दुनिया की पहली चिकनगुनिया वैक्सीन को अमेरिका में मिली मंजूरी, 98 प्रतिशत प्रभावी
चिकनगुनिया के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ी उपलब्धि की खबर है। अमेरिका ने चिकनगुनिया की वैक्सीन को मंजूरी दी है। ये इस बीमारी के खिलाफ दुनिया की पहली वैक्सीन है। खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) ने इस बात की जानकारी दी है। बता दें कि हाल ही में FDA ने चिकनगुनिया को 'उभरता हुआ वैश्विक स्वास्थ्य खतरा' बताया था। यह वैक्सीन यूरोप की वेलनेवा कंपनी बनाएगी, जिसे इक्स्चिक नाम दिया गया है।
18 साल से ज्यादा उम्र वालों को दी जाएगी वैक्सीन
FDA के अनुसार, इस वैक्सीन को 18 साल से ज्यादा उम्र और गंभीर जोखिम का सामना कर रहे लोगों को दिया जाएगा। कंपनी ने उत्तरी अमेरिका में 3,500 लोगों पर वैक्सीन के परीक्षण किए हैं। वैक्सीन देने के बाद लोगों में मामूली सिरदर्द, थकान, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, बुखार और मतली जैसे लक्षण देखे गए हैं। परीक्षण के दौरान 1.6 प्रतिशत लोगों में गंभीर प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं और 2 लोगों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा है।
98 प्रतिशत प्रभावशाली है वैक्सीन
द लैंसेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, वैक्सीन ने क्लिनिकल परीक्षण के तीसरे चरण में 'अत्यधिक सुरक्षात्मक' परिणाम प्रदर्शित किए हैं। इसमें कहा गया है कि वैक्सीन का एक डोज देने के 28 दिनों बाद तक ये 98.9 प्रतिशत प्रभावशाली रही है। जिन 266 लोगों को वैक्सीन लगाई गई थी, उनमें से 263 लोगों में इम्यूनिटी को लेकर प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई है। वैक्सीन बनाने वाली कंपनी ने अब यूरोप में भी मंजूरी के लिए आवेदन किया है।
1952 में सामने आया था चिकनगुनिया का पहला मामला
1952 में पहली बार चिकनगुनिया का मामला तंजानिया में सामने आया था। भारत में इसका पहला मामला 1963 में सामने आया था। इसे ब्रेक ब्रेकिंग फीवर के नाम से भी जाना जाता है। अब तक 110 से भी ज्यादा देशों में इसके मामले सामने आए हैं। ये बीमारी एडीज नामक मच्छर से फैलती है। पिछले 15 सालों में दुनियाभर में चिकनगुनिया के 50 लाख से भी ज्यादा मामले सामने आए हैं।
न्यूजबाइट्स प्लस
चिकनगुनिया और डेंगू के लक्षण मिलते-जुलते हैं। आमतौर पर इसके लक्षण कई दिनों तक दिखाई नहीं देते हैं, इस वजह से इसकी गंभीरता भी ज्यादा होती है। इस दौरान मरीज को बुखार, जोड़ों में तेज दर्द और लाल चकत्ते निकल आते हैं। इसका पता RT-PCR टेस्ट के बाद ही चलता है। इसके सबसे अधिक मामले अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और अमेरिका के कुछ हिस्सों में सामने आते हैं।