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कृषि विधेयकों के मुद्दे पर भाजपा के सबसे पुराने सहयोगी अकाली दल ने छोड़ा NDA

कृषि विधेयकों के मुद्दे पर भाजपा के सबसे पुराने सहयोगी अकाली दल ने छोड़ा NDA

Sep 27, 2020
11:06 am

क्या है खबर?

भाजपा के सबसे पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने कृषि विधेयकों के मुद्दे पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) छोड़ दिया है। शनिवार रात पार्टी की उच्च स्तरीय समिति की बैठक में ये फैसला लिया गया। पार्टी के इस फैसले की घोषणा करते हुए अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने कृषि विधेयकों को किसानों के लिए घातक और विनाशकारी बताया। NDA के साथ संबंधों की समीक्षा करने की बात कहकर बादल पहले ही इसे छोड़ने का संकेत दे चुके थे।

बयान

केंद्र सरकार के अड़ियल रवैये के कारण लिया फैसला- बादल

शनिवार रात पार्टी की अहम बैठक के बाद चंडीगढ़ में मीडिया को संबोधित करते हुए सुखबीर बादल ने कहा, "शिरोमणि अकाली दल की कोर समिति की सबसे बड़ी बैठक ने आज सर्वसम्मति से भाजपा के नेतृत्व वाले NDA से बाहर निकलने का फैसला लिया है।" उन्होंने कहा कि पार्टी ने ये फैसला किसानों की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) सुनिश्चित करने के लिए कानूनी गारंटी देने से इनकार के केंद्र सरकार के हठ के कारण लिया है।

बयान

पंजाबियों और किसानों के हितों की रक्षा करेगा अकाली दल- बादल

बादल ने कहा कि अकाली दल शांति और सांप्रदायिक सद्भभावना के अपने मूल सिद्धांत पर बना रहेगा और पंजाब, पंजाबियों, सिखों और खासकर किसानों के हितों का रक्षा करता रहेगा। उन्होंने कहा कि ये फैसला पंजाब के लोगों से चर्चा के बाद लिया गया है।

बयान

हरसिमरत कौर बोलीं- किसानों को अनदेखा करने वाला गठबंधन पंजाब के हित में नहीं

वहीं मुद्दे पर केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे चुकीं हरसिमरत कौर बादल ने भी मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, 'अगर तीन करोड़ पंजाबियों का दर्द और प्रदर्शन भारत सरकार के कठोर रूख को बदलने में नाकाम रहा तो यह अब वाजपेयी जी और बादल साहब द्वारा परिकल्पित NDA नहीं रही है। एक गठबंधन जो अपने सबसे पुराने सहयोगी को अनसुना और देश को खिलाने वालों के अनुरोधों को अनदेखा करता है, वह पंजाब के हित में नहीं है।"

गठबंधन

NDA से बाहर निकलने वाली तीसरी बड़ी पार्टी बनी अकाली दल

बता दें कि मोदी-शाह के राज में अकाली दल तीसरी ऐसी बड़ी पार्टी है जिसने NDA छोड़ा है। इससे पहले शिवसेना और तेलुगू देशम पार्टी (TDP) भी हालिया वर्षों में NDA छोड़ चुकी हैं। अकाली दल 1996 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही भाजपा के साथ गठबंधन में था और वह NDA के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहा है। तब से दोनों पार्टियां एक साथ मिलकर कई बार पंजाब में सरकार बना चुकी हैं।

कारण

ये है अकाली दल के NDA छोड़ने का मुख्य कारण

1920 में जन्म के बाद से ही पंजाब के किसान अकाली दल के मुख्य जनाधार रहे हैं और उनकी बदौलत ही वह राज्य में कई बार सरकार बनाने में कामयाब रही है। इसलिए जब पंजाब के किसान कृषि विधेयकों का जमकर विरोध कर रहे हैं, ऐसे में वह सरकार के साथ खड़ी होकर किसानों की नाराजगी मोल नहीं ले सकती, विशेषकर तब जबकि पंजाब में उसका जनाधार खिसक रहा है और वह यहां तीसरे नंबर की पार्टी बन गई है।

मुद्दा

क्या है कृषि विधेयकों का मुद्दा?

मोदी सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए तीन विधेयक लाई है जिनमें सरकारी मंडियों के बाहर खरीद के लिए व्यापारिक इलाके बनाने, अनुबंध खेती को मंजूरी देने और कई अनाजों और दालों की भंडार सीमा खत्म करने समेत कई प्रावधान किए गए हैं। पंजाब और हरियाणा समेत कई राज्यों के किसान इन बिलों का जमकर विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इनके जरिए सरकार मंडियों और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से छुटकारा पाना चाहती है।