आजादी के बाद से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कैसा रहा है भारतीय रुपये का प्रदर्शन?
भारत आज स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। इसी तरह वह अगले 25 सालों में अपने आर्थिक विकास को तेजी से बढ़ाने के मुहाने पर खड़ा है। हालांकि, वर्तमान में भारतीय रुपये में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले बड़ी गिरावट आ चुकी है और इसका मूल्य एक डॉलर के मुकाबले 75 रुपये पर पहुंच गया है। यह पिछले 75 सालों में सबसे बड़ी गिरावट है। आइये जानते हैं कि 1947 के बाद भारतीय रुपये का प्रदर्शन कैसा रहा है।
रुपये की गिरावट के क्या है मायने?
भारतीय रुपया जुलाई में डॉलर के मुकाबले 80 रुपये पर पहुंच गया था। यह पिछले 75 सालों में रुपये का सबसे निचला स्तर रहा है। पिछले आठ सालों में रुपये में 25 प्रतिशत से अधिक की गिरावट दर्ज की गई है। इसमें सात प्रतिशत गिरावट तो अकेले साल 2022 में आई है। ऐसे में इस गिरावट का सीधा असर आम आदमी पर देखने को मिल रहा है। खुदरा महंगाई के साथ बैंक लोन सहित आयात महंगा हो गया है।
आजादी के समय डॉलर के मुकाबले क्या थी रुपये की कीमत?
साल 1947 में भारत के आजाद होने के समय अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की कीमत चार रुपये थी, लेकिन वर्तमान में यह 79.62 रुपये पर पहुंच गई। अंग्रेजों का राज खत्म होने के समय 13 रुपये में एक पाउंड या चार अमेरिकी डॉलर खरीदे जा सकते थे। विशेषज्ञों के अनुसार, रुपये में गिरावट के लिए उच्च तेल आयात लागत के कारण व्यापार घाटे के 31 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने को जिम्मेदार माना जा सकता है।
भारतीय रुपये में 1966 में आई थी पहली गिरावट
रुपये में पहली गिरावट 1966 में भारत में आए गंभीर आर्थिक संकट के दौरान आई थी। मानसून की कमी और भारत द्वारा चीन और पाकिस्तान के साथ युद्ध के बाद भारत को विदेशी सहायता बंद हो गई थी। उस दौरान भारत को व्यापार प्रतिबंधों को कम करने के लिए कहा गया था। ऐसे में तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार में 6 जून, 1966 को डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 4.76 से बढ़कर 7.50 रुपये पर पहुंच गई थी।
1991 में रुपये में आई थी 18.5 प्रतिशत की गिरावट
1990 में बकाया भुगतान संकट के कारण खड़े हुए व्यापक आर्थिक असंतुलन ने भारत को एक बड़ी मंदी में धकेल दिया था। बाहरी कर्ज भुगतान, उच्च मुद्रास्फीति और बजट घाटे से लड़ने के लिए सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रुपये में गिरावट के लिए दो-चरणीय प्रक्रिया अपनाई थी। उस दौरान महज 10 दिनों में ही एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 18.5 प्रतिशत की गिरावट के साथ 25.95 रुपये पर पहुंच गया था।
2008 के वित्तीय संकट के कारण बढ़ी मंदी
ब्याज दर अंतर और मुद्रास्फीति के कारण 1991 के बाद से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया चक्रवृद्धि वार्षिक विकास दर (CAGR) पर 3.74 प्रतिशत तक गिर गया। इसके बाद भारतीय रुपया 2001-07 के बीच कुछ हद तक स्थिर रहा था, लेकिन साल 2008 में आई आर्थिक मंदी के कारण रुपये में फिर से गिरावट शुरू हो गई। साल 2009 के बाद से फिर से बड़ी गिरावट आई और डॉलर के मुकाबले रुपया 46.5 पर पहुंच गया।
रुपये में लगातार जारी रही है गिरावट
कोरोना वायरस महामारी की लगातार आई लहरों और वैश्विक आर्थिक मंदी के चलते इस साल की शुरुआत में रुपया एक डॉलर के मुकाबले 80 रुपये पर पहुंच गया। हालांकि, 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद से भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में काफी तेजी आई है। विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिकी डॉलर में गिरावट जारी रह सकती है, लेकिन पूरी संभावना है कि गिरावट की यह गति पहले की तुलना में काफी कम हो जाए।
गिरते रुपये को संभालने का प्रयास
भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक मुद्रा बाजार में हांगकांग डॉलर, रेनमिनबी और अरब अमीरात दिरहम में तेल और विभिन्न अन्य वस्तुओं का व्यापार देखा जा रहा है। SBI ने सवाल किया कि क्या भारत बदलती विश्व व्यवस्था के विश्वसनीय विकल्प के रूप में रुपये को पेश कर सकता है। SBI ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार भुगतान को रुपये में निपटाने की एक विधि की भी घोषणा की है। यदि यह सफल होती है तो बड़ी राहत मिलेगी।