ठीक-ठाक है।
निर्देशन
निर्देशन के साथ लेखन में भी चूके कन्नन अय्यर
करण जौहर की धर्माटिक एंटरटेनमेंट के बैनर तले बनी इस फिल्म का निर्देशन कन्नन अय्यर किया है।
उन्होंने दारब फारूकी के साथ इसके लेखन की जिम्मेदारी भी उठाई है, जिसमें वे कई जगह चूक गए हैं।
फिल्म में कई सीन ऐसे है, जिन्हें देखकर लगता है कि अगर सही तरीके से लिखा जाता और फिर फिल्माया जाता तो वह एक अलग छाप छोड़ते।
ऐसे में 2013 में फिल्म 'एक थी डायन' के बाद वापसी करने वाली अय्यर निराश करते हैं।
कमियां
इन दृश्यों में फूंकी जा सकती थी जान
सारा के बुर्का पहनकर मस्जिद में जाने वाले सीन को छोड़ दिया जाए तो कोई भी ऐसा दृश्य नहीं है, जिसे देखकर आपको लगेगा कि वाह, ये शानदार है।
ब्रह्मचर्य लेने के बाद उषा की अपने दोस्त कौशिक से बातचीत में कौशिक तो निखरकर सामने आते हैं, लेकिन उषा बनीं सारा निराश करती हैं।
इतना ही नहीं पिता के साथ भावुक दृश्य भी दर्शकों को जोड़ नहीं पाते, वहीं रेडियो बनाने की जद्दोजहद को दिखाने में भी कमी खलती है।
गाने
संगीत में भी नहीं दिखा जोश
अमूमन देशभक्ति पर बनी फिल्मों में जोशीला संगीत होता है, जो दर्शकों में जोश भरता है।
हालांकि, 'ऐ वतन मेरे वतन' संगीत के मामले में कोई कमाल नहीं कर सकी है। इसका बैकग्राउंड स्कोर कतई प्रभावशाली नहीं हैं।
फिल्म का पहला हिस्सा काफी धीमी गति से आगे बढ़ता है और बोर करने लगता है, लेकिन दूसरे हिस्से में रेडियो के आने से कुछ मजा आता है।
हालांकि, खराब प्रदर्शन और कमजोर कहानी के चलते फिल्म अपना असर नहीं डाल पाती।
निष्कर्ष
देखें या नहीं देखें फिल्म?
क्यों देखें?- अगर आप सारा के प्रशंसक हैं तो एक बार इस फिल्म को देख सकते हैं, लेकिन इसे देखने की असली वजह स्पर्श का काबिल-ए-तारीफ प्रदर्शन ही है।
क्यों न देखें?- फिल्म कई मौकों पर आपका ध्यान भटकाती है, जिस कारण आप इससे जुड़ाव महसूस नहीं करते। यह देशभक्ति की भावना जगाने में भी असफल रहती है। ऐसे में अगर आप बोर नहीं होना चाहते तो इससे दूरी बनाना ही बेहतर विकल्प होगा।
न्यूजबाइट्स स्टार- 2/5