अनोखी पहल: उत्तराखंड के हर ब्लॉक में बनेगा 'संस्कृत ग्राम', लोगों को सिखाई जाएगी संस्कृत
संस्कृत भारत की प्राचीनतम भाषाओं में से एक है, जिसका प्रमाण भारत के चारों वेदों को माना जा सकता है, क्योंकि ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं। दरअसल, हम यह सब इसलिए बता रहे हैं, क्योंकि उत्तराखंड सरकार संस्कृत का विकास करने के साथ ही इसको रोजगार से जोड़ने की पहल कर रही है। इस प्रोजेक्ट की सूचना राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत ने दी है।
राज्य के हर ब्लॉक को बनाया जाएगा संस्कृत ग्राम
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उत्तराखंड में जल्द ही हर ब्लॉक में एक 100% संस्कृत बोलने वाला गांव होगा। सिंह ने बताया कि यह प्रोजेक्ट श्रीनगर विधानसभा क्षेत्र से पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर मार्च के अंत तक लॉन्च किया जाएगा। उन्होंने आगे बताया, "संस्कृत भाषा के विशेषज्ञ गांवों और ट्रेन का दौरा करेंगे और लोगों को छह महीने के अंदर भाषा बोलने के लिए शिक्षित करेंगे।" अभी इन गांवों का चयन होना बाकी है।
पहले भी हो चुकी है संस्कृत को बढ़ावा देने की पहल
2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा संस्कृत को राज्य की दूसरी आधिकारिक भाषा बनाया गया था। इसके बाद पिछले साल राज्य सरकार ने कक्षा तीसरी से आठवीं तक के सभी सरकारी और निजी स्कूलों में भाषा को अनिवार्य बनाने का फैसला किया था। पद्म पुरस्कार से सम्मानित इतिहासकार शेखर पाठक ने कहा, "भाषा को बढ़ावा देने के लिए यह कदम सराहनीय है लेकिन इसके साथ अन्य स्थानीय भाषाओं पर भी ध्यान देना आवश्यक है।
उत्तराखंड में किया जाता है कई भाषाओं का इस्तेमाल
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि उत्तराखंड के लोग मुख्य रूप से चार भाषाओं का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें हिंदी, कुमाउनी, गढ़वाली और जौनसारी शामिल हैं। यहां गढ़वाली 23.03% लोग, कुमाउनी 19.94% और जौनसारी 1.35% लोग बोलते हैं जबकि हिंदी बोलने वाले लोगों का प्रतिशत 45% है। इसके अलावा, राज्य के पहाड़ी इलाकों में उर्दू, पंजाबी, बंगाली, नेपाली, मैथिली, थारू, दरमिया, ब्यांगसी, चौडांगी और रावत आदि बोली जाती हैं।
भारत के सात गांवों के लोग करते हैं अपने दिनचर्या में संस्कृत का इस्तेमाल
जानकारी के मुताबिक, राज्य में संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए इसी वर्ष की शुरुआत में हरिद्वार स्थित उत्तराखंड संस्कृत अकादमी ने 26 जनवरी, 2020 से अपने परिसर में संस्कृत भाषा को अनिवार्य कर दिया है। इतना ही नहीं, भारत में सात ऐसे भी गांव हैं जहां के स्थानीय लोग अपने दिन-प्रतिदिन के मामलों में संस्कृत भाषा का इस्तेमाल करते हैं। कर्नाटक के बेंगलुरु से 300 किलोमीटर दूर मत्तूर गांव उन्ही में से एक गांव है।