क्या है भारत में बनी ATAGS तोप की खासियत जिससे स्वतंत्रता दिवस पर दी गई सलामी?
भारत में प्रत्येक स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले पर प्रधानमंत्री के ध्वजारोहण करने के बाद राष्ट्रगान के शुरू होते हुए 21 तोपों की सलामी देने की परंपरा रही है। अब तक यह सलामी ब्रिटेन में बनी सात तोपों से दी जाती थी, लेकिन इस बाद तस्वीर बदली हुई नजर आई। इस बार ये सलामी भारत में बनी पहली एडवांस्ड टोव्ड आर्टिलरी गन सिस्टम (ATAGS) से दी गई है। आइये जानते हैं भारत में बनी इस ATAGS की खासियत क्या है।
प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने सम्बोधन में किया ATAGS का जिक्र
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ध्वजारोहण करने के बाद राष्ट्रगान के शुरू होते ही ATAGS से सलामी देना शुरू हो गया। इस दौरान 21 तोपों की सलामी दी गई। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने सम्बोधन में कहा, "जिस आवाज को हम हमेशा से सुनना चाहते थे, हम 75 साल बाद सुन रहे हैं। 75 साल बाद तिरंगे को पहली बार भारत में बनी तोप से लाल किले पर औपचारिक सलामी दी गई है। यह देश के लिए गर्व की बात है।"
आखिर क्या है ATAGS?
ATAGS को ट्रक से खींचा जाता है। यह गोला दागने के बाद बोफोर्स की तरह कुछ दूर खुद ही जा सकती है। यानी गोला दागो और भागो । इस तोप का कैलिबर 155 एमएम x 52 होने के कारण इससे 155 एमएम वाले गोले दागे जा सकते हैं। इसे हॉवित्जर भी कहा जाता है। इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि युद्ध में आवश्यकता पड़ने पर इन्हें वाहन के बांधकर आसानी से युद्ध स्थल पर पहुंचाया जा सकता है।
किसने किया है ATAGS तोप का निर्माण?
ATAGS तोप को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की पुणे स्थित लैब आयुध अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (ARDE) ने भारत फोर्ज लिमिटेड, महिंद्रा डिफेंस नेवल सिस्टम, टाटा पॉवर स्ट्रैटेजिक और ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड के सहयोग से विकसित किया है। 2013 में इसके विकास पर काम शुरू हुआ था और पहला कामयाब टेस्ट 14 जुलाई 2016 में किया गया। इसे इस्तेमाल और खासियत की बोफोर्स तोप से मिलती-जुलती समानता के चलते देशी बोफोर्स भी कहा जाता है।
क्या है ATAGS तोप की खासियत?
इस तोप के गोले 48 किलोमीटर दूरी तक मार करते हैं। जबकि उसी गोले को बोफोर्स तोप 32 किमी दूर तक दाग सकती है। यह 155 एमएम श्रेणी में दुनिया में सबसे ज्यादा दूरी तक गोले दागने में सक्षम है। यह तोप -30 डिग्री से 75 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में सटीक फायर कर सकती है। इसकी 26.44 फुट लंबी बैरल से हर मिनट 5 गोले दागे जा सकते हैं। इसमें आटोमैटिक राइफल की तरह सेल्फ लोड सिस्टम भी है।
ATAGS से रात में भी साधा जा सकता है निशाना
ATAGS में गोले लोड करने की स्वचालित तकनीक है। इस तोप से निशाना लगाने के लिए थर्मल साइट सिस्टम भी विकसित किया गया है। ऐसे में इससे रात के अंधेरे में भी निशाना साधा जा सकता है। इसमें वायरलेस कम्युनिकेशन की खूबी भी मौजूद है।
ATAGS की दक्षता के लिए किए गए हैं कई परीक्षण
ATAGS का पहला परीक्षण 14 जुलाई, 2016 को किया गया था। इसके बाद सितंबर 2020 में तोप के उपयोग परीक्षण में बैरल फटने से चार कर्मचारी घायल हो गए थे। नवंबर 2020 में परीक्षण के बाद दोबारा यूजर ट्रायल की अनुमति दी गई। जून 2021 में 15,000 फीट (4,600 मीटर) की ऊंचाई पर ATAGS तोप का सफल परीक्षण किया गया। 26 अप्रैल, 2022 से 3 मई तक पोखरण फील्ड फायरिंग रेंज में एक सप्ताह तक इसका परीक्षण किया गया था।
स्वतंत्रता दिवस की सलामी में क्यों काम ली गई है ATAGS तोप?
स्वतंत्रता दिवस पर दी गई सलामी में ATAGS तोप के इस्तेमाल के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि सरकार 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' को बढ़ावा देना चाहती है। इसके अलावा सरकार ने सलामी में इसे शामिल कर पूरी दुनिया के सामने अपनी इस उपलब्धि को पेश किया है। बता दें कि मुख्य समारोह में सलामी के लिए इस तोप से पिछले सप्ताह से सलामी देने का अभ्यास किया जा रहा था और अब इसमें सफलता मिल गई।
क्या ATAGS तोप से असली गोलों से दी गई है सलामी?
नहीं, स्वतंत्रता दिवस पर ATAGS तोप से दी गई सलामी में असली गोले काम नहीं लिए गए हैं। इस तोप से छोड़े जाने वाले गोले विशेष किस्म के बने होते हैं। इन्हें स्पेशल सेरोमोनियल कार्टरेज कहा जाता है और ये गोले पूरी तरह से खाली होते हैं। इसमें केवल धुआं और आवाज आती है। इसे दागने के बाद आस-पास किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं होता है। हालांकि, इससे गोला दागने पर असली पोप के जैसा अहसास होता है।