भारत में आएगा 'राइट टू रिपेयर' प्रोग्राम, अपने स्मार्टफोन और इलेक्ट्रॉनिक्स खुद कर सकेंगे ठीक
भारत में जल्द खुद का 'राइट टू रिपेयर' प्रोग्राम लॉन्च हो सकता है, जिसका मतलब है कि ग्राहकों को उनके इलेक्ट्रॉनिक्स या स्मार्टफोन्स किसी थर्ड-पार्टी से या फिर खुद रिपेयर करने का विकल्प मिलेगा। ऐपल, गूगल और सैमसंग जैसी कंपनियों की ओर से भारत में उनके सेल्फ-रिपेयर प्रोग्राम्स पहले ही लॉन्च किए जा चुके हैं। इन प्रोग्राम्स का मकसद ग्राहकों के लिए उनके डिवाइस रिपेयर करने की प्रक्रिया को आसान बनाना होता है। आइए इनके बारे में समझते हैं।
क्या होता है राइट टू रिपेयर प्रोग्राम?
नाम से ही समझा जा सकता है कि राइट टू रिपेयर का मतलब ग्राहकों को उनके डिवाइसेज रिपेयर करने से जुड़ा आधिकार देना है। इसके साथ ग्राहक तय कर सकते हैं कि वे स्मार्टफोन या इलेक्ट्रॉनिक्स को रिपेयर करवाने के लिए मैन्युफैक्चरर या ब्रैंड के भरोसे रहते हैं या फिर किसी थर्ड-पार्टी सर्विस सेंटर की मदद लेना चाहते हैं। ज्यादातर मामलों में थर्ड-पार्टी रिपेयर का विकल्प आसानी से उपलब्ध होता है और सभी लोकेशंस पर आधिकारिक सर्विस सेंटर नहीं होते।
थर्ड-पार्टी रिपेयर से इसलिए बचते हैं ग्राहक
ज्यादातर मामलों में स्मार्टफोन या थर्ड-पार्टी रिपेयर की स्थिति में ब्रैंड की ओर से प्रोडक्ट वारंटी खत्म कर दी जाती है। इसके अलावा कई बार जेन्यूइन पार्ट्स ना मिलने के चलते लोकल या डुप्लिकेट पार्ट्स लगा दिए जाते हैं। नया प्रोग्राम इस प्रक्रिया को आसान बनाना चाहता है, जिससे डिवाइस रिपेयर करवाने पर ऐसी चिंता खत्म की जा सके। सरकार मौजूदा रिपेयर इकोसिस्टम में सुधार करते हुए असली पार्ट्स इन थर्ड-पार्टी स्टोर्स और ग्राहकों तक उपलब्ध करवाना चाहती है।
फ्रेमवर्क तैयार करने के लिए बनाई गई कमेटी
डिपार्टमेंट ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स की ओर से बीते गुरुवार को इस बदलाव से जुड़ी जानकारी दी है। विभाग की ओर से बताया गया है कि इसने एडिशनल सेक्रेटरी निधि खरे की अध्यक्षता वाली एक कमेटी तैयार की है। इस कमेटी का काम 'राइट टू रिपेयर' को ध्यान में रखते हुए एक फ्रेमवर्क बनाना होगा। प्रोग्राम ग्राहकों से लेकर ब्रैंड्स और बाकी सभी रिपेयर स्टोर्स के हितों को ध्यान में ऱखते हुए तैयार किया गया है।
ये आइटम्स बनेंगे नए प्रोग्राम का हिस्सा
राइट टू रिपेयर प्रोग्राम में ग्राहकों को सिर्फ स्मार्टफोन्स और टैबलेट्स ही नहीं, बल्कि खेती के औजार, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, ऑटोमोबाइल और ऑटोमोबाइल उपकरण भी शामिल किए गए हैं। यानी कि राइट टू रिपेयर प्रोग्राम में लगभग वे सभी इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल हैं, जिनका इस्तेमाल रोजमर्रा की जिंदगी में और घरों में किया जाता है। आने वाले दिनों में इंडस्ट्री को आफ्टर-सेल स्ट्रैटजी में बदलाव करते हुए इस प्रोग्राम को अपनाना होगा।
न्यूजबाइट्स प्लस
भारत पहला देश नहीं है, जो राइट टू रिपेयर प्रोग्राम लाने जा रहा है। अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और यूरोप के कुछ हिस्सों में पहले ही यह सुविधा यूजर्स को मिल रही है और कंपनियां भारत में भी इसकी शुरुआत कर चुकी हैं।
क्या है राइट टू रिपेयर प्रोग्राम का मकसद?
नए प्रोग्राम का मकसद ग्राहकों को ज्यादा मजबूत बनाना है। इसके अलावा ओरिजनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर्स और थर्ड-पार्टी बायर्स और सेलर्स के बीच ट्रेड की प्रक्रिया भी आसान बनाई जाएगी। साथ ही ई-वेस्ट को कम करने का काम भी किया जाएगा। इसके लिए पुराने स्मार्टफोन्स और गैजेट्स को रीसाइकल किया जा सकता है। तय किया जाएगा कि कंपनियां ग्राहकों को केवल आधिकारिक सर्विस सेंटर से रिपेयर करवाने के लिए बाध्य ना करें।
प्रोग्राम से ऐसे जुड़ पाएंगी कंपनियां
फ्रेमवर्क तैयार होने के बाद कंपनियों को ग्राहकों के साथ डिवाइस या प्रोडक्ट रिपेयरिंग से जुड़ी डीटेल्स मैन्युअल्स शेयर करने होंगे। साथ ही कंपनियों को उन सभी टूल्स का ऐक्सेस भी ग्राहकों को देना होगा, जो रिपेयरिंग के दौरान काम आएंगे। इस दिशा में काम करते हुए कंपनियां थर्ड-पार्टी रिपेयर स्टोर्स के साथ पार्टनरशिप भी कर सकती हैं। हालांकि, उनके सामने डुप्लिकेट और फेक कंपोनेंट्स से बचने की चुनौती भी होगी।