त्रिपुरा विधानसभा चुनाव: 60 सीटों पर मतदान जारी, 2 मार्च को आएंगे नतीजे
त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के लिए 60 सीटों पर मतदान जारी है। इस बार विभिन्न पार्टियों से कुल 259 उम्मीदवार अपनी सियासी किस्मत आजमा रहे हैं और राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा गठबंधन और कांग्रेस-वाम गठबंधन के अलावा नवगठित आदिवासी पार्टी टिपरा मोथा चुनावी मैदान में है। राज्य में कुल 3,337 मतदान केंद्र बनाए गए हैं और शाम 4 बजे तक मतदान होगा। नतीजों का ऐलान 2 मार्च को किया जाएगा। आइये इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
किस पार्टी के कितने उम्मीदवार मैदान में?
इस बार चुनाव में भाजपा ने 55, CPI (M) ने 43, कांग्रेस ने 13, टिपरा मोथा ने 42 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भी यहां चुनाव लड़ रही है और उसने 28 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं। वहीं 58 निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में है। महिलाओं की बात करें तो भाजपा ने 12, CPI (M) और टिपरा मोथा ने दो-दो, तृणमूल ने तीन और कांग्रेस ने एक महिला उम्मीदवार को टिकट दिया है।
इन सीटों पर रहेगी सबकी नजरें
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा बोरदोवाली सीट से दोबारा चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस ने उनके खिलाफ आशीष कुमार साहा को उतारा है। वहीं उपमुख्यमंत्री जिष्णुदेव वर्मा चारीलम से अपनी सियासी किस्मत आजमा रहे हैं। भाजपा ने केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक को धनपुर सीट पर उतारा है। CPI (M) के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी सबरूम और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बिराजित सिन्हा कैलाशहर से चुनाव लड़ रहे हैं। सिन्हा के खिलाफ भाजपा ने मोहम्मद मोबेशर अली को उतारा है।
राज्य में 100 साल से अधिक के 679 मतदाता
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, त्रिपुरा की अंतिम मतदाता सूची में 28,13,478 मतदाता है। इनमें से 14,14,576 पुरुष, 13,98,825 और 77 किन्नर मतदाता है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी किरण गीते ने बताया कि राज्य में 100 साल से अधिक उम्र के 679 और 80 साल से अधिक उम्र के 38,039 मतदाता है। राज्य में 18-19 साल के 65,000 से अधिक युवा पहली बार अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। हिंसा की आशंक को देखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं।
क्या हैं त्रिपुरा के अहम मुद्दे?
त्रिपुरा चुनाव में कानून-व्यवस्था और बेरोजगारी प्रमुख मुद्दों में से शामिल हैं। इसके अलावा सभी पार्टियां आदिवासी समुदाय के वोट को साधने के लिए उनके लिए विभिन्न विकास योजनाओं की बात कर रही हैं। राज्य के सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना की बहाली भी एक बड़ा मुद्दा है, वहीं कोर्ट के आदेश पर बर्खास्त हुए 10,000 से अधिक सरकारी शिक्षक अपनी दोबारा नियुक्ति किए जाने की मांग कर रहे हैं। बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ भी एक मुद्दा है।
किसका पलड़ा है भारी?
त्रिपुरा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला होने से कांग्रेस-वाम गठबंधन को फायदा होने की उम्मीद है। भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए कांग्रेस और वामदलों में पहली बार गठबंधन हुआ है और इससे पहले दोनों पक्ष यहां हमेशा से एक-दूसरे के धुर-विरोधी रहे हैं। इस गठबंधन में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ज्यादातर सीटों पर चुनाव लड़ रही है। भाजपा को भी रेस से बाहर नहीं माना जा सकता और वह नतीजों से चौंकाने का माद्दा रखती है।
पिछली बार क्या रहे थे नतीजे?
भाजपा ने 2018 में हुए पिछले त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में 43.59 प्रतिशत वोट के साथ 36 सीटें हासिल की थीं और बिप्लब कुमार देब को मुख्यमंत्री बनाया था। वाम गठबंधन 42.2 प्रतिशत वोट प्राप्त करने के बावजूद सिर्फ 16 सीटें हासिल कर पाया था। इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) ने आठ सीटें जीती थीं। भाजपा ने पिछले साल मई में बिप्लब कुमार देब की जगह माणिक साहा को त्रिपुरा का मुख्यमंत्री बना दिया था।