कैसे अर्श से फर्श पर पहुंच गया यस बैंक?
क्या है खबर?
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने गुरुवार को आर्थिक संकट से जूझ रहे यस बैंक के निदेशक मंडल को भंग करते हुए इसका नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया।
बैंक को डूबने से बचाने के लिए ये फैसला लिया गया है और भारतीय स्टेट बैंक (SBI) और भारतीय बीमा निगम (LIC) यस बैंक के 49 प्रतिशत शेयर खरीद सकते हैं।
भारत के पांचवें सबसे बड़े निजी बैंक की ये हालत कैसे हुई और उसकी पूरी कहानी क्या है, आइए जानते हैं।
शुरूआत
ऐसे शुरू हुआ था यस बैंक का सफर
यस बैंक के सफर की कहानी 1990 के दशक से शुरू होती है जब बैंकर राणा कपूर ने बैंक प्रशासन में अपने लंबे अनुभव का फायदा उठाने के लिए खुद का बैंक खोलने का सपना पाला।
1999 में उन्होंने अपने साले अशोक कपूर और हरकीरत सिंह के साथ मिलकर नीदरलैंड के राबो बैंक के साथ समझौता करके 'राबो इंडिया फाइनेंस' नाम की कंपनी बनाई।
2002 में उन्हें राबो बैंक के सहयोग से बैंक स्थापित करने की सैद्धांतिक मंजूरी मिल गई।
जानकारी
2004 में शुरू हुआ यस बैंक
RBI की मंजूरी के बाद 2004 में यस बैंक की स्थापना की गई और राणा, अशोक और राबो बैंक ने इसका प्रमोशन किया। इस बीच राणा और अशोक ने अपने तीसरे साथी हरकीरत सिंह को किनारे कर दिया।
अच्छे दिन
2005 में दी शेयर बाजार में दस्तक
यस बैंक ने 2005 में 300 करोड़ रुपये के IPO के साथ शेयर बाजार पर दस्तक दी और जल्द ही सबका चहेता बन गया।
यस बैंक की सबसे खास बात ये रही कि जोखिम भरे लोन देने से कभी मना नहीं किया। राणा लोन देने और उन्हें वसूलने के लिए अपने व्यक्तिगत संबंधों और नेटवर्क का खासा इस्तेमाल करते थे।
ये बात उसे अन्य बैंकों से अलग करती थी जो लोन वसूलने के लिए प्रक्रिया पर निर्भर रहते हैं।
पूंजी
75,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गई थी यस बैंक की पूंजी
अपनी इन्हीं अलग चीजों की वजह से यस बैंक की किस्मत चमकती चली गई और एक दौर में उसकी बाजार पूंजी 75,000 करोड़ रुपये तक रही।
राणा कपूर को बैंक का मैनेजिंग डायरेक्टर (MD) और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) होने का फायदा मिला और वे जल्द ही अरबपति बन गए।
इसी दौरान उन्होंने कहा था कि यस बैंक के शेयर सोने और हीरे के समान हैं और वे उन्हें कभी नहीं बेचेंगे।
बुरे दिन
इन कारणों से डूबना शुरू हुआ बैंक
जल्द ही यस बैंक और राणा कपूर दोनों की किस्मत बदल गई। 2018 में RBI ने MD और CEO के पद पर राणा के कार्यकाल को बढ़ाने से इनकार कर दिया और बैंक के निदेशक मंडल को नया व्यक्ति ढूढ़ने के लिए तीन महीने का समय दिया।
इससे बैंक के शेयरों में लगभग 30 प्रतिशत की गिरावट आई।
IL&FS, DHFL और अनिल अंबानी समूह समेत कई लेनदारों के दिवालिया होने पर बैंक की परेशानियां और बढ़ गईं।
जानकारी
2019 में बेची गई राणा की सारी हिस्सेदारी
इस बीच बैंक को बचाने के लिए राणा ने अपनी हिस्सेदारी को गारंटी के तौर पर रखकर लगभग 630 करोड़ रुपये जुटाए। हालांकि, स्थिति खराब होने पर 2019 में कर्जदाताओं ने उनकी सारी हिस्सेदारी बेच दी।
निवेशक आकर्षित करने में नाकामी
पूंजी जुटाने में नाकामी के बाद RBI को लेना पड़ा फैसला
इस बीच मार्च, 2019 में राणा के स्थान पर रवनीत गिल को यस बैंक का MD और CEO नियुक्त किया गया।
इसके बाद गिल ने बैंक के लिए निवेशक ढूढ़ने के भरपूर प्रयास किए, लेकिन वे पर्याप्त निवेश लाने में नाकाम रहे और RBI के पास बैंक का नियंत्रण अपने हाथों में लेने के अलावा और कोई चारा नहीं रहा।
एक रिपोर्ट के अनुसार, यस बैंक के लगभग 28.6 लाख सेविंग अकाउंट्स में 2.09 लाख करोड़ रुपये जमा हैं।