NewsBytes Hindi
    English Tamil Telugu
    अन्य
    चर्चित विषय
    चीन समाचार
    पाकिस्तान समाचार
    अफगानिस्तान
    रूस समाचार
    श्रीलंका
    निक्की हेली
    यूक्रेन युद्ध
    NewsBytes Hindi
    English Tamil Telugu
    NewsBytes Hindi
    User Placeholder

    Hi,

    Logout


    देश राजनीति दुनिया बिज़नेस खेलकूद मनोरंजन टेक्नोलॉजी करियर अजब-गजब लाइफस्टाइल ऑटो एक्सक्लूसिव विज़ुअल खबरें

    एंड्राइड ऐप डाउनलोड

    हमें फॉलो करें
    • Facebook
    • Twitter
    • Linkedin
     
    होम / खबरें / दुनिया की खबरें / अफगानिस्तान पर कब्जा करने वाले तालिबान के पाकिस्तान से कैसे संबंध रहे हैं?
    दुनिया

    अफगानिस्तान पर कब्जा करने वाले तालिबान के पाकिस्तान से कैसे संबंध रहे हैं?

    अफगानिस्तान पर कब्जा करने वाले तालिबान के पाकिस्तान से कैसे संबंध रहे हैं?
    लेखन भारत शर्मा
    Aug 17, 2021, 06:43 pm 1 मिनट में पढ़ें
    अफगानिस्तान पर कब्जा करने वाले तालिबान के पाकिस्तान से कैसे संबंध रहे हैं?
    पाकिस्तान और तालिबान के बीच लंबे समय से रहे हैं संबंध।

    तालिबान ने रविवार रात को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया। इसके बाद अफगानिस्तान की सेना ने मोर्चा छोड़ दिया और राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर चले गए। इधर, तालिबान ने जल्द ही नए शासन की घोषणा करने का ऐलान किया है। इन सबके बीच कई नेताओं के बयान सामने आ रहे हैं कि पाकिस्तान ने तालिबान की खासी मदद की है। ऐसे में आइए जानते हैं कि तालिबान और पाकिस्तान के संबंध कैसे रहे हैं।

    साल 1994 में हुई थी तालिबान की शुरुआत

    1994 में सोवियत संघ के अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को हटाने के साथ ही तालिबान की शुरुआत हुई थी। उस समय एक स्थानीय गुट के नेता मुल्ला मोहम्मद उमर ने कुछ पश्तून युवाओं के साथ एक आंदोलन शुरू किया, जिसे पश्तो भाषा में 'तालिबान' कहा गया। पश्तो भाषा में 'छात्रों' को 'तालिबान' कहा जाता है। तालिबान धार्मिक मदरसों में उभरा और शुरुआत में इस आंदोलन से जुड़ने वाले लोग पाकिस्तानी मदरसों से ही निकले थे।

    पाकिस्तान ने दी थी तालिबान को मान्यता

    तालिबान ने 1996 में राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया था और अगले दो साल में 90 प्रतिशत अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। शुरुआत में तालिबान लोकप्रिय भी हुए, लेकिन उन्होंने मुस्लिम शरिया कानून से सजा देना शुरू कर दिया। जैसे सार्वजनिक तौर पर फांसी देना और चोरी के मामले में हाथ काटना आदि। इससे अराजकता बढ़ गई। तब पाकिस्तान तालिबान सरकार को मान्यता देने वाले दुनिया के तीन (पाकिस्तान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात) देशों में शामिल था।

    वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद बदली स्थिति

    11 सितंबर, 2001 को अमेरिका के न्यूयार्क वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद दुनिया का ध्यान तालिबान पर गया। तालिबान पर उस हमले के मुख्य आरोपी ओसामा बिन लादेन और अल कायदा के आतंकियों को शरण देने का आरोप लगा था। इसके बाद 7 अक्टूबर, 2001 को अमेरिका के नेतृत्व में सैन्य गठबंधन ने अफगानिस्तान पर हमला कर तालिबान का शासन खत्म कर दिया। उस दौरान तालिबान के बड़े लीडर्स ने पाकिस्तान में पनाह ली थी।

    तालिबानियों को पनाह देने की बात से इनकार करता रहा है पाकिस्तान

    अमेरिकी सेना के हमले के बाद आतंकी ओसामा बिन लादेन और तालिबान प्रमुख मुल्ला मोहम्मद उमर ने क्वेटा शहर में पनाह ली और वहां से लोगों को निर्देशित करने लगे थे। हालांकि, पाकिस्तान सरकार क्वेटा में तालिबान की मौजूदगी से हमेशा इनकार करती आई है।

    तालिबानियों का गढ़ बन गया पाकिस्तान का क्वेटा शहर

    तालिबान के राजनीतिक नेतृत्व ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा में डेरा डाल लिया। देखते ही देखते यह क्षेत्र दक्षिण और उत्तरी वजीरिस्तान अफगान तालिबान के लड़ाकों का गढ़ बन गया। यही कारण रहा कि पाकिस्तानी सेना की ढिलाई से हक्कानी नेटवर्क, अल-कायदा और अन्य जिहादियों के समूह तेजी से मजबूत हो गए। तालिबान ने हालिया लड़ाई में पाकिस्तान में उन्हीं सुरक्षित पनाहगाहों का इस्तेमाल करते हुए अफगानिस्तान पर हमले शुरू किए थे।

    जब पाकिस्तान ने तालिबानी नेता को रिहा किया

    पाकिस्तान ने अमेरिका के अनुरोध पर बातचीत के लिए हुए समझौते के बीच तालिबानी नेता मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को 2018 में रिहा कर दिया था। उसे 2010 में पाकिस्तान ने गिरफ्तार किया था।

    राजनयिकों ने पाकिस्तान पर लगाए हैं तालिबान का समर्थन करने के आरोप

    अब 2021 में तालिबान के कब्जा करने के बाद अफगानिस्तान में कई और भारत के राजनयिक और खुफिया एजेंसियों का मानना ​​है कि तालिबान की जीत पाकिस्तान की सक्रिय सहायता के बिना नहीं हो सकती थी। काबुल में भारत के पूर्व राजदूत गौतम मुखोपाध्याय ने हमले को 'अफगान चेहरे के साथ पाकिस्तानी आक्रमण' करार दिया है। इसी तरह अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने भी आरोप लगाया कि पाकिस्तानी सेना और ISI ने तालिबान की मदद की है।

    पाकिस्तान ने कैसे की तालिबान की मदद?

    अमेरिकी सेना के तालिबान शासन को खत्म करने के सालों बाद जब तालिबान ने फिर से अफगानिस्तान पर हमले शुरू किए थे तो पाकिस्तान ने तालिबान से बाचतीत करने के लिए अमेरिका पर दबाव बनाया था। पाकिस्तान नहीं चाहता था कि तालिबान उसकी सहमति के बिना अफगानिस्तान सरकार या अमेरिकी प्रशासन से बात करे। ऐसे में पाकिस्तानी सेना और ISI बीच में कूदते हुए तालिबान और अमेरिकी प्रशासन की समझौता वार्ता का माध्यम बन गए।

    पाकिस्तान ने नहीं किया शांति समझौते का प्रयास

    तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के बीच दुनिया को उम्मीद थी कि पाकिस्तान अफगानिस्तान की गनी सरकार द्वारा तालिबान की सत्ता में साझेदारी के ऑफर पर बातचीत के लिए तालिबान पर दबाव बनाएगा, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।

    अमेरिका ने भी नहीं की पाकिस्तान पर कार्रवाई

    रिपोर्ट्स के अनुसार, 2001 में अमेरिका के अभियान की शुरुआत से ही तालिबान के लिए पाकिस्तान में सुरक्षित पनाहगाह मौजूद थे। अमेरिका को इसकी जानकारी भी थी, लेकिन अफगानिस्तान में युद्ध के लिए मजबूती में पाकिस्तान की अधिक आवश्यकता को देखते हुए इस पर ध्यान नहीं दिया। उस दौरान पाकिस्तान प्रशासन ने ही तालिबानियों पर ठोस कार्रवाई का आश्वासन दिया था, लेकिन पाकिस्तान ने कभी भी ऐसा नहीं किया।

    लश्कर-ए-तैयबा ने हमलों में किया तालिबान का सहयोग

    भारतीय सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने पाकिस्तानी सेना के सहयोग से साल 2017 से ही अमेरिका और नाटो सैनिकों के खिलाफ हमला करने में तालिबानियों की मदद करना शुरू कर दिया था।

    अब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने दिया चौंकाने वाला बयान

    तालिबान के कब्जा करने के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने बड़ा चौंकाने वाला बयान देते हुए कहा कि अफगानिस्तान ने गुलामी की बेड़ियों को तोड़ दिया। इसी तरह पाकिस्तान के कई सेवानिवृत्त और सेवारत जनरल ने तालिबान की जीत की खुले दिल से प्रशंसा की है और यह भी कहा है कि आखिरकार काबुल में ड्राइविंग सीट पर पाकिस्तान के पास "दोस्त" होंगे। ये बयान पाकिस्तान और तालिबान के संबंधों को उजागर करने के लिए काफी है।

    पाकिस्तान के तालिबान का सहयोग करने के पीछे क्या उद्देश्य रहा है?

    पिछले तीन दशकों में पाकिस्तान ने तालिबान को दो तरह के उद्देश्य की पूर्ति के रूप में देखा है। पहला यह कि काबुल में तालिबान शासन और पाकिस्तान के साथ उसके मजबूत संबंध होने से पाकिस्तान की सेना को अफगानिस्तान आसान प्रवेश मिल सकेगा। इसका वह भारत के खिलाफ रणनीतिक लड़ाई में इस्तेमाल कर सकेगा। दूसरा यह कि तालिबान की पश्तून पहचान और राष्ट्रवाद के सहारे एक नया इस्लामवादी हथियार तैयार हो, भारत के लिए परेशानी बन सके।

    तालिबान के कब्जे से पाकिस्तान की भी बढ़ेगी मुसीबत

    भले ही अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से पाकिस्तान खुश हो रहा है, लेकिन यह उसके लिए भी बड़ी परेशानियों का संकेत है। पाकिस्तानी सेना सहित कई विशेषज्ञों का मानना है कि इससे पाकिस्तान में अफगानी शरणार्थियों की संख्या में बेतहाशा इजाफा होगा और वह देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ाएगा। इसी तरह पाकिस्तान में चरमपंथ की भी आग भड़क सकती है। इसमें तहरीक-ए-तालिबान प्रमुख संगठन है जो वर्तमान में पाकिस्तान में खासा सक्रिय है।

    भारत के लिए कैसा रहेगा आगे का रास्ता?

    अफगानिस्तान में तालिबान के शासन को भारत के परिपेक्ष में देखा जाए तो इससे वह अफगानिस्तान में अपना प्रभाव खो सकता है और उसके तालिबान से चुनौतीपूर्ण संबंध हो सकते हैं। इसका कारण यह है कि भारतीय अभी भी IC814 विमान अपहरण को नहीं भूले हैं, जिसमें तालिबान ने आतंकियों को पनाह दी थी। इसी तरह हक्कानी नेटवर्क का ISI और तालिबान दोनों के साथ निकटता का संबंध है और ये दोनों संगठन भारत के खिलाफ हैं।

    आतंकी संगठनों को अफगानिस्तान में मिलेगी पनाह

    भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को डर है कि भारत केंद्रित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों को पाकिस्तान के साथ अब अफगानिस्तान में नए सुरक्षित ठिकाने मिल जाएंगे। जहां से वो भारत के खिलाफ हमलों की योजना बनाना जारी रखेंगे।

    इस खबर को शेयर करें
    Facebook
    Whatsapp
    Twitter
    Linkedin
    भारत की खबरें
    पाकिस्तान समाचार
    अफगानिस्तान
    तालिबान

    भारत की खबरें

    अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति सालेह का बड़ा बयान, कहा- तालिबान के आगे कभी नहीं झुकूंगा अफगानिस्तान
    जल्द लॉन्च हो सकती है बजाज पल्सर 250, ये होंगे फीचर्स बाइक सेल
    रेनो की इन कारों पर मिल रही 80,000 रुपये तक की छूट कार
    भारत में लॉन्च हुआ लैंबॉर्गिनी यूरस SUV का ग्रेफाइट कैप्सूल एडिशन, जानिए कार के फीचर्स कार

    पाकिस्तान समाचार

    जम्मू-कश्मीर: सुरक्षा बलों ने नाकाम की बड़े आतंकी हमले की साजिश, जैश-ए-मोहम्मद के चार आतंकी दबोचे जम्मू-कश्मीर
    भुलाया नहीं जा सकता बंटवारे का दर्द, 14 अगस्त को मनाएंगे 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस'- प्रधानमंत्री भारत की खबरें
    15 अगस्त से पहले जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले करने की तैयारी में पाकिस्तान- रिपोर्ट जम्मू-कश्मीर
    पाकिस्तान की नई चाल, गिलगित-बल्तिस्तान को अंतरिम राज्य बनाने के लिए कानून लाने की तैयारी भारत की खबरें

    अफगानिस्तान

    तालिबान की सरकारी कर्मचारियों से काम पर लौटने, महिलाओं से सरकार में शामिल होने की अपील तालिबान
    अमेरिकी विमान में बैठकर अफगानिस्तान से निकलने में कामयाब रहे 640 अफगानी नागरिक अमेरिका
    हिंदू पुजारी ने किया काबुल छोड़ने से इनकार, कहा- तालिबानियों से मिली मौत को सेवा समझूंगा तालिबान
    अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी के फैसले के साथ पूरी तरह से खड़ा हूं- अमेरिकी राष्ट्रपति अमेरिका

    तालिबान

    क्रिकेट को पसंद और सपोर्ट करता है तालिबान, उनसे नहीं होगा कोई खतरा- अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड क्रिकेट समाचार
    अफगानिस्तान में तालिबान के आने का भारत पर क्या असर पड़ेगा? अफगानिस्तान
    अफगानिस्तान: अभी भी दूतावास में फंसे हुए हैं विदेश मंत्रालय के कर्मचारियों समेत 200 भारतीय- रिपोर्ट अफगानिस्तान
    अफगानिस्तान पर चीन का बड़ा बयान, कहा- तालिबान के साथ दोस्ताना संबंध स्थापित करने को तैयार चीन समाचार

    दुनिया की खबरें पसंद हैं?

    नवीनतम खबरों से अपडेटेड रहें।

    World Thumbnail
    पाकिस्तान समाचार क्रिकेट समाचार नरेंद्र मोदी आम आदमी पार्टी समाचार अरविंद केजरीवाल राहुल गांधी फुटबॉल समाचार कांग्रेस समाचार लेटेस्ट स्मार्टफोन्स क्रिप्टोकरेंसी भाजपा समाचार कोरोना वायरस रेसिपी #NewsBytesExclusive कोरोना वायरस वैक्सीन ट्रैवल टिप्स यूक्रेन युद्ध मंकीपॉक्स द्रौपदी मुर्मू IPL 2023
    हमारे बारे में प्राइवेसी पॉलिसी नियम हमसे संपर्क करें हमारे उसूल शिकायत खबरें समाचार संग्रह विषय संग्रह
    हमें फॉलो करें
    Facebook Twitter Linkedin
    All rights reserved © NewsBytes 2023