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    पुलवामा आतंकी हमला: क्यों और कैसे कश्मीर में अपना जाल फैला रहा है 'जैश-ए-मोहम्मद'
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    पुलवामा आतंकी हमला: क्यों और कैसे कश्मीर में अपना जाल फैला रहा है 'जैश-ए-मोहम्मद'

    लेखन मुकुल तोमर
    February 15, 2019 | 11:27 am 1 मिनट में पढ़ें
    पुलवामा आतंकी हमला: क्यों और कैसे कश्मीर में अपना जाल फैला रहा है 'जैश-ए-मोहम्मद'

    गुरुवार को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के काफिले पर हुए आतंकवादी हमले में शहीद होने वाले जवानों की संख्या 40 से ऊपर पहुंच गई है। देशभर में हमले के खिलाफ गुस्सा है और पाकिस्तान पर कार्रवाई की मांग हो रही है। इस हमले को आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने फिदायीन आदिल अहमद डार के जरिए अंजाम दिया। आतंकी आदिल ने कार के जरिए काफिले पर हमला किया। आइए आपको हमले को अंजाम देने वाले जैश-ए-मोहम्मद के बारे में बताते हैं।

    कंधार विमान अपहरण मामले में रिहा हुआ था जैश-ए-मोहम्मद का आका

    जैश-ए-मोहम्मद के जन्म के तार कंधार विमान अपहरण मामले से जुड़े हुए हैं। तत्कालीन अटल बिहारी सरकार ने IC-814 प्लेन को छुड़ाने के लिए जिन आतंकवादियों को छोड़ा था, उनमें मौलाना मसूद अजहर भी शामिल था। मसूद अजहर ने ही बाद में जैश-ए-मोहम्मद का गठन किया। जैश का भारत पर पहला बड़ा आतंकी हमला 2001 में संसद पर हुआ हमला था। उरी और पठानकोट में सेना के ठिकानों पर हुए हमलों में भी जैश का हाथ था।

    चीन नहीं लगाने देता अजहर पर प्रतिबंध

    अंतरराष्ट्रीय समीकरणों की बात करें तो अफगानिस्तान में तालिबान की राजनीतिक बातचीत में वापसी हुई है। बुधवार को ही अमेरिका और पाकिस्तान की तालिबान के साथ बातचीत की घोषणा हुई थी। वहीं, चीन अजहर पर प्रतिबंध लगाने की अमेरिका और भारत की कोशिशों को नाकाम करता रहता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के इन घटनाक्रमों के कारण जैश घाटी में अपने पैर पसारने में कामयाब रहा है। वह पिछले 3 साल से इस कोशिश में लगा हुआ है।

    तालिबान से गहरे संबंध

    पाकिस्तान से ऑपरेट करने वाले जैश के तालिबान से गहरे संबंध हैं। 9/11 आतंकी हमले के बाद जब पाकिस्तानी सरकार अमेरिका की तरफ हो गई तो जैश ने उसी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। मामला यहां तक पहुंचा कि 9/11 के ठीक बाद जम्मू और कश्मीर विधानसभा पर जैश का आत्मघाती हमला कश्मीर में हुआ पहला ऐसा हमला था, जिसकी पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर निंदा की थी। हमले में 23 लोग मारे गए थे।

    परवेज मुशर्रफ को 2 बार मारने की कोशिश

    जैश के पाकिस्तानी सरकार के साथ संबंध तब और खराब हो गए जब उसने 2003 में तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को दो बार जान से मारने की कोशिश की थी। इसी दौरान जैश घाटी में भी दो कारणों से अपना प्रभाव खो रहा था। पहला पाकिस्तान का समर्थन खोना और दूसरा खुफिया एजेंसियों का इसमें घुसपैठ करने में कामयाब रहना। शुरुआती 2004 में लोलाब में एक बैठक के दौरान कश्मीर में जैश के शीर्ष नेतृत्व को मार दिया गया था।

    कश्मीर में बढ़ रहा है जैश का असर

    जैश का यह ताजा हमला घाटी में उसके बढ़ते असर का सबूत है। इसी साल वह लगभग 1 दर्जन हमलों को अंजाम दे चुका है, जिसमें से दो श्रीनगर में गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर हुए थे। अजहर के मंसूबों को अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने अपने दो भतीजों को भी कश्मीर भेजा था। इनमें से एक तलहा राशिद अक्टूबर 2017 में मारा गया, जबकि उस्मान हैदर को पिछले साल सेना ने ढेर किया था।

    पहले भी हुआ है कार के जरिए हमला

    यह पहली बार नहीं है जब जैश ने कार बम के जरिए हमला किया हो। 2000 में 17 वर्षीय स्कूली लड़के अफाक अहमद ने विस्फोटों से भरी हुई मारूति को श्रीनगर में सेना की 15 कोर के मुख्यालय में घुसाकर उड़ाने की कोशिश की थी। उसके घबराने के कारण कार गेट पर ही फट गई। इसके बाद जैश ने क्रिसमस डे पर एक 24 वर्षीय ब्रिटिश नागरिक को अहमद के अंदाज में उसी जगह हमला करने के लिए भेजा था।

    अंतरराष्ट्रीय हालातों का जैश को फायदा

    जैश के दोबारा उठ खड़े होने में एक स्थानीय आतंकवादी कमांडर नूर मोहम्मद तंत्रय ने अहम योगदान दिया था। उसे पुलवामा में 25 दिसंबर, 2017 को मार गिराया गया था। अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी की घोषणा और भारत-पाकिस्तान के खराब रिश्ते को जैश दोनों देशों को एक बार फिर से युद्ध के मुहाने पर खड़ा करने के मौके के तौर पर देखता है। CRPF जवानों पर इस हमले को इसी कड़ी का हिस्सा माना जा रहा है।

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