किसानों ने स्वीकार किया सरकार का बातचीत का प्रस्ताव, 29 दिसंबर को बैठक के लिए तैयार
क्या है खबर?
केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों ने सरकार का बातचीत का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है।
40 किसान संगठनों के संयुक्त मोर्चे ने शनिवार को सरकार को पत्र लिखते हुए उसके सामने 29 दिसंबर यानि मंगलवार को सुबह 11 बजे अगले दौर की वार्ता करने का प्रस्ताव रखा है।
किसानों ने ये भी कहा है कि तीनों कानूनों को वापस लिया जाना इस बैठक के लिए उनके एजेंडे में शीर्ष पर है।
बैठक
सिंघू बॉर्डर पर हुई अहम बैठक में लिया गया प्रस्ताव स्वीकार करने का फैसला
केंद्र सरकार के बातचीत के प्रस्ताव पर विचार विमर्श करने के लिए किसान संगठनों ने आज दिल्ली-हरियाणा के सिंघू बॉर्डर पर अहम बैठक बुलाई थी। बैठक दोपहर 3 बजे शुरू हुई और इसमें सरकार का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया।
बैठक के बाद स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कहा कि तीनों कानूनों को वापस लिए जाने का रास्ता और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी के लिए कानून किसानों के दो प्रमुख एजेंडे हैं।
बयान
खुले रहेंगे पंजाब और हरियाणा के टोल प्लाजा
क्रांतिकारी किसान संघ के अध्यक्ष दर्शन पाल ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि पंजाब और हरियाणा में टोल प्लाजा पूरी तरह से खुले रहेंगे और किसान 30 दिसंबर को सिंघू बॉर्डर से ट्रैक्टर मार्च का आयोजन करेंगे।
संवाद
प्रधानमंत्री ने कही थी विरोधियों से बातचीत के लिए तैयार होने की बात
गौरतलब है कि किसानों ने सरकार का प्रस्ताव ऐसे समय पर स्वीकार किया है जब एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के अलग-अलग हिस्सों के किसानों के साथ संवाद करते हुए नए कानूनों को किसान हितैषी बताया था।
उन्होंने कहा था कि नए कानून किसानों के भले के लिए हैं और सरकार इन कानूनों के विरोधियों से भी बात करने को तैयार है।
इस दौरान उन्होंने विपक्ष पर मामले में राजनीति करने का आरोप लगाया था।
बयान
राजनाथ सिंह ने भी की थी किसानों को मनाने की कोशिश
इसके अलावा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी किसानों के सामने प्रस्ताव रखते हुए कहा था कि वे नए कृषि कानूनों को प्रयोग के तौर पर एक-दो साल के लिए लागू होने दें और अगर इनसे फायदा नहीं होता तो सरकार इनमें संशोधन कर देगी।
गतिरोध
बेनतीजा रही है पांच दौर की बातचीत
बता दें कि सरकार और किसानों के बीच अब तक पांच दौर की औपचारिक और एक बार अनौपचारिक बैठक हो चुकी है। इसके बावजूद अभी तक गतिरोध का कोई समाधान नहीं निकला है।
सरकार कानूनों में संशोधन की बात कह रही है, लेकिन किसान संगठनों की मांग है कि जब तक तीनों कानून वापस नहीं लिए जाते, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा।
बीते सोमवार को भी सरकार ने बातचीत का न्योता भेजा था, जिसे किसानों ने ठुकरा दिया था।
कृषि कानून
क्या है किसानों के विरोध की वजह?
केंद्र सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए तीन कानून लाई है।
इनमें सरकारी मंडियों के बाहर खरीद के लिए व्यापारिक इलाके बनाने, अनुबंध खेती को मंजूरी देने और कई अनाजों और दालों की भंडारण सीमा खत्म करने समेत कई प्रावधान किए गए हैं।
पंजाब और हरियाणा समेत कई राज्यों के किसान इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इनके जरिये सरकार मंडियों और MSP से छुटकारा पाना चाहती है।