क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड जिसे लागू करने की तैयारी में जुटी है गुजरात सरकार?
गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की भाजपा सरकार ने बड़ा दाव खेलते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू करने की तैयारी शुरू कर दी है। राज्य कैबिनेट ने इसके कार्यान्वयन में तेजी लाने के लिए UCC पर एक विशेषज्ञ समिति के गठन को मंजूरी भी दे दी है। सरकार के इस कदम पर आम आदमी पार्टी (AAP) प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने निशाना भी साधा है। आइए जानते हैं UCC क्या है और इसके क्या फायदे या नुकसान होंगे।
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड?
यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है- देश के सभी वर्गों पर एक समान कानून लागू होना। अभी देश में विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और गोद जैसे मुद्दों पर सभी धर्मों के अपने अलग-अलग निजी कानून हैं और वे उन्हीं के मुताबिक चलते हैं। UCC लागू होने पर सभी धर्मों के लोगों को इन मुद्दों पर भी एक जैसे कानून का पालन करना होगा। ये महज एक अवधारणा है और विस्तार में इसका रूप कैसा होगा, इस पर कुछ तय नहीं है।
संविधान का UCC पर क्या कहना है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में UCC का जिक्र किया गया है। इसमें सरकार को सभी नागरिकों के लिए एक यूनिफॉर्म सिविल कोड बनाने का निर्देश दिया गया है। अभी देश में हिंदू, सिख, बौर्ध और जैन जैसे भारतीय धर्मों के लिए तो हिंदू कोड बिल हैं जो शादी, तलाक और उत्तराधिकार जैसे क्षेत्रों में लागू होते हैं, लेकिन अन्य धर्मों के अलग-अलग कानून हैं। मुस्लिमों पर मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू होता है जिसमें 1937 से खास सुधार नहीं हुआ।
UCC से क्या होगा फायदा?
UCC समर्थकों का तर्क है कि महिलाओं के खिलाफ भेदभाव सभी धर्मों के कानूनों में मौजूद है और UCC लागू किया जाता है तो यह भेदभाव पूरी तरह से खत्म हो सकता है। उनका मानना है कि UCC के लागू होने के बाद कई महिला विरोधी नीति या रूढियां समाज में स्वीकार्य नहीं होगी। धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के अनुसार, UCC व्यक्तिगत कानूनों को भी सुव्यवस्थित कर सकता है और एकता के साथ राष्ट्रवाद की भावना को भी मजबूत कर सकता है।
क्या कहते हैं UCC के विरोधी?
UCC के विरोधियों की सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर है कि इसके जरिए अल्पसंख्यकों पर हिंदू बहुसंख्यकवाद को थोपा जाएगा। संविधान के अनुच्छेद 25 को UCC के खिलाफ भी उद्धृत किया गया है, जिसमें प्रत्येक भारतीय नागरिक को अपने धर्म को मानने और उसका पालन करने और प्रचार करने का अधिकार दिया गया है। उनका तर्क है कि यदि UCC को लागू किया जाता है तो यह लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता में बड़ा हस्तक्षेप होगा।
UCC पर कोर्ट और केंद्र सरकार का क्या रुख है?
देश की विभिन्न कोर्ट कई मौकों पर सरकार को UCC लागू करने की दिशा में कदम उठाने का निर्देश दे चुकी हैं, लेकिन सरकारें इस दिशा में आगे बढ़ने से हिचकती रही हैं। UCC लागू करना मौजूदा भाजपा सरकार का एक बड़ा वैचारिक वादा है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसे लागू करने से पहले इस पर पर्याप्त बहस की जानी चाहिए और अगर UCC का इस्तेमाल केवल सांप्रदायिक राजनीति के संदर्भ में किया जाता है तो ये नुकसानदायक होगा।
आजादी के बाद से ही होती रही है UCC पर चर्चा
भारत में आजादी के बाद से ही UCC की चर्चा होती रही है और संविधान सभा में भी इस पर बहस हुई थी। देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर भी इसी तरह के कानून के पक्ष में थे। हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का मानना था कि विभाजन के दर्द से उभर रहे अल्पसंख्यकों के लिए UCC अच्छा नहीं होगा। ऐसे में यह लागू नहीं हो सका और इस पर लगातार विरोधाभास बना रहा।
UCC लागू करने की घोषणा करने वाला तीसरा राज्य बना गुजरात
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के बाद गुजरात UCC लागू करने की घोषणा करने वाला तीसरा भाजपा शासित राज्य बन गया है। भाजपा शुरू से ही UCC की पक्षधर रही है और संसद में कानून बनाने पर जोर दे रही है। 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान पार्टी ने सबसे पहले UCC लागू करने का वादा किया था। हालांकि, गुजरात सरकार की इस घोषणा को केजरीवाल ने झांसा बताया है। उन्होंने कहा कि चुनाव के बाद यह समिति खत्म हो जाएगी।