'फुकरे 3' रिव्यू: 'फुकरों' की कॉमेडी के साथ माफिया के काले कारनामे दिखाती फिल्म
चर्चित कॉमेडी फ्रैंचाइज 'फुकरे' की तीसरी किश्त 'फुकरे 3' 28 सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फिल्म की रिलीज कई बार टल चुकी थी और प्रशंसक एक बार फिर से 'फुकरों' की मस्ती को देखने का इंतजार कर रहे थे। साथ ही फिल्म में अली फजल के होने या न होने को लेकर दर्शकों में उत्सुकता बनी हुई थी। जानिए, कैसी है निर्देशक मृगदीप सिंह लांबा की यह फिल्म।
पुराने किरदारों के साथ आगे बढ़ी कहानी
कहानी पुराने किरदार हनी, लाली, चूचा, पंडित और भोली पंजाबन के साथ आगे बढ़ती है। भोली पंजाबन दिल्ली जल माफिया के काले धन का इस्तेमाल करके दिल्ली विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरती है। वह अपने चुनाव प्रचार का जिम्मा फुकरों को देती है। प्रचार के दौरान जनता भोली को छोड़कर चूचा (वरुण शर्मा) की दीवानी हो जाती है। इसके बाद फुकरे अपनी ओर से चूचा को चुनाव में भोली के सामने खड़ा कर देते हैं।
कॉमेडी के साथ दिखाए जल माफियाओं के काले कारनामें
इस चुनावी घमासान के बहाने फिल्म दिल्ली में पानी की किल्लत और जल माफियाओं के काले कारनामों को प्रमुखता से दिखाती है। इस गंभीर विषय के साथ किरदारों की 'फुकरापंती' कॉमेडी का डोज देती है। जहां पिछली फिल्मों में चूचा को चमत्कारिक तौर पर सपने और डेजा वू (आभास) होते हैं, वहीं इस फिल्म में उसे फिर से ईश्वर से एक नया वरदान मिला है, जो कहानी में अहम मोड़ साबित होता है।
कलाकारों ने पकड़ी दर्शकों की नब्ज
फिल्म में कलाकारों का अभिनय और उनकी कॉमिक टाइमिंग ही इस फिल्म की खासियत है। फिल्म का केंद्रीय किरदार चूचा का है और पर्दे पर अधिकतम बार वही नजर आते हैं। चूचा दर्शकों को फिल्म से पूरी तरह जोड़ कर रखता है। पंकज त्रिपाठी अपने हाव-भाव से ही दर्शकों को लोटपोट करते हैं। पुलकित सम्राट और मनजोत सिंह का अभिनय भी खूब हंसाता है। एक बार फिर से ऋचा चड्ढा भोली पंजाबन के रौब में दिखाई दीं।
गंभीरता और हास्य में संतुलन नहीं बना सकी फिल्म
फिल्म शानदार हास्य दृश्यों के साथ शुरू होती है, दूसरे भाग में भावुक हो जाती है और आखिर में इस सबका मेल। फिल्म में जल माफियाओं की क्रूरता, राजनीति में काला धन और दिल्लीवासियों की परेशानी, सबकुछ रखा गया है, लेकिन इनका संतुलित मिश्रण न होने से फिल्म पटरी से उतर जाती है। फिल्म हास्य और विज्ञान का भी असफल मिश्रण करने की कोशिश करती है। फिल्म में कई तर्कहीन मोड़ आते हैं, जो परेशान करने वाले हैं।
इन बातों ने भी किया परेशान
फिल्म में गंभीरता और हास्य का बेमेल प्रदर्शन परेशान करता है। हास्य के नाम पर चूचा की बातें कई बार बिना सिर-पैर की हो जाती हैं। ऐसे में यह फिल्म उन्हें ही पसंद आएगी, जो इस किरदार और इस फ्रैंचाइज के प्रशंसक हैं। इन विसंगतियों के बीच कलाकारों का अभिनय ही दर्शकों को बांधकर रखता है, वहीं इसके कई संवाद हंसाने में कामयाब रहते हैं। फिल्म का संगीत इसके 'फुकरापंती' को मजबूत करने वाला है।
देखें या न देखें?
क्यों देखें?- फिल्म के सभी कलाकारों की कॉमेडी उम्दा है। खासकर, पंकज त्रिपाठी को पर्दे पर जितना देखो, उतना कम लगता है। फिल्म हास्य के साथ दिल्ली की राजनीतिक समस्याओं को भी दिखाती है। क्यों न देखें?- यह फिल्म युवाओं, खासतौर से 'फुकरे' फ्रैंचाइडज के प्रशंसकों को ही पसंद आएगी। बिना ठोस कहानी के ढाई घंटे की यह फिल्म काफी लंबी लगती है। न्यूजबाइट्स स्टार - 2.5/5
अली फजल का कैमियो
पिछली फिल्मों में अली फजल मुख्य भूमिका में नजर आए थे। इस बार फिल्म में उनकी अनुपस्थिति खलती है। दर्शकों को उनके कैमियो का इंतजार था। निर्देशक ने प्रशंसकों की यह तमन्ना पूरी की या नहीं, यह जानने के लिए फिल्म अंत तक देखनी होगी।