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    क्या एयरलाइन सुरक्षा के लिए खतरा है 5G कनेक्टिविटी?
    5G टेक्नोलॉजी को एयरलाइन्स सुरक्षा के लिए खतरा माना जा रहा है।

    क्या एयरलाइन सुरक्षा के लिए खतरा है 5G कनेक्टिविटी?

    लेखन प्राणेश तिवारी
    Jan 20, 2022
    04:19 pm

    क्या है खबर?

    इंटरनेट कनेक्टिविटी और स्पीड के लिए अगला बड़ा कदम माने जा रहे 5G का तेजी से विस्तार हो रहा है।

    इसी बीच अमेरिकी एयरलाइन्स से जुड़े आधिकारियों ने चेतावनी दी है कि देश में AT&T और वेरिजॉन जैसी कंपनियों की ओर से शुरू की गईं 5G सेवाएं एयरलाइन्स सुरक्षा के लिए खतरा हैं।

    उन्होंने कहा कि नई C बैंड 5G सेवा के चलते हजारों उड़ानें और ढेरों एयरक्राफ्ट्स प्रभावित हो सकते हैं।

    आइए जानते हैं पूरा मामला।

    स्पेक्ट्रम

    अमेरिका में पिछले साल हुई 5G बैंड्स की नीलामी

    अमेरिका में पिछले साल की शुरुआत में मोबाइल फोन कंपनियों के लिए मिड-रेंज 5G बैंड्स की नीलामी की गई।

    वहां 3.7-3.98GHz रेंज वाले स्पेक्ट्रम्स को करीब 80 अरब डॉलर में बेचा गया और इस रेंज को C बैंड कहा जाता है।

    भारत में फिलहाल अभी स्पेक्ट्रम नीलामी नहीं हुई है और सरकार की योजना मार्च-अप्रैल महीने में 5G स्पेक्ट्रम की नीलामी करने की है, जिसके बाद आधिकारिक 5G रोलआउट पर काम शुरू होगा।

    दिक्कत

    5G नेटवर्क से क्यों हो रही है दिक्कत?

    अमेरिकी फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (FAA) ने चेतावनी दी है कि 5G टेक्नोलॉजी आल्टीमीटर जैसे उपकरणों को प्रभावित कर सकती है।

    आल्टीमीटर की मदद से पता किया जाता है कि कोई एयरक्राफ्ट धरती से कितनी ऊंचाई पर उड़ रहा है।

    दरअसल, आल्टीमीटर जैसे उपकरण 4.2-44GHz रेंज में काम करते हैं और जिन फ्रीक्वेंसीज की नीलामी 5G के लिए की गई है, वे इस रेंज के बहुत पास हैं।

    यही वजह है कि नई टेक्नोलॉजी का असर आल्टीमीटर पर पड़ सकता है।

    चिंता

    "40 बड़े अमेरिकी एयरपोर्ट्स पर पड़ेगा असर"

    यूनाइटेड एयरलाइन्स के CEO स्कॉट कर्बी ने पिछले महीने कहा कि FAA के 5G डायरेक्टिव्स के साथ अमेरिका के सबसे बड़े 40 एयरपोर्ट्स के रेडिया आल्टीमीटर्स प्रभावित होंगे।

    अमेरिकी एयरलाइन्स ने चेतावनी दी है कि इन डायरेक्टिव्स का असर रोज उड़ान भरने वालीं चार प्रतिशत फ्लाइट्स पर पड़ेगा।

    आल्टीमीटर्स की मदद ऑटोमेटेड लैंडिंग्स और विंड शीअर जैसे खतरों से बचने के लिए भी ली जाती है, जिसपर 5G का असर पड़ सकता है।

    जरूरत

    5G के लिए क्यों जरूरी है हाई-फ्रीक्वेंसी?

    स्पेक्ट्रम में जितनी हाई-फ्रीक्वेंसी होगी, उतनी ही अच्छी स्पीड मिलेगी।

    यही वजह है कि यूजर्स को सबसे अच्छा 5G अनुभव देने के लिए ऑपरेटर्स हाई-फ्रीक्वेंसीज पर काम करना चाहते हैं।

    जिन C बैंड स्पेक्ट्रम्स की नीलामी हुई है, उनमें से कुछ का इस्तेमाल सैटेलाइट रेडियो के लिए हो चुका है और 5G के साथ इनपर ट्रैफिक बढ़ना तय है।

    टेलिकॉम कंपनियों ने अमेरिका में 50 एयरपोर्ट्स पर बफर जोन्स देने में सहमति दी है, जिससे रिस्क कम किया जा सके।

    सवाल

    दूसरे देशों में क्यों नहीं आई दिक्कत?

    अन्य देशों ने इस बात का ध्यान रखा है कि 5G टेक्नोलॉजी के लिए जो स्पेक्ट्रम रेंज मोबाइल कंपनियों को दी जाए, उसका इस्तेमाल दूसरे किसी कम्युनिकेशन के लिए ना हो रहा हो।

    यूरोपियन यूनियन ने 2019 में 3.4-3.8GHz रेंज के स्टैंडर्ड्स मिड-रेंज 5G फ्रीक्वेंसीज के लिए सेट किए थे।

    साउथ कोरिया ने भी 5G मोबाइल कम्युनिकेशन फ्रीक्वेंसी 3.42-3.7GHz रेंज में रखी है।

    यानी कि अगर सही फ्रीक्वेंसीज इस्तेमाल की जाएं तो 5G नेटवर्क एयरलाइन कम्युनिकेशंस को प्रभावित नहीं करेंगे।

    भारत

    भारत को भी रखना होगा इन बातों का ध्यान

    भारत में 5G कनेक्टिविटी लागू करने के लिए 100Mhz के 5G स्पेक्ट्रम की 3.3-3.6Ghz बैंड्स में जरूरत पड़ेगी।

    टेलिकॉम कंपनियों को ट्रायल्स करने के लिए एक्सपेरिमेंटल स्पेक्ट्रम दिए गए थे, जिनका इस्तेमाल वे अपने उपकरणों और 5G सेवाओं की टेस्टिंग के लिए कर सकती थीं।

    बता दें, भारत की मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस के पास अभी 3300 से 3400MHz बैंड स्पेक्ट्रम उपलब्ध हैं। वहीं, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अपनी जरूरतों के लिए 3400 से 3425Mhz बैंड स्पेक्ट्रम इस्तेमाल करती है।

    डाटा

    न्यूजबाइट्स प्लस

    दूरसंचार विभाग (DoT) ने कहा है कि भारत के मेट्रो और बड़े शहरों को अगले साल सबसे पहले 5G रोलआउट का फायदा मिलेगा। इन शहरों में गुरुग्राम, बेंगलुरू, कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद, हैदराबाद और पुणे जैसे नाम शामिल हैं।

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