
भाजपा ने छीना जातिगत जनगणना का मुद्दा, अब क्या होगी कांग्रेस की रणनीति?
क्या है खबर?
भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने एक चौंकाने वाला फैसला लेते हुए जातिगत जनगणना कराने का ऐलान किया है। पारंपरिक तौर पर भाजपा इसकी विरोधी रही है और कांग्रेस ने व्यापक स्तर पर इसका समर्थन किया है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी आए दिन जातिगत जनगणना को लेकर केंद्र सरकार को घेरते रहे हैं। हालांकि, भाजपा ने अब ये मुद्दा छीन लिया है।
आइए जानते हैं कि कांग्रेस की इस मुद्दे पर अब अगली रणनीति क्या हो सकती है।
CWC
कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में करेगी चर्चा
कांग्रेस 2 मई को कार्यसमिति की बैठक करने जा रही है। इसमें जातिगत जनगणना पर चर्चा की जाएगी।
इंडियन एक्सप्रेस से एक सूत्र ने कहा, "हम सरकार की घोषणा के बाद पार्टी के लिए आगे की राह पर चर्चा करना चाहते हैं। जाति जनगणना कांग्रेस की लंबे समय से मांग रही है, यही वजह है कि सरकार ने यह घोषणा की है। हम समयसीमा, बजट और आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा के बारे में सरकार से जवाब चाहते हैं।"
बयान
राहुल बोले- कांग्रेस के विजन को सरकार ने अपनाया
राहुल गांधी ने कहा, "ये हमारा विजन है, जिसे सरकार ने अपनाया है। हमने संसद में कहा था कि हम जातीय जनगणना कराएंगे। हम सरकार से पूछना चाहते हैं कि इसकी टाइमलाइन क्या है? कब और कैसे जनगणना लागू होगी? हम इस फैसले का समर्थन करते हैं और जानना चाहते हैं कि यह कब होगा। तेलंगाना एक मॉडल बना है, जो ब्लू प्रिंट बन सकता है। जातिगत जनगणना को डिजाइन करने में हम सरकार की पूरी तरह मदद करेंगे।"
श्रेय
जातिगत जनगणना पर श्रेय लेने की मची होड़
जातिगत जनगणना पर राजनीतिक पार्टियों में श्रेय लेने की होड़ मची है।
कांग्रेस ने दिल्ली में इसे लेकर एक पोस्टर जारी किया है, जिसमें लिखा है कि झुकती है दुनिया, झुकाने वाला चाहिए।
वहीं, बिहार में जनता दल यूनाइटेड (JDU) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) में भी पोस्टर वॉर शुरू हो गया है। RJD ने इसे महागठबंधन के नेताओं के संघर्ष का फल बताया है।
वहीं, JDU ने लिखा है कि 'नीतीश कुमार ने दिखाया अब देश ने अपनाया।'
जनगणना
क्या होती है जातिगत जनगणना?
जातिगत जनगणना का अर्थ है, जनगणना में भारत की जनसंख्या का जातिवार सारणीकरण करना है।
भारत में 1952 के बाद से जनगणना में केवल अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) को डाटा सार्वजनिक किया जाता है।
इसके अलावा धर्म, भाषा और सामाजिक-आर्थिक स्थिति से संबंधित जानकारियां सार्वजनिक की जाती हैं, लेकिन जातिवार जनसंख्या सार्वजनिक नहीं की जाती है।
भारत में आखिरी जातिगत जनगणना 1941 में हुई थी, लेकिन इसके आंकड़े जारी नहीं किए गए थे।