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तालिबान ने पाकिस्तान को दिया झटका, कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला बताया

तालिबान ने पाकिस्तान को दिया झटका, कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला बताया

May 19, 2020
08:52 am

क्या है खबर?

तालिबान ने सोमवार को उन दावों को खारिज किया कि वह कश्मीर में पाकिस्तान-समर्थित आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होगा। अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठन तालिबान ने कहा कि उसके विचार इस बारे में स्पष्ट है कि वह 'दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।' संगठन के इस बयान के बाद पाकिस्तान के उस दावे की हवा निकल गई है कि तालिबान कश्मीर में उसके द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का हिस्सा बनने को तैयार है।

बयान

तालिबान ने जारी किया यह बयान

तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने सोमवार को ट्विटर पर लिखा, 'मीडिया में आ रही खबरें, जिनमें कहा गया है कि तालिबान कश्मीर में जिहाद में शामिल हो सकता है, पूरी तरह गलत है। इस्लामिक एमिरेट्स की नीति इस मामले में बिल्कुल साफ है कि वह दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता।' जानकारी के लिए बता दें कि तालिबान की राजनीतिक शाखा खुद को इस्लामिक एमिरेट्स ऑफ अफगानिस्तान कहती है।

मामला

सोशल मीडिया पर शेयर हुई थीं ऐसी पोस्ट

दरअसल, सोशल मीडिया पर दावा किया गया कि तालिबान ने कहा था कि जब तक कश्मीर मामले का हल नहीं हो जाता, तब तक भारत के साथ दोस्ती करना असंभव है। दावा किया गया कि तालिबान ने यह भी कि काबुल में सत्ता हासिल करने के बाद वो 'कश्मीर को भी काफिरों से छिनेंगे।' ऐसी खबरें आने के बाद भारत ने पर्दे के पीछे से इन खबरों की सत्यता की पुष्टि की थी, जिसके बाद तालिबान ने सफाई दी है।

जानकारी

पाकिस्तान समर्थित थीं सोशल मीडिया पर चल रही पोस्ट

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सोशल मीडिया पर चल रहीं ऐसी सभी पोस्ट पाकिस्तान प्रायोजित थी। अब तालिबान के इन पोस्ट के खंडन के बाद इसे पाकिस्तान के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है।

राय

पाकिस्तान से संचालित होते हैं तालिबान के कई अभियान

अफगान तालिबान की शीर्ष शाखा शुरा क्वेटा में है। यही तालिबान से जुड़े नीतिगत निर्णय लेती है। वहीं इसी से जुड़ा हक्कानी नेटवर्क पाकिस्तान के पेशावर से संचालित होता है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान पर नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि चूंकि शुरा और हक्कानी नेटवर्क दोनों पाकिस्तान में है इसलिए इस बार पर हैरानी नहीं होनी चाहिेए कि वो पाकिस्तान के दबाव में आकर अपनी रणनीति में बदलाव कर लें।

अफगानिस्तान

अफगानिस्तान में तेजी से बदले राजनितिक हालात

गौरतलब है कि अफगानिस्तान में पिछले कुछ दिनों से राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं। अमेरिका धीरे-धीरे कर अपने सैनिकों को अफगानिस्तान से वापस बुला रहा है, वहीं दूसरी तरफ उसने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी और उनके प्रतिद्वंद्वी अब्दुल्ला अब्दुल्ला के बीच सियासी समझौते में भी भूमिका निभाई है। रविवार को हुए इस समझौते के तहत अशरफ गनी राष्ट्रपति बने रहेंगे जबकि अब्दुल्ला राष्ट्रीय सुलह के लिए गठित परिषद के प्रमुख होंगे और मंत्रीमंडल में उनकी 50 फीसदी हिस्सेदारी होगी।

अफगानिस्तान

पिछले साल शुरू हुआ था सियासी संकट

पिछले साल सितंबर में अफगानिस्तान में हुए राष्ट्रपति के चुनावों में अशरफ गनी को जीत मिली थी, लेकिन अब्दुल्ला ने मतगणना में धांधली का आरोप लगाते हुए नतीजे स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। गनी के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के दौरान अब्दुल्ला ने समानांतर सरकार का ऐलान करते हुए खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया था। तब से चला आ रहा सियासी संकट लगभग छह महीने बाद अब सुलझा है।