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    G-20: भारत के पास आई अध्यक्षता, यह समूह क्या है और क्या करता है?

    G-20: भारत के पास आई अध्यक्षता, यह समूह क्या है और क्या करता है?
    लेखन प्रमोद कुमार
    Dec 20, 2022, 04:44 pm 1 मिनट में पढ़ें
    G-20: भारत के पास आई अध्यक्षता, यह समूह क्या है और क्या करता है?
    G-20: भारत के पास आई अध्यक्षता, यह समूह क्या है और क्या करता है?

    भारत के पास G-20 की अध्यक्षता आ गई है। 1 दिसंबर से लेकर अगले साल 30 नवंबर तक भारत G-20 की अध्यक्षता करेगा। सालभर में इससे जुड़ी करीब 200 बैठकें भारत में होंगी। अध्यक्ष होने के नाते भारत अगले साल G-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी भी करेगी, जिसमें इसके सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल होंगे। आइये जानते हैं कि G-20 समूह क्या है, कैसे इसकी शुरुआत हुई और यह क्या करता है।

    G-20 क्या है?

    G-20 एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसके 20 सदस्य हैं। इसकी शुरुआत 1999 के एशियाई वित्तीय संकट के बाद हुई थी और इसे वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों के बीच वैश्विक आर्थिक और वित्तीय मुद्दों की चर्चा के लिए एक मंच के तौर पर शुरू किया गया था। 2007 की मंदी के बाद 2008 से इसमें राष्ट्राध्यक्षों ने भाग लेना शुरू कर दिया और अगले साल इसे अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए एक प्रमुख मंच करार दिया गया।

    G-20 में कौन से देश शामिल हैं?

    G-20 में दुनिया की कुछ सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं समेत 19 देश और यूरोपीय संघ (EU) शामिल हैं। इसके सदस्य देशों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका शामिल है। स्पेन को इसके स्थायी मेहमान के तौर पर सम्मेलनों में आमंत्रित किया जाता है। अमेरिका ने हाल ही में अफ्रीकन यूनियन को इसमें शामिल करने का समर्थन किया है।

    हर साल होता है शिखर सम्मेलन

    G-20 के सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष हर साल मिलकर आर्थिक और वित्तीय मुद्दों और साझे हित्तों से जुड़े मामलों से जुड़ी नीतियों पर चर्चा करते हैं। यह कोई स्थायी संस्थान नहीं है और न ही इसका कोई मुख्यालय है। पिछले साल इसकी अध्यक्षता इंडोनेशिया के पास थी और इस साल भारत इसकी अध्यक्षता कर रहा है। अगले साल यह कुर्सी ब्राजील के पास जाएगी। सहमति के आधार पर इसमें फैसले लिए जाते हैं।

    क्यों मायने रखता है G-20 समूह?

    G-20 समूह देशों के पास वैश्विक अर्थव्यवस्था का 80 प्रतिशत, वैश्विक निर्यात का 75 प्रतिशत और आबादी का 60 प्रतिशत हिस्सा है। 2008 की मंदी के बाद उठाए गए कदमों के लिए इस समूह की सराहना की जाती है। 2008 और 2009 में G-20 के सदस्य अपने अर्थव्यवस्थाओं में जान फूंकने के लिए 4 ट्रिलियन डॉलर के पैकेज, व्यापार में आ रही परेशानियो को दूर करने और लंबे समय तक फायदे देने वाले कदम उठाने पर सहमत हुए थे।

    2008 के बाद फीकी पड़ी चमक

    G-20 शिखर सम्मेलनों से इतर होने वाली द्विपक्षीय बैठकों में कई ऐतिहासिक अतंरराष्ट्रीय समझौते हुए हैं, लेकिन समीक्षकों का कहना है कि 2008 के बाद से यह समूह कई बड़े मुद्दों पर एकराय नहीं बना पाया है। डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहते हुए अमेरिका का व्यापार, पर्यावरण और शरणार्थी मुद्दों पर टकराव हुआ था। वहीं कोरोना महामारी के बाद मजबूत प्रतिक्रिया न देने के कारण भी इस समूह की आलोचना होती है।

    सम्मेलनों के एजेंडे में क्या रहा है?

    शुरुआत में G-20 का फोकस मैक्रोइकॉनोमिक नीतियों पर रहता था, लेकिन आगे चलकर इसका दायरा बढ़ा है। 2018 में अर्जेंटीना में हुए सम्मेलन में सतत विकास, उससे पहले जर्मनी में भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग और अंतरराष्ट्रीय टैक्स हैवन जैसे मुद्दों पर बातचीत हुई। 2016 में चीन के सम्मेलन में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने औपचारिक तौर पर पेरिस जलवायु समझौते में शामिल होने का ऐलान किया था।

    आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे भी उठे

    आर्थिक और वित्तीय मुद्दों के अलावा G-20 शिखर सम्मेलनों में आतंकवाद और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हुई है। हालिया कई सम्मेलनों में जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर भी चर्चा हो रही है।

    इन मुद्दों पर टकराव की स्थिति

    यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से बढ़ा भू-राजनैतिक तनाव और अमेरिका और चीन के बीच सामरिक प्रतिद्वंद्वता के चलते आपसी सहयोग पर टकराव की स्थिति बनी हुई है। समूह की रूस की उपस्थिति से भी कई पश्चिमी देश असहज हैं और उन्होंने रूस को बाहर करने की मांग उठाई है। हालांकि, चीन और ब्राजील ने इसका विरोध किया है। वहीं उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए आर्थिक झटके राह मुश्किल कर रहे हैं और इस मुद्दे पर भी टकराव हो सकता है।

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