कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ने वैक्सीन और इलाज को लेकर क्या चिंताएं पैदा की हैं?
तीन देशों में पाए गए कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों समेत पूरी दुनिया की चिंता बढ़ा दी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) आज इस पर एक अहम बैठक करने वाला है तो भारत में भी इसे लेकर अलर्ट जारी हो गया है। इस वायरस में पाई गईं म्यूटेशन्स को लेकर सबसे ज्यादा चिंता जताई जा रही है कि ये वैक्सीन से मिली सुरक्षा को चकमा देने के साथ-साथ इसकी तेज संक्रामकता का भी कारण बन सकती हैं।
नए वेरिएंट की स्पाइक प्रोटीन में हैं 32 म्यूटेशन
दक्षिण अफ्रीका, हांगकांग और बोत्सवाना में पाए गए कोरोना वायरस के इस नए वेरिएंट का वैज्ञानिक नाम B.1.1.529 है और इसकी स्पाइक प्रोटीन में 32 म्यूटेशन हुई हैं। इसमें P681H और N679K जैसे म्यूटेशन भी हुई हैं जो अल्फा और गामा जैसे वेरिएंट में पाई जा चुकी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि एक ही वेरिएंट में इतनी म्यूटेशन खतरे की घंटी है और यह वेरिएंट अधिक संक्रामक और खतरनाक हो सकता है।
क्या होती है म्यूटेशन?
कोरोना महामारी फैलाने के पीछे SARS-CoV2 वायरस का हाथ है। वायरस के DNA में बदलाव को म्यूटेशन कहा जाता है। ज्यादा म्यूटेशन होने पर वायरस नया रूप ले लेता है, जिसे नया वेरिएंट कहा जाता है। नए वेरिएंट के सामने आने के कई कारण हैं और इसमें एक लगातार वायरस का फैलना है। कोरोना से संक्रमित हर नया मरीज वायरस को म्यूटेट होना का मौका देता है और ऐसे में मरीज बढ़ने के साथ-साथ वेरिएंट की संभावना बढ़ जाती है।
चिंता का विषय क्यों है म्यूटेशन?
स्पाइक प्रोटीन में म्यूटेशन इसलिए चिंता का विषय है क्योंकि वायरस का यही हिस्सा इंसानी कोशिशकाओं को संक्रमित करता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ज्यादा म्यूटेशन्स की वजह से नए वेरिएंट के खिलाफ मौजूदा वैक्सीनों का असर कम हो सकता है और इसी तरह की चिंता इसके इलाज के तरीकों को लेकर जताई जा रही है। हालांकि, नया वेरिएंट होने के कारण अभी तक B.1.1.529 से जुड़ी सारी जानकारियां सामने नहीं आ पाई हैं और जांच चल रही है।
वैक्सीन का असर कैसे कम कर सकता है नया वेरिएंट?
कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अभी तक जो वैक्सीनें इस्तेमाल हो रही हैं, उन्हें स्पाइक प्रोटीन को निशाना बनाने के लिए तैयार किया गया है। ये वैक्सीनें इंसानी इम्युन सिस्टम को स्पाइक प्रोटीन की पहचान कर उसके खिलाफ एंटीबॉडी बनाने के लिए प्रशिक्षित करती हैं। अब चूंकि नए वेरिएंट के स्पाइक प्रोटीन में ज्यादा म्यूटेशन्स हुई हैं तो इम्युन सिस्टम को इन्हें पहचानने और इनके खिलाफ हमला करने में परेशानी हो सकती है।
क्या बिल्कुल बेअसर हो जाएंगी वैक्सीनें?
ऐसा नहीं है कि किसी नए वेरिएंट के आने के बाद वैक्सीनें बिल्कुल बेअसर हो जाएंगी। स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ इम्युन सिस्टम को प्रशिक्षित करने के अलावा वैक्सीनें T और B सेल्स का भी निर्माण करती हैं। इन्हें मेमोरी सेल्स भी कहा जाता है। ये लंबे समय तक शरीर में बनी रहती हैं और वायरस का मुकाबला करने में इम्युन सिस्टम की मदद करती हैं। ऐसे में नए वेरिएंट के खिलाफ भी वैक्सीन का असर पूरी तरह खत्म नहीं होगा।
इलाज को लेकर भी यही चुनौती
कई जानकारों का कहना है कि नया वेरिएंट मोनोक्लोनल थैरेपी जैसे इलाज के असर कम कर सकता है। लंदन के इंपीरियल कॉलेज से जुड़े वायरोलॉजिस्ट डॉ टॉम पीकॉक ने कहा कि नए वेरिएंट में हुए म्यूटेशन गहन चिंता का कारण है। उन्होंने आशंका जताई कि यह मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल से बच सकता है। पिछले साल पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप में संक्रमण की पुष्टि होने के बाद उन्हें यह कॉकटेल दिया गया था।
क्यों होते हैं वायरस में म्यूटेशन?
सरल भाषा में समझें तो SARS-CoV-2 का जेनेटिक कोड लगभग 30,000 अक्षरों के RNA का एक गुच्छा है। जब वायरस इंसानी कोशिकाओं में प्रवेश करता है तो यह वहां अपनी तरह के हजारों वायरस पैदा करने की कोशिश करता है। कई बार इस प्रक्रिया के नए वायरस में पुराने का DNA पूरी तरह 'कॉपी' नहीं हो पाता है। ऐसी स्थिति में हर कुछ हफ्तों के बाद वायरस म्यूटेट हो जाता है, मतलब उसका जेनेटिक कोड बदल जाता है।