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क्या है सैटेलाइट कनेक्टिविटी और ये कैसे काम करती है?
सैटेलाइट कनेक्टिविटी में मोबाइल टावर की जगह सैटेलाइट से सिग्नल मिलता है

क्या है सैटेलाइट कनेक्टिविटी और ये कैसे काम करती है?

लेखन रजनीश
Feb 26, 2023
02:01 pm

क्या है खबर?

कुछ समय पहले जब ऐपल ने आईफोन 14 लॉन्च किया था, तब सैटेलाइट कनेक्टिविटी काफी चर्चा में रही थी। अब जब आने वाले एंड्रॉयड 14 के साथ ही चिपसेट बनाने वाली मीडियाटेक जैसी कंपनियां सैटेलाइट कनेक्टिविटी वाले सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर पर काम कर रही हैं, तब इसकी चर्चा ने एक बार फिर जोर पकड़ा है। चलिए थोड़ा आसान भाषा में समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर क्या है सैटेलाइट कनेक्टिविटी और ये कैसे काम करती है।

सैटेलाइट

आम फोन को सिग्नल टावर से मिलता है नेटवर्क

अभी आप जो फीचर फोन या स्मार्टफोन इस्तेमाल करते हैं, इसे सिग्नल टावर के जरिए नेटवर्क मिलता है, लेकिन पहाड़ी, जंगली और समुद्री इलाकों में जाने पर नेटवर्क मिलने में दिक्कत होती है। ऐसे इलाकों में सिग्नल टावर नहीं लगे होते हैं तो कनेक्टिविटी में परेशानी होती है। तेज इंटरनेट वाले 3G और 4G नेटवर्क की बात तो छोड़िए, कई बार सिर्फ बात करने या एक छोटा मैसेज भेजने तक के लिए नेटवर्क नहीं मिल पाता है।

संचार

सेना से जुड़े लोग इस्तेमाल करते हैं सैटेलाइट फोन

नेटवर्क न मिलने पर लोगों से संचार करने का कोई तरीका नहीं रह जाता, इसीलिए सेना से जुड़े और विशेष जरूरत वाले लोग सैटेलाइट फोन का इस्तेमाल करते हैं। इनके फोन को सिग्नल या नेटवर्क सैटेलाइट के जरिए मिलता है। इस वजह से जंगल, पहाड़ और समुद्र में भी फोन में नेटवर्क बना रहता है। हालांकि, अब ऐसा देखा जा रहा है कि आने वाले समय में आम लोगों के लिए भी सैटेलाइट सिग्नल की सुविधा दी जा सकती है।

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ऐपल

ऐपल के आईफोन 14 फोन में है सैटेलाइट कनेक्टिविटी फीचर

ऐपल के आईफोन 14 में सैटेलाइट कनेक्टिविटी मिल ही रही है और हाल ही में लॉन्च किए गए सैमसंग के S23 सीरीज फोन में स्नैपड्रैगन का जो चिपसेट दिया गया है, उसमें भी सैटेलाइट कनेक्टिविटी की सुविधा है। हालांकि, अभी सैमसंग ने इस फीचर को एक्टिवेट नहीं किया है। सैमसंग के मुताबिक, फोन में सैटेलाइट कनेक्टिविटी को एक्टिव किए जाने से पहले सैटेलाइट इंफ्रास्ट्रक्चर को तैयार किए जाने की जरूरत है।

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कनेक्टिविटी

कैसे काम करती है सैटेलाइट कनेक्टिविटी?

अंतरिक्ष में कई देशों ने बहुत सैटेलाइट (उपग्रह) भेजे हैं। ये सैटेलाइट लो ऑर्बिट में होते हैं और अपनी कक्षा में पृथ्वी के चारों ओर चक्कर काटते रहते हैं। किसी फोन या डिवाइस में सैटेलाइट कनेक्टिविटी के लिए इन्हीं संचार उपग्रह का इस्तेमाल होता है। इसका मतलब है कि यूजर के ऊपर मौजूद सैटेलाइट से उसका फोन कनेक्ट होगा। यूजर द्वारा भेजा गया मैसेज पहले सैटेलाइट को मिलता है और इसके बाद वहां से इमरजेंसी सर्विस तक सूचना पहुंचती है।

मैसेज

आम फोन कॉल की तुलना में लगता है अधिक समय

सैटेलाइट कनेक्टिविटी के जरिए किए जाने वाले संचार में आम फोन कॉल की तुलना में कुछ सेकंड का अधिक समय लगता है, लेकिन इमरजेंसी की स्थिति में (जब फोन में नेटवर्क न हो) यह उपयोगी साबित हो सकता है। थोड़ा ज्यादा समय लगने के चलते बातचीत को आसान बनाने के लिए ऐपल जैसी कंपनियों ने कुछ टेम्पलेट्स बनाए हैं, जिनसे बात करने में आसानी होगी। इनमें 'क्या आप मुसीबत में हैं' और 'आप कितने लोग हैं' आदि शामिल हैं।

समय

क्या सैटेलाइट कनेक्टिविटी में कोई कमी है?

सैटेलाइट कनेक्टिविटी की खासियत के बाद इसकी एक बड़ी कमी भी जान लीजिए। इसकी कमी यह है कि यदि आप बेसमेंट, अंडरग्राउंड या किसी ऐसी जगह फंसे हैं जहां से खुला आसमान नहीं दिखता तो वहां सैटेलाइट कनेक्टिविटी काम नहीं करती। सैटेलाइट कनेक्टिविटी की तरह ही सैटेलाइट इंटरनेट की सुविधा भी कुछ देशों में मौजूद है। सैटेलाइट इंटरनेट देने वालों में एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक और वन वेब समेत कई कंपनियां शामिल हैं।

जानकारी

सैटेलाइट कनेक्टिविटी के लिए देशों के हैं अपने नियम

सैटेलाइट कनेक्टिविटी और सैटेलाइट इंटरनेट को लेकर देशों के अपने-अपने नियम हैं, जिस वजह से अभी भारत जैसे देश में भी ये सुविधाएं अभी शुरू नहीं हो सकी हैं। हालांकि, अमेरिका और कनाडा जैसे देशों के कुछ इलाकों में ये सुविधाएं शुरू हो चुकी हैं।

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