कोरोना वायरस: भारत में कौन-कौन से टेस्ट किए जाते हैं और इनकी सटीकता कितनी है?
क्या है खबर?
भारत में कोरोना वायरस से संक्रमितों की संख्या 12 लाख के पार पहुंच गई। बढ़ते संक्रमण का देखते हुए सरकार ने भी अब अपनी टेस्टिंग क्षमता को बढ़ाकर प्रतिदिन तीन लाख टेस्ट से ऊपर पहुंचा दिया है।
देश में अब तक 1.45 करोड़ टेस्ट किए जा चुके हैं और जांच के लिए कई प्रकार की तकनीक शामिल हैं जैसे, RT-PCR, ट्रूनेट, एंटीजन आदि।
आइए जानते हैं ये टेस्ट एक दूसरे से कैसे भिन्न हैं और जांच की प्रक्रिया क्या है।
#1
संक्रमण का पता लगाने में सबसे बेहतर है RT-PCR टेस्ट
कोरोना वायरस के संक्रमण का पता लगाने के लिए RT-PCR मशीन भारत ही नहीं पूरी दुनिया में मुख्य रूप से प्रचलित है। इसका अर्थ है 'रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन-पॉलीमरेज चेन रिएक्शन टेस्ट'।
इस मशीन में जांच के लिए नाक और गले से स्वाब लिया जाता है। इस तकनीक से वायरस के RNA का पता चलता है।
वायरस का पता लगाने से पहले RNA को DNA में बदलने के लिए रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन प्रक्रिया अपनाई जाती है।
प्रक्रिया
यह है RT-PCR टेस्ट की प्रक्रिया
इस टेस्ट में जांच के लिए नाक और गले से स्वाब लिया जाता है। जांच के लिए विशिष्ट जैव सुरक्षा और सावधानियों के साथ विशेष लैब सेटअप की आवश्यकता होती है।
सैंपल से प्रोटीन और वसा को हटाने के लिए कैमिकल सोल्यूशन का उपयोग किया जाता है। इसके बाद सैंपल में केवल RNA रह जाता है।
इसके बाद संक्रमण का पता लगाने के लिए सैंपल की RT-PCR मशीन से जांच होती है। इसमें 4-5 घंटे लगते हैं।
जानकारी
एक बार में किए जा सकते हैं 90 टेस्ट
RT-PCR मशीन में एक बाद में 90 टेस्ट किए जा सकते हैं। संक्रमण का पता लगाने में इसकी सटीकता 60-80 प्रतिशत के बीच है। इसी तरह निगेटिव सैंपल को पकड़ने में इसकी सटीकता 90-95 प्रतिशत के बीच है। ऐसे में यह मानक टेस्ट है।
#2
TrueNat में एक दिन में हो सकती है अधिकतम 48 जांच
TrueNat टेस्ट में 60 मिनट के भीतर ही जांच का परिणाम आ जाता है। आमतौर पर इस मशीन से तपेदिक और HIV की जांच होती है।
इसे भारतीय फर्म मोलबायो डायग्नोस्टिक प्राइवेट लिमिटेड द्वारा विकसित किया गया है। 19 मई, 2020 को ICMR ने जांच के इसके उपयोग को मंजूरी दी थी।
इसमें छोटी किट का उपयोग होता है। इसमें एकसाथ 1-4 टेस्ट और एक दिन में 24-48 टेस्ट किए जा सकते हैं।
प्रक्रिया
यह है TrueNat टेस्ट की प्रक्रिया
TrueNat मशीन एक चिप-आधारित पोर्टेबल किट है जो बैटरी पर चलती है। इसमें नाक या मुंह के स्वाब से संक्रमण का पता चलता है।
इसमें जांच के दो चरण होते हैं। पहले चरण में ई-जीन स्क्रीनिंग की जाती है। संदिग्ध मामलों के सभी नमूनों की जांच होती है। सभी निगेटिव को ट्रू नेगेटिव माना जाता है। सभी पॉजीटिव की दूसरे चरण की जांच होती है।
इसमें वायरस के RNA में पाए जाने वाले RDRP एंजाइम का पता लगाया जाता है।
जानकारी
TrueNat में कम होता है जैव सुरक्षा का खतरा
इस जांच में जैव सुरक्षा का खतरा बहुत कम होता है। संक्रमण का पता लगाने में इसकी सटीकता 50-80 प्रतिशत के बीच है। इसी तरह निगेटिव सैंपल को पकड़ने में इसकी सटीकता 90-95 प्रतिशत के बीच है। सभी टेस्ट ICMR पोर्टल पर अपडेट होते हैं।
#3
रैपिड पॉइंट-ऑफ-केयर (POC) एंटीजन डिटेक्शन टेस्ट
ICMR ने 14 जून को कोरोना जांच में इसके उपयोग की सलाह दी थी। इसमें भी RT-PCR टेस्ट की तरह ही वायरस का पता लगाया जाता हैं।
दुनियाभर में कोई भी विश्वसनीय एंटीजन टेस्ट नहीं है।
एंटीजन टेस्ट कोविड केयर सेंटर और स्वीकृत लैब्स से बाहर किया जाता है। इसके परिणाम बहुत जल्दी आते हैं।
इसे दक्षिण कोरियाई कंपनी SD क्योसेंसोर द्वारा विकसित किया गया है। कंपनी की गुरुग्राम के मानेसर में भी एक ईकाई है।
प्रक्रिया
यह है एंटीजन डिटेक्शन टेस्ट की प्रक्रिया
प्रत्येक किट में कोविड एंटीजन टेस्ट डिवाइस, वायरल लेसिस बफर और सैंपल लेने के लिए एक जीवाणुरहित पट्टी के साथ वायरल निकासी ट्यूब लगी होती है।
इसमें नाक का स्वाब लिया जाता है और इसे वायरल निष्कर्षण बफर में डाला जाता है। यह बफर वायरस को निष्क्रिय करता है और जैव सुरक्षा देता है।
इसमें मौके पर ही जांच की जाती है। इसका परिणाम आने में 15 मिनट लगते हैं। इसमें खुली आंखों से भी जांच की जा सकती है।
सटीकता
84 प्रतिशत तक है एंटीजन टेस्ट की सटीकता
ICMR और AIIMS ने एंटीजन किट का परीक्षण किया है। इनके अनुसार इस टेस्ट में संक्रमण का पता लगाने की सटीकता 50.6 प्रतिशत से 84 प्रतिशत के बीच है।
इसमें पॉजिटिव आने वालों का RT-PCR टेस्ट किया जाता है। इसी तरह निगेटिव रिपोर्ट वालों को ट्रू निगेटिव माना जाता है।
ICMR ने कंटेनमेंट जोन या हॉटस्पॉट और चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों की ही एंटीजन टेस्ट किट से जांच करने की अनुमति दी है। इससे टेस्ट संख्या बढ़ी है।
#4
निगरानी के लिए किया जाता है IGG एंटीबॉडी टेस्ट
IGG एंटीबॉडी टेस्ट केवल संक्रमित मरीजों की निगरानी के लिए किया जा रहा है, न कि उनकी पहचान के लिए।
IGG एंटीबॉडी संक्रमण की शुरुआत के दो सप्ताह बाद संक्रमित मरीज के ठीक होने पर दिखने लगती हैं।
ये एंटीबॉडी शरीर द्वारा उत्पादित प्रोटीन हैं और वायरस को बेअसर करने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा उपयोग किया जाता है। ऐसे में यह तीव्र संक्रमण का पता लगाने में उपयोगी नहीं है।
सलाह
IGG एंटीबॉडी टेस्ट को लेकर ICMR ने दी है यह सलाह
ICMR ने IGG एंटीबॉडी टेस्ट का उपयोग संक्रमित के संपर्क में आने वाली आबादी के अनुपात को समझने के लिए सर्पो सर्वेक्षण में करने की सलाह दी है।
इसी तरह कंटेनमेंट जोन या कमजोर आबादी में यह जानने के लिए कि पूर्व में कौन संक्रमित हुआ है और उसके ठीक होने का पता लगाने में करने के लिए कहा है।
इस जांच के लिए संक्रमित के खून का सैंपल लिया जाता है। इसके परिणाम भी 100 प्रतिशत विश्वसनीय नहीं है।
परिणाम
IGG एंटीबॉडी टेस्ट में 30 मिनट में आता है परिणाम
IGG एंटीबॉडी टेस्ट में आमतौर पर 20-30 मिनट में परिणाम आ जाता है। ICMR ने सर्गो सर्वे में केवल IGG आधारित ELISA और CLIA assays का उपयोग करने करने की सलाह दी है।
भारत की पहली एंटीबॉडी टेस्टिंग किट एलिसा NIV पुणे द्वारा विकसित की गई थी। इस किट की सटीकता 92.7 प्रतिशत और 97.9 प्रतिशत विशिष्टता है।
पॉजीटिव बताने की सटीकता 94.4 प्रतिशत और निगेटिव बताने की सटीकता 98.14 प्रतिशत है।