लद्दाख में 14,300 फीट की ऊंचाई पर स्थापित शिवाजी की प्रतिमा पर क्यों उठा विवाद?
क्या है खबर?
भारतीय सेना ने गत गुरुवार (26 दिसंबर) को लद्दाख में 14,300 फीट की ऊंचाई पर बनी पैंगोंग झील के किनारे छत्रपति शिवाजी महाराज की विशाल प्रतिमा का अनावरण किया। हालांकि, सेना ने इसकी घोषणा 28 दिसंबर को की।
वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास शिवाजी की प्रतिमा का अनावरण एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, लेकिन अब इस पर विवाद शुरू हो गया।
कुछ लोगों ने लद्दाख की संस्कृति के लिए इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाए हैं।
घोषणा
भारतीय सेना ने प्रतिमा के अनावरण पर क्या कहा?
भारतीय सेना की लेह में स्थित 14 कोर (फायर एंड फ्यूरी) ने शनिवार को प्रतिमा के अनावरण की घोषणा की थी।
कोर ने एक्स पर लिखा, 'वीरता, दूरदर्शिता और अटल न्याय के इस विशाल प्रतीक का उद्घाटन फायर एंड फ्यूरी कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल हितेश भल्ला ने किया, जो मराठा लाइट इन्फैंट्री के कर्नल भी हैं। यह प्रतिमा भारतीय शासक की अटूट भावना का जश्न मनाती है, जिनकी विरासत प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।'
विवाद
प्रतिमा को लेकर क्या उठा विवाद?
चुशुल पार्षद कोंचोक स्टैनजिन ने शिवाजी की प्रतिमा का अनावरण करने पर निराशा व्यक्त की है।
उन्होंने एक्स पर लिखा, 'एक स्थानीय निवासी के तौर पर मुझे पैंगोंग में शिवाजी की प्रतिमा पर अपनी चिंताएं व्यक्त करनी चाहिए। इसे स्थानीय लोगों की राय के बिना बनाया गया है। मैं हमारे अद्वितीय पर्यावरण और वन्यजीवों के लिए इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाता हूं। उन परियोजनाओं को प्राथमिकता दें जो हमारे समुदाय और प्रकृति को दर्शाती हैं और उनका सम्मान करती हैं।'
सवाल
पूर्व सैन्य अधिकारियों ने भी उठाए सवाल
कुछ सैन्य अधिकारियों के अनुसार, प्रतिमा शिवाजी की जगह डोगरा जनरल जोरावर सिंह की होनी चाहिए थी। उन्होंने 19वीं सदी में लद्दाख पर विजय पाने के लिए जम्मू की डोगरा सेना का नेतृत्व किया था।
ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, 1834 और 1840 के बीच जनरल सिंह के सैन्य अभियान को तत्कालीन लद्दाख राज्य के डोगरा राज्य के साथ विलय का श्रेय दिया जाता है, जो उस समय लाहौर के महाराजा रणजीत सिंह द्वारा शासित सिख साम्राज्य का हिस्सा था।
तर्क
शिवाजी की प्रतिमा पर आलोचकों का तर्क
पूर्व सैन्य अधिकारी राज भादुड़ी ने एक्स पर लिखा, 'लेकिन कुछ अजीब कारण से शिवाजी की प्रतिमा का मुंह चीन की ओर नहीं है। पैंगोंग में शिवाजी के खिलाफ कुछ भी नहीं, बस इतना है कि वह अपनी कर्मभूमि से बहुत दूर हैं। इस जगह पर जनरल जोरावर सिंह कहलूरिया की मूर्ति लगाना उचित होगा, क्योंकि उन्होंने अपने सैन्य अभियान के दम पर पश्चिमी तिब्बत के 500 मील से अधिक क्षेत्र पर विजय प्राप्त की थी।'
मांग
मेजर शैतान सिंह की प्रतिमा की भी उठी मांग
कुछ आलोचकों का कहना है कि शिवाजी की प्रतिमा वाले स्थान से कुछ ही दूरी पर साल 1962 के हीरो परमवीर चक्र विजेता शैतान सिंह ने चीनी सैनिकों से लड़ते हुए शहादत दी थी, लेकिन उनकी प्रतिमा तो नहीं लगाई गई।
कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि क्या महाराष्ट्र के रायगढ़ किले में जनरल जोरावर सिंह की प्रतिमा लगाई जा सकती है?
ऐसे में शिवाजी की यह प्रतिमा अब विवाद का केंद्र बनकर उभरती नजर आ रही है।
स्थान
क्यों महत्वपूर्ण है प्रतिमा का स्थान?
पैंगोंग झील के तट पर शिवाजी की प्रतिमा भारत और चीन के बीच सीमा पर हाल ही में हुई सैन्य वापसी प्रक्रिया के बीच महत्वपूर्ण है।
135 किलोमीटर लंबी रणनीतिक झील LAC पर फैली हुई है, जो दोनों पड़ोसियों के बीच वास्तविक सीमा है।
अक्टूबर में भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख में LAC पर डेमचोक और देपसांग के दो टकराव बिंदुओं पर सैनिकों की वापसी पूरी कर ली थी। इससे साढ़े चार साल का सीमा गतिरोध खत्म हो गया।