#NewsBytesExplainer: क्या है विवादित रैट होल माइनिंग, जिसने उत्तरकाशी सुरंग बचाव अभियान में निभाई अहम भूमिका?
उत्तराखंड के उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूरों को कभी भी बाहर निकाला जा सकता है। 16 दिन तक चले इस बचाव अभियान को कई चरणों में पूरा किया गया। पहले मजदूरों को निकालने के लिए मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा था। हालांकि, लंबी खुदाई के कारण मशीनों में खराबी आ गई, जिसके बाद 'रैट होल माइनिंग' से जुड़े विशेषज्ञों ने इसे अंजाम तक पहुंचाया। आइए समझते हैं कि रैट होल माइनिंग क्या होती है।
क्या होती है रैट होल माइनिंग?
रैट होल माइनिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें खदानों में बहुत छोटी सुरंगें खोदी जाती हैं। ये सुरंगें इतनी संकरी होती हैं कि न तो इनमें बैठा जा सकता है और न ही चला जा सकता है। मजदूर इनमें चूहों की तरह चारों हाथ-पैर का इस्तेमाल कर लेटते हुए जाते हैं, इसलिए इसे रैट होल (चूहे का छेद) माइनिंग कहा जाता है। ऐसी सुरंग बनाने में पतले लोगों या बच्चों का इस्तेमाल होता है, जिन्हें रैट होल माइनर्स कहते हैं।
कितनी तरह की होती है रैट होल माइनिंग?
रैट होल माइनिंग 2 तरह की होती है- इनसाइड कटिंग और कॉल्ड बॉक्स कटिंग। इनसाइड कटिंग में पहाड़ों के किनारों पर सुरंगें बनाई जाती हैं। इसके बाद मजदूर इसके अंदर जाकर खुदाई करते हैं। कॉल्ड बॉक्स कटिंग में खुदाई आयताकार रूप में की जाती है। ये सुरंगें 10 से 100 वर्ग मीटर तक की होती हैं। इसमें पहले 100 से 400 फीट ऊर्ध्वाधर खुदाई के बाद क्षैतिज रूप सुरंग बनाई जाती हैं।
रैट होल माइनिंग विवादित क्यों है?
रैट होल माइनिंग काफी असुरक्षित होती है। आमतौर पर इसे पारंपरिक औजारों और तरीकों से किया जाता है, इसलिए सुरक्षा संबंधी उपाय न के बराबर होते हैं। रैट होल माइनिंग से बनाई जाने वाली सुरंगें इतनी पतली होती हैं कि थोड़ा-सा भी मलबा धंसने की स्थिति में इनसे बाहर नहीं आया जा सकता। बरसात के मौसम में इन सुरंगों में पानी भरने से मजदूर फंस जाते हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों में इस तरह की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं।
NGT ने रैट होल माइनिंग पर लगा रखा है प्रतिबंध
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने 2014 में रैट होल माइनिंग समेत सभी तरह के 'अवैज्ञानिक और अवैध खनन' पर प्रतिबंध लगा दिया था। NGT के अनुसार, बरसात के मौसम में रैट होल माइनिंग की वजह से घटनाओं के कई मामले सामने आए हैं और खदानों में पानी भरने की वजह से कर्मचारियों और श्रमिकों की मौत हो जाती है। इसके बावजूद पूर्वोत्तर राज्यों में गुपचुप तरीके से रैट होल माइनिंग के मामले सामने आते रहते हैं।
मेघालय में होती है सबसे ज्यादा रैट होल माइनिंग
पूर्वोत्तर राज्यों, खासतौर पर मेघालय में, रैट होल माइनिंग बेहद प्रचलित है। मेघालय में खदानों से कोयला निकालने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। दरअसल, मेघालय की खदानों में मौजूद कोयले में सल्फर की मात्रा ज्यादा होती है। इस वजह से इसकी गुणवत्ता इतनी अच्छी नहीं होती। स्थानीय व्यापारी ही औने-पौने दाम पर इस कोयले को खरीद लेते हैं। थोड़ी बहुत कमाई के लिए आमतौर पर स्थानीय आदिवासी लोग ही इन खदानों में रैट होल माइनिंग करते हैं।
रैट होल माइनिंग से संबंधित हालिया बड़े हादसे
13 दिसंबर, 2018 को मेघालय के पूर्वी जयंतिया हिल्स जिले में कोयला खदान में रैट होल सुरंग धंसने से 15 मजदूर फंस गए थे। लंबे चले बचाव अभियान के बाद 17 जनवरी को सड़ी-गली हालत में एक मजदूर का शव बरामद हुआ था। बाकी 14 लोगों का अभी तक कोई पता नहीं चला। जून, 2021 में भी इसी तरह की एक खदान धंसने से 5 नाबालिग मजदूर फंस गए थे, जो कभी बाहर नहीं निकाले जा सके।