पॉलिटिकल हफ्ता: हिंदू बनाम हिंदुत्व की बहस क्यों खड़ी कर रहे हैं राहुल गांधी?
क्या है खबर?
कांग्रेस सासंद राहुल गांधी ने आज राजस्थान में हुई रैली में हिंदुत्व की राजनीति पर निशाना साधते हुए कहा कि हिंदू और हिंदुत्ववादी दो अलग शब्द हैं और इनका मतलब बिल्कुल अलग है।
उन्होंने कहा कि हिंदू पूरी जिंदगी सत्य को ढूढ़ता है, वहीं हिंदुत्ववादी अपनी पूरी जिंदगी केवल सत्ता को खोजता है।
आइए ये समझने की कोशिश करते हैं कि राहुल आखिरकार हिंदू बनाम हिंदुत्ववादी की ये बहस क्यों खड़ी कर रहे हैं।
परिभाषा
सबसे पहले जानें क्या होता है हिंदुत्व?
हिंदुत्व शब्द के भी सभी अपनी तरह से अलग-अलग मायने निकालते हैं। मुख्य तौर पर इसे एक राजनीतिक विचारधारा माना जाता है।
विनायक दामोदर सावरकर को इसका जनक कहा जाता है और उन्होंने 1923 में 'हिंदुत्व' नाम से पुस्तक प्रकाशित की थी। इसमें उन्होंने बताया था कि एक हिंदू वो है जिसकी मातृभूमि, पितृभूमि और पुण्यभूमि भारत हो।
उनकी इस परिभाषा से इस्लाम और ईसाई धर्म के लोग बाहर रहते हैं, इसलिए हिंदू राष्ट्र में उनकी जगह नहीं बनती।
दक्षिणपंथी खेमा
हिंदुत्व पर RSS और भाजपा के क्या विचार हैं?
शुरूआत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के हिंदुत्व को लेकर सावरकर से मतभेद थे, लेकिन राजनीतिक जरूरतों को देखते हुए उससे उपजी भाजपा ने अयोध्या आंदोलन के समय हिंदुत्व की विचारधारा को आधिकारिक तौर पर अपना लिया।
2014 में नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय पटल पर उभार के बाद से हिंदुत्व की राजनीति अपने चरम पर है और जनमानस में इस विचारधारा की स्वीकृति बढ़ी है। यही स्वीकृति भाजपा को मजबूत और अन्य पार्टियों को कमजोर कर रही है।
असर
हिंदुत्व के उभार का अन्य पार्टियों पर क्या असर हुआ?
हिंदुत्व के उभार ने भारतीय राजनीति की सुई को सेंटर-लेफ्ट से दक्षिणपंथ की तरफ ला दिया है और राजनीतिक लाभ को देखते हुए पार्टियां भी दक्षिणपंथ की तरफ भाग रही हैं।
हिंदू वोटों को खोने के डर से कई पार्टियों ने धर्मनिरपेक्ष शब्द से ही दूरी बना ली है और वे भाजपा की तरह ही तरह-तरह के माध्यमों से हिंदुओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रही हैं।
हालांकि उनके प्रयास हिंदुत्व से ज्यादा हिंदू धर्म पर केंद्रित रहे हैं।
कांग्रेस का रूख
कांग्रेस क्या कर रही है?
वरिष्ठ कांग्रेस नेता एके एंटनी की अध्यक्षता में बनी एक समिति ने अपनी रिपोर्ट में 2014 लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के लिए "अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण" के कारण हिंदुओं की उससे नाराजगी को एक बड़ा कारण बताया था।
तभी से कांग्रेस हिंदुओं की इस नाराजगी को दूर करने के लिए तरह-तरह के प्रयास कर रही है और 'सॉफ्ट हिंदुत्व' का कार्ड भी खेल चुकी है जिसके तहत राहुल गांधी कभी मंदिर गए तो कभी खुद को जनेऊधारी हिंदू बताया।
नया कार्ड
अब हिंदू बनाम हिंदुत्व की बहस क्यों खड़ी कर रहे हैं राहुल गांधी?
कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड सफल नहीं हुआ और इसी कारण अब राहुल गांधी ने हिंदू बनाम हिंदुत्व की बहस को जन्म दिया है।
वे जनता के बीच संदेश देना चाहते हैं कि हिंदू धर्म और हिंदुत्व दो अलग-अलग चीजें हैं और हिंदुत्व हिंदू धर्म की सभी अच्छी चीजों को खत्म कर रहा है।
वे महात्मा गांधी को हिंदू और नाथूराम गोडसे को हिंदुत्ववादी बताकर लोगों में इन दोनों के बीच अंतर साफ करना चाहते हैं।
जानकारी
आखिर करना क्या चाहते हैं राहुल?
राहुल का ये प्रयास राजनीतिक और वैचारिक दोनों प्रतीत होता है। हिंदू बनाम हिंदुत्ववादी की बहस खड़ी करके वह हिंदू वोट बैंक और हिंदुत्व की राजनीति के संबंध को तोड़ना चाहते हैं। अगर ऐसा होता है तो इससे राष्ट्रीय राजनीति का परिदृश्य बदल सकता है।