कृषि कानून: अकाली दल के बाद राजस्थान के सहयोगी ने भी छोड़ा भाजपा का साथ
क्या है खबर?
राजस्थान में भाजपा की सहयोगी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) ने कृषि कानूनों के मुद्दे पर उसका साथ छोड़ने का ऐलान किया है। शनिवार को इसका ऐलान करते हुए पार्टी प्रमुख हनुमान बेनिवाल ने कहा कि वह ऐसी किसी भी पार्टी के साथ खड़े नहीं होंगे जो किसानों के खिलाफ है और इसलिए राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) को छोड़ रहे हैं।
इस बीच उन्होंने ये भी साफ किया कि वह कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन नहीं करेंगे।
बयान
बेनीवाल बोले- NDA के साथ फेवीकोल से नहीं चिपका हूं
अलवर स्थित राजस्थान-हरियाणा के शाहजहांपुर-खेड़ा बॉर्डर पर प्रदर्शनकारी किसानों को संबोधित करते हुए बेनीवाल ने कहा, "मैं NDA के साथ फेवीकोल से नहीं चिपका हूं। आज मैं खुद को NDA से अलग करता हूं। हम ऐसे किसी के साथ खड़े नहीं होंगे जो किसानों के खिलाफ हैं।"
उन्होंने आगे कहा, "एक फर्जी कोविड रिपोर्ट के जरिए मुझे लोकसभा में घुसने से रोक दिया गया। अगर मैं वहां होता तो मैं सदन में कृषि कानूनों की कॉपियों को फेंक देता।"
जानकारी
हाल ही में बेनीवाल ने दिया था तीन संसदीय समितियों से इस्तीफा
बता दें कि बेनीवाल ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि अगर सरकार इन "काले कानूनों" को रद्द नहीं करती तो वह NDA के साथ बने रहने पर विचार करेंगे। उन्होंने 19 दिसंबर को संसद की तीन समितियों से इस्तीफा भी दे दिया था।
पृष्ठभूमि
भाजपा छोड़ बेनीवाल ने बनाई थी अलग पार्टी
गौरतलब है कि बेनीवाल पहले भाजपा में ही थे और 2018 राजस्थान विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने भाजपा छोड़ अपनी अलग पार्टी बना ली थी।
बाद में उन्होंने 2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया और NDA के घटक दल के तौर पर चुनाव लड़े। इस चुनाव में उन्होंने राजस्थान के नागौर से जीत दर्ज की और वह अपनी पार्टी के एकमात्र सांसद हैं।
जाट और किसान उनके प्रमुख वोटबैंक हैं।
अन्य सहयोगी
सितंबर में अकाली दल ने छोड़ा था NDA
बेनीवाल की RLP कृषि कानूनों के मुद्दे पर भाजपा का साथ छोड़ने वाली दूसरी पार्टी है और इससे पहले भाजपा का सबसे पुराना सहयोगी अकाली दल सितंबर में NDA से अलग हो गया था।
पार्टी सांसद हरसिमरत कौर ने मामले पर मोदी सरकार की कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था, वहीं उसके वरिष्ठ नेता प्रकाश सिंह बादल भी कृषि कानूनों के विरोध में अपना पद्म विभूषण सम्मान लौटा चुके हैं।
अन्य सहयोगी भी भाजपा पर लगातार दबाव डाल रहे हैं।
मुद्दा
क्या है कृषि कानूनों का पूरा मुद्दा?
दरअसल, मोदी सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए तीन कानून लाई है। इनमें सरकारी मंडियों के बाहर खरीद के लिए व्यापारिक इलाके बनाने, अनुबंध खेती को मंजूरी देने और कई अनाजों और दालों की भंडारण सीमा खत्म करने समेत कई प्रावधान किए गए हैं।
पंजाब और हरियाणा समेत कई राज्यों के किसान इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इनके जरिये सरकार मंडियों और MSP से छुटकारा पाना चाहती है।
गतिरोध
असफल रही है पांच दौर की बैठक, 29 दिसंबर को अगले दौर की बैठक
मुद्दे पर सरकार और किसानों के बीच अब तक पांच दौर की औपचारिक और एक बार अनौपचारिक बैठक हो चुकी है। इसके बावजूद अभी तक गतिरोध का कोई समाधान नहीं निकला है।
सरकार कानूनों में संशोधन की बात कह रही है, लेकिन किसान संगठनों की मांग है कि जब तक तीनों कानून वापस नहीं लिए जाते, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा।
किसानों और सरकार के बीच 29 दिसंबर को अगले दौर की बातचीत होनी है।