दक्षिण अफ्रीका में मिला नया वेरिएंट कितना खतरनाक है और क्या वैक्सीनें इसके खिलाफ काम करेंगी?
दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिकों ने हाल ही में बताया कि उन्हें कोरोना वायरस का एक नया वेरिएंट मिला है, जिसमें तेजी से म्यूटेशन हो रहे हैं और यह एंटीबॉडीज से मिली सुरक्षा को भी चकमा दे सकता है। वैज्ञानिकों ने बताया यह C.1.2 वेरिएंट सबसे पहले मई में सामने आया था और उसके बाद से ये दक्षिण अफ्रीका के अधिकतर राज्यों के साथ-साथ यूरोप और एशिया के सात अन्य देशों में भी फैल चुका है।
कैसे बनता है वायरस का नया स्ट्रेन?
कोरोना महामारी फैलाने के पीछे SARS-CoV2 वायरस का हाथ है। वायरस के DNA में बदलाव को म्यूटेशन कहा जाता है। ज्यादा म्यूटेशन होने पर वायरस नया रूप ले लेता है, जिसे नया स्ट्रेन कहा जाता है। वायरस के नए स्ट्रेन सामने आने के कई कारण हैं। इसमें एक कारण लगातार वायरस का फैलना है। कोरोना से संक्रमित हर नया मरीज वायरस को म्यूटेट होना का मौका देता है। ऐसे में मरीज बढ़ने के साथ-साथ वेरिएंट की संभावना बढ़ जाती है।
सबसे पहले कहां मिला C.1.2 वेरिएंट?
C.1.2 वेरिएंट सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका के म्पुमलंगा और गुआतेंग राज्य में सामने आया था। जून में दो अन्य राज्यों के साथ-साथ चीन और इंग्लैंड में भी इसके मामले सामने आए। कांगो, न्यूजीलैंड, मॉरिशस, पुर्तगाल और स्विट्जरलैंड में भी यह वेरिएंट पाया जा चुका है। यह वेरिएंट इसलिए भी वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित कर रहा है क्योंकि यह तेजी से बदल रहा है और इसके जीनोम में जो म्यूटेशन हो रही हैं, वो डेल्टा समेत कई चिंताजनक स्ट्रेन्स जैसी हैं।
इस वेरिएंट की खास बात क्या है?
दक्षिण अफ्रीका में कोरोना की पहली लहर में C.1 वेरिएंट प्रमुखता से फैला था। C.1.2 में इसकी तुलना में काफी म्यूटेशन हुई है। इसमें जिस गति से म्यूटेशन हो रही है, वह इसे बाकी वेरिएंट्स की तुलना में अलग बनाता है। अध्ययनों से पता चला है कि हर साल C.1.2 में 41.8 म्यूटेशन हो रही हैं, जो मौजूदा वैश्विक रफ्तार से 1.7 गुना और महामारी फैलाने वाले SARS-CoV-2 के विकास के शुरुआती अनुमानों से 1.8 गुना अधिक हैं।
म्यूटेशन की ऐसी ही रफ्तार से बने थे अल्फा, बीटा और गामा
वैज्ञानिक इस पर इसलिए भी नजर गड़ाए हैं क्योंकि इसी तरह की रफ्तार से अल्फा, बीटा और गामा वेरिएंट सामने आए थे। अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि वायरस में ये म्यूटेशन एक व्यक्ति में रहते हुए हुई है, जो लंबे समय तक बीमार था। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, वैज्ञानिकों ने C.1 में देखी गईं म्यूटेशन्स के साथ-साथ C.1.2 के ORF1ab, स्पाइक, ORF3a, ORF9b, E, M और N प्रोटीन में म्यूटेशन्स पाई हैं।
अभी तक वेरिएंट ऑफ कंसर्न घोषित नहीं
दक्षिण अफ्रीका में मिले C.1.2 में ऐसी म्यूटेशन्स भी हुई हैं, जो वेरिएंट ऑफ कंसर्न या वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट घोषित किए जा चुके स्ट्रेन्स में देखी गई थीं। हालांकि, WHO ने अभी तक इसे वेरिएंट ऑफ कंसर्न या वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट घोषित नहीं किया है।
क्या वैक्सीन इस वेरिएंट के खिलाफ काम करेंगी?
C.1.2 वेरिएंट में कुछ ऐसी म्यूटेशन्स हैं, जिसकी मदद से ये एंटीबॉडीज को चकमा दे सकता है। हालांकि, अभी तक इस दिशा में ठोस जानकारी नहीं मिली है और और अध्ययन चल रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कम्युनिकेबल डिसीज ने अपने बयान में कहा है कि यह वेरिएंट एंटीबॉडीज को चकमा दे सकता है, लेकिन इसके बावजूद वैक्सीन संक्रमितों को अस्पताल में भर्ती होने से और मौत से काफी हद तक सुरक्षा देती है।
क्या इस वेरिएंट को लेकर चिंता की जरूरत है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की तकनीकी प्रमुख डॉ मारिया वेन खेर्कोव ने कहा कि दुनियाभर में C.1.2 वेरिएंट की 100 सीक्वेंस दर्ज हुई हैं और अभी तक ऐसा नहीं लग रहा है कि इसका प्रसार बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, "अभी C.1.2 के प्रसार में इजाफा नजर नहीं आ रहा है, लेकिन हमें और सीक्वेंसिंग करने की जरूरत है। मौजूदा सीक्वेंस से पता चलता है कि डेल्टा वेरिएंट प्रमुखता से फैल रहा है।"