क्लिनिकल ट्रायल में 5-11 साल के बच्चों के लिए सुरक्षित मिली फाइजर की कोरोना वैक्सीन
कोरोना वायरस महामारी की संभावित तीसरी लहर और इसके बच्चों पर अधिक प्रभाव होने की आशंकाओं के बीच राहत की खबर आई है। अमेरिकी फार्मा कंपनी फाइजर और बायोएनटेक द्वारा बच्चों को कोरोना महामारी से बचाने के लिए तैयार की गई कोरोना वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल के परिणामों में 5-11 साल तक के बच्चों में पूरी तरह से सुरक्षित पाई गई है। कंपनी ने सोमवार को ट्रायल के परिणामों की जानकारी देते हुए यह खुलासा किया है।
mRNA तकनीक से तैयार की गई है वैक्सीन
बता दें कि फाइजर और बायोएनटेक की वैक्सीन एक नई तकनीक पर आधारित है। इस वैक्सीन को mRNA तकनीक के जरिए बनाया गया है। इस तकनीक में वायरस के जिनोम का प्रयोग कर कृत्रिम RNA बनाया जाता है जो सेल्स में जाकर उन्हें कोरोना वायरस की स्पाइक प्रोटीन बनाने का निर्देश देता है। इन स्पाइक प्रोटीन की पहचान कर सेल्स कोरोना की एंटीबॉडीज बनाने लग जाती हैं। मॉडर्ना की संभावित वैक्सीन भी इसी तकनीक पर बनी है।
5-11 साल तक के बच्चों में सुरक्षित मिली है वैक्सीन- फाइजर
NDTV के अनुसार, फाइजर और बायोएनटेक की ओर से जारी किए गए संयुक्त बयान में कहा गया है, "क्लीनिकल ट्रायल के परिणामों से पता चला है कि उनकी कोरोना वैक्सीन 5-11 साल की उम्र के बच्चों में पूरी तरह सुरक्षित है और इससे बच्चों में इम्युनिटी बढ़ी है।" कंपनियों ने आगे कहा, "वो जल्द ही यूरोपीय संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका और दुनिया भर में नियामक निकायों को अपना डेटा जमा कराकर मंजूरी हासिल करने का प्रयास करेंगे।"
वयस्कों की तुलना में बच्चों को कम दी जाएगी खुराक
कंपनी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि वैक्सीन भले ही प्रभावी मिली है, लेकिन 5-11 साल के बच्चों को 12 वर्ष या इससे अधिक उम्र के लोगों की तुलना में इस वैक्सीन की अपेक्षाकृत कम खुराक दी जाएगी।
वैक्सीन की सुरक्षा का विस्तार करने के लिए हैं उत्सुक- बोर्ला
फाइजर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) अल्बर्ट बोर्ला ने कहा, "हम युवा आबादी के लिए वैक्सीन की सुरक्षा का विस्तार करने के लिए उत्सुक हैं, क्योंकि अमेरिका में जुलाई से बच्चों में कोरोना संक्रमण के मामलों में 240 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।" उन्होंने कहा, "बच्चों में वैक्सीन का सुरक्षित मिलना महामारी की तीसरी लहर से बच्चों पर बढ़ने वाले संभावित खतरे को कम करेगा और यह पूरी दुनिया के लिए बड़ी राहत देने वाला है।"
कंपनी ने 4,500 बच्चों पर किया था क्लिनिकल ट्रायल
कंपनी ने कहा कि अमेरिका, फिनलैंड, पोलैंड और स्पेन में आयोजित किए गए क्लिनिकल ट्रायल में 6-11 साल की उम्र के 4,500 बच्चों को शामिल किया गया था। इसमें बच्चों में दुष्परिणाम 16-25 साल की उम्र के लोगों में मिले दुष्परिणमों के समान ही पाया गया था। इसमें इंजेक्शन वाली जगह पर दर्द और सूजन के साथ-साथ सिरदर्द, ठंड लगना और बुखार शामिल हैं। हालांकि, उपचार के बाद सभी बच्चें पूरी तरह स्वस्थ हो गए।
ट्रालय में बच्चों को दी गई थी वैक्सीन की 10 माइक्रोग्राम खुराक
कंपनियों ने कहा कि क्लिनिकल ट्रायल में 5-11 साल के बच्चों को वैक्सीन की 10 माइक्रोग्राम की दो खुराकें वाली दी गई थी, जबकि वयस्क समूह में 30 माइक्रोग्राम की दो खुराकें दी जाती है। बच्चों को पहली खुराक के 21 दिन बाद दूसरी खुराक दी गई थी। बयान में कहा गया है कि 10 माइक्रोग्राम की खुराक को उस आयु वर्ग के लिए सुरक्षित, प्रभावी और इम्यूनिटी बढ़ाने वाली बेहतरीन खुराक के रूप में पाया गया है।
12 साल से अधिक उम्र के बच्चों को दी जा रही है वैक्सीन
बता दें कि फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन पहले से ही दुनियाभर के देशों 12 वर्ष से अधिक उम्र के किशारों और वयस्कों को लगाए जा रहे हैं। हालांकि, बच्चों में गंभीर कोरोना संक्रमण का खबतर बहुत कम माना जाता है, लेकिन हाल के समय में कोरोना वायरस के अत्यधिक संक्रामक डेल्टा वेरिएंट ने चिंताएं बढ़ाई हैं। बच्चों के वैक्सीनेशन को स्कूलों को खोलने और इनमें महामारी को नियंत्रित करने के लिहाज से अहम माना जा रहा है।