#NewsBytesExplainer: क्यों अहम है लोकसभा स्पीकर का पद और JDU-TDP इसकी क्यों मांग कर रही हैं?
लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को बहुमत मिला है और वो सरकार बनाने की तैयारी कर रहा है। हालांकि, इस बार भाजपा को सीटें कम मिली हैं, इस वजह से जनता दल यूनाइटेड प्रमुख (JDU) और तेलुगु देशम पार्टी (TDP) की भूमिका काफी अहम हो गई है। इन दोनों पार्टियों ने भाजपा से स्पीकर पद की मांग की है। आइए जानते हैं कि लोकसभा स्पीकर पद इतना अहम क्यों होता है।
कैसे चुना जाता है लोकसभा स्पीकर?
चुनावी नतीजों के बाद नई सरकार के गठन के बाद सांसदों को शपथ दिलाने के लिए प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति की जाती है। आमतौर पर प्रोटेम स्पीकर लोकसभा का सबसे वरिष्ठ सांसद होता है। इसके बाद सरकार और विपक्ष मिलकर स्पीकर के लिए उम्मीदवार का नाम घोषित करते हैं। अगर एक से ज्यादा उम्मीदवार हैं तो बारी-बारी से प्रस्ताव रखा जाता है और मतदान भी कराया जाता है। जिसके नाम का प्रस्ताव मंजूर होता है, वो स्पीकर चुना जाता है।
कितना अहम है स्पीकर का पद?
लोकसभा स्पीकर का पद संवैधानिक होता है। वो सदन का औपचारिक और संवैधानिक प्रमुख होता है। वो सदन का सबसे प्रमुख व्यक्ति होता है, जिसकी मंजूरी के बिना सदन में कुछ भी नहीं हो सकता। स्पीकर न केवल सदन के अनुशासन को सुनिश्चित करता है, बल्कि इसके उल्लंघन पर लोकसभा सदस्यों को दंडित करने का भी अधिकार रखता है। इसमें किसी सदस्य को सदन से निष्कासित करने का अधिकार भी शामिल है।
दलबदल कानून को लेकर निर्णायक होती है स्पीकर की भूमिका
जब सदन में बहुमत साबित करना होता है या दलबदल कानून की बात आती है तो स्पीकर की भूमिका काफी अहम हो जाती है। संसद सदस्यों को अयोग्य ठहराने का फैसला स्पीकर पर होता है। सदस्य की अयोग्यता संबंधी मामले में दलबदल विरोधी कानून का नियम 6 स्पीकर को ऐसे सदस्य की अयोग्यता के प्रश्न पर उत्तर देने की शक्ति प्रदान करता है। हालांकि, स्पीकर के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
बहुमत परीक्षण में भी अहम होती है स्पीकर की भूमिका
सदन में बहुमत परीक्षण के दौरान स्पीकर की भूमिका काफी अहम हो जाती है। दोनों पक्षों के वोट समान होने पर स्पीकर को मतदान करने का भी अधिकार होता है। ऐसे में स्पीकर का वोट निर्णायक और महत्वपूर्ण हो जाता है। इसके अलावा स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव, निंदा प्रस्ताव और स्थगन प्रस्ताव को पेश करने की अनुमति देता है। किसी विधेयक को धन विधेयक मानना है या नहीं, इसका फैसला भी स्पीकर करता है।
JDU-TDP क्यों मांग रहे हैं स्पीकर पद?
दरअसल, माना जा रहा है कि सरकार गठन के बाद भाजपा खुद का कुनबा बढ़ाने के लिए सियासी तौर पर तोड़फोड़ कर सकती है। ऐसी स्थिति में स्पीकर की भूमिका काफी अहम हो जाती है। कयास लगाए जा रहे हैं कि मंत्री पद और दूसरे मुद्दों पर गठबंधन में मतभेद हो सकता है। इसलिए अगर भविष्य में कुछ सांसद पाला बदलते हैं या NDA में टूट-फूट होता है तो स्पीकर की भूमिका काफी अहम होगी।
न्यूजबाइट्स प्लस
1998 के लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था और कई पार्टियों के समर्थन से भाजपा ने सरकार बनाई थी। अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे। हालांकि, 13 महीने बाद ही सरकार को अल्पमत साबित करना पड़ा। तब ओडिशा के सांसद गिरधर गोमांग ओडिशा के मुख्यमंत्री बन गए थे, लेकिन लोकसभा से इस्तीफा नहीं दिया था। स्पीकर ने उन्हें वोट डालने की अनुमति दे दी। उन्होंने वाजपेयी के खिलाफ वोट किया और सरकार गिर गई।