तालिबान के सदस्यों को पनाह देता है पाकिस्तान- अमेरिकी विदेश मंत्री
आतंकवाद पर पाकिस्तान के दोहरे रवैये पर चोट करते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने सोमवार को कहा कि पाकिस्तान तालिबान के सदस्यों को शरण देता रहा है और अफगानिस्तान में उसके हित अमेरिकी हितों से टकराते हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले हफ्तों में अमेरिका पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों की समीक्षा करेगा और इसके साथ ही ये तय करेगा कि उसे अफगानिस्तान में क्या भूमिका अदा करनी है।
क्या बोले ब्लिंकन?
तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान पर अमेरिकी संसद की पहली सार्वजनिक चर्चा में निचले सदन (कांग्रेस) की विदेशी मामलों की समिति को संबोधित करते हुए ब्लिंकन ने कहा, "पाकिस्तान के (अफगानिस्तान में) कई हित हैं जो हमारे हितों से टकराते हैं। वो अफगानिस्तान के भविष्य के बारे में अपने दावों को सीमित करता रहता है, तालिबान के सदस्यों को शरण देता है... इसके अलावा वो हमारे साथ आतंकवाद विरोधी कई मुद्दों पर सहयोग भी करता है।"
पिछले 20 साल में पाकिस्तान की भूमिका की समीक्षा करेंगे- ब्लिंकन
सांसदों के ये पूछने पर कि क्या अमेरिका के पाकिस्तान के साथ अपने रिश्तों की समीक्षा करने का वक्त आ गया है, ब्लिंकन ने कहा, "आने वाले दिनों और हफ्तों में हम पिछले 20 साल में पाकिस्तान द्वारा निभाई गई भूमिका की समीक्षा करने जा रहे हैं। इसके अलावा आने वाले समय में हम उससे क्या भूमिका अदा कराना चाहते हैं और उसके लिए उसे क्या चाहिए होगा, इसकी समीक्षा भी करेंगे।"
अफगानिस्तान में असफलता से अमेरिका की साख पर लगा बट्टा
बता दें कि अमेरिकी सैनिकों को व्यवस्थित तरीके से अफगानिस्तान से निकालने में असफलता के लिए राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन की तीखी आलोचना हो रही है और इससे पूरी दुनिया में अमेरिका की साख पर बट्टा लगा है। न केवल अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान में होते हुए ही तालिबान ने देश पर कब्जा कर लिया, बल्कि उनकी मौजूदगी में काबुल एयरपोर्ट पर बम धमाके भी हुए जिसमें 170 से अधिक लोग मारे गए।
अफगानिस्तान को गृह युद्ध की स्थिति में छोड़ने के लिए हो रही अमेरिका की आलोचना
20 साल पहले 11 सितंबर, 2001 को न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद अलकायदा को ढूढ़ते हुए अफगानिस्तान आए अमेरिका पर अपने सहयोगी देश को गृह युद्ध की स्थिति में छोड़ने पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। पंजशीर में तालिबान विरोधी लड़ाकों और कार्यवाहक अफगान राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह की कोई मदद न करने और इलाके में तालिबान की ज्यादतियों पर चुप रहने के लिए भी अमेरिका पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।