#NewsBytesExplainer: शेट्टार और सावदी के कांग्रेस में जाने से भाजपा को क्या नुकसान हो सकता है?
कर्नाटक चुनाव से पहले आज भाजपा को बड़ा झटका लगा और पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार ने कई दशकों तक भाजपा में रहने के बाद कांग्रेस का हाथ थाम लिया है। शेट्टार लिंगायत समुदाय के प्रमुख नेता हैं और उनसे पहले पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी भी चुनाव टिकट न दिये जाने से नाराज होकर भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। आइये जानते हैं कि इन नेताओं के कांग्रेस में जाने से भाजपा को कितना नुकसान हो सकता है।
कर्नाटक की 25 सीटों पर है शेट्टार का प्रभाव
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कर्नाटक में 25 सीटों पर शेट्टार का प्रभाव है। लिंगायत नेताओं में बीएस येदियुरप्पा के बाद शेट्टार का नाम सबसे आगे आता है। शेट्टार उन नेताओं में से हैं, जिन्होंने कर्नाटक में भाजपा को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई है। शेट्टार सालों से हुबली-धारवाड़ मध्य निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं। ये इलाका भाजपा का मजबूत गढ़ रहा है, लेकिन शेट्टार के कांग्रेस से लड़ने पर यहां समीकरण बदल सकते हैं।
शेट्टार की बेदाग छवि से कांग्रेस को होगा फायदा
कर्नाटक की बसवराज बोम्मई की सरकार पर कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोप लगाती रही है। इन्हीं आरोपों के चलते भाजपा के कई नेताओं को पद तक छोड़ना पड़ा था। भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए शेट्टार एक साफ और बेदाग छवि वाले नेता हैं। उन पर अपने राजनीतिक जीवन में एक भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा है। ऐसे में शेट्टार की बेदाग छवि से कांग्रेस को बहुत फायदा पहुंच सकता है, जिसे वह इस चुनाव में भुना सकती है।
भाजपा को लिंगायत समुदाय के वोटों का होगा नुकसान
उत्तर कर्नाटक भाजपा का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है। शेट्टार इसी इलाके से आते हैं। यहां कांग्रेस की स्थिति काफी कमजोर है और यहां लिंगायत समुदाय का काफी दबदबा है। ऐसे में लिंगायत समुदाय प्रमुख नेता के कांग्रेस में शामिल होने के चलते भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है। राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो कांग्रेस को उम्मीद है कि शेट्टार उत्तर कर्नाटक से लिंगायत समुदाय के वोटों पर सेंध लगाने में कामयाब होंगे।
सावदी भी लिंगायत समुदाय से
शेट्टार से पहले टिकट न मिलने पर भाजपा छोड़ने वाले सावदी भी लिंगायत समुदाय से आते हैं। ऐसे में कर्नाटक के दो वरिष्ठ लिंगायत नेताओं, शेट्टार और सावदी, के भाजपा छोड़ने से लिंगायत वोट बैंक हासिल करने में कांग्रेस सफल हो सकती है। इस बार भाजपा के वरिष्ठ नेता येदियुरप्पा और ईश्वरप्पा कर्नाटक चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। इसका फायदा कांग्रेस को इस चुनाव में हो सकता है।
कांग्रेस से क्यों दूर था लिंगायत समुदाय?
दरअसल, साल 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लिंगायत समुदाय के कद्दावर नेता वीरेंद्र पाटिल को कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था, जिसके बाद से लिंगायत समुदाय के लोग कांग्रेस से दूर हो गए। उस वक्त तत्कालीन जनसंघ नेता येदियुरप्पा किसान और श्रमिक आंदोलनों का नेतृत्व करके लोगों के बीच लोकप्रियता हासिल कर रहे थे और उन्होंने लिंगायतों को भी अपनी ओर आकर्षित किया, जिससे यहां भाजपा के लिए एक ठोस आधार तैयार हुआ।
कर्नाटक में लिंगायत समुदाय का कितना प्रभाव?
कर्नाटक में अनुसूचित जातियों के बाद सबसे ज्यादा प्रभाव लिंगायत समुदाय (17 प्रतिशत) का है। राज्य के अब तक के 23 मुख्यमंत्रियों में से 10 मुख्यमंत्री इसी समुदाय के रहे हैं। भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा इसी समुदाय से आते हैं, वहीं मौजूदा मुख्यमंत्री बोम्मई भी लिंगायत समाज से हैं। इस समुदाय से वर्तमान में 57 विधायक हैं, जिनमें से 37 सत्तारूढ़ भाजपा के हैं। चुनाव में लिंगायत समुदाय भाजपा के पक्ष में खड़ा नजर आता है।
कर्नाटक में कब होना है चुनाव?
कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों पर 10 मई को एक ही चरण में मतदान होगा, वहीं 13 मई को नतीजे जारी किए जाएंगे। उम्मीदवारों के नामाकंन दाखिल करने की आखिरी तारीख 20 अप्रैल है और 24 अप्रैल तक नामांकन वापस लिया जा सकता है। 2018 के चुनाव में भाजपा को 104, कांग्रेस को 80 और JD(S) को 37 सीटें मिली थीं। बता दें कि राज्य में एक मनोनीत सीट को मिलाकर कुल 225 विधानसभा सीटें हैं।