क्या है नेहरू-लियाकत समझौता जिसका अमित शाह ने किया जिक्र?
सोमवार को नागरिकता (संशोधन) बिल पर लोकसभा में बहस के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने नेहरू-लियाकत समझौते का जिक्र किया था। शाह ने कहा था कि अगर पाकिस्तान ने इस समझौते का पालन किया होता तो आज सरकार को नागरिकता (संशोधन) बिल की जरूरत नहीं पड़ती। साल 1950 में हुआ ये नेहरू-लियाकत समझौता आखिर क्या था और ये कितना सफल या असफल रहा, आइए इस पर एक नजर डालते हैं।
देश के विभाजन और पलायन की पृष्ठभूमि में हुआ था समझौता
अप्रैल 1950 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के बीच दिल्ली में एक समझौता हुआ था जिसे आमतौर पर नेहरू-लियाकत समझौते के नाम से जाना जाता है। देश के विभाजन के समय दंगों और दोनों देशों से अल्पसंख्यकों के पलायन की पृष्ठभूमि के बीच ये समझौता हुआ था। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर को लेकर भी दोनों देशों में तनाव था और आर्थिक रिश्ते बंद हो चुके थे।
ये थे समझौते के मुख्य बिंदु
नेहरू-लियाकत समझौते का मुख्य लक्ष्य पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से हिंदुओं और भारत के पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा से मुस्लिमों के पलायन को रोकना था। इस समझौते के अनुसार, दोनों देश शरणार्थियों को बिना परेशान किए उनकी संपत्ति पर लौटने देने, अगवा की गई महिलाओं और लूटी गई संपत्ति को वापस करने, जबरन धर्म परिवर्तन को रद्द करने और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का संरक्षण करने पर राजी हुए थे।
समझौते के विरोध में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने दिया था नेहरू सरकार से इस्तीफा
समझौते को लेकर तब नेहरू सरकार में उद्योग मंत्री रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने सरकार से इस्तीफा दे दिया था। मुखर्जी ने बाद में भारतीय जन संघ नामक पार्टी बनाई जिसने अंत में भाजपा को जन्म दिया। इस बीच समझौते के अहम बिंदुओं को लागू करने के लिए दोनों देशों में अल्पसंख्यक आयोग बनाया गया था और ये कुछ हिस्सों में विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच विश्वास बहाली करने में कामयाब रहा था।
समझौते की सफलता और असफलता को लेकर होती रही है बहस
नेहरू-लियाकत समझौता अपने निर्धारित लक्ष्य हासिल करने में कितना कामयाब रहा, इसे लेकर हमेशा बहस होती रही है। भारत ने तो अपनी तरफ से समझौते का पूरा पालन किया, लेकिन पाकिस्तान की ओर से ऐसा नहीं किया गया। समझौते के कई महीने बाद तक पूर्वी पाकिस्तान से हिंदुओं का पलायन जारी रहा। ये किसी से छिपा नहीं है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार लगातार जारी रहा और वहां उनकी हालत बदतर है।
पड़ोसी मुल्कों में अल्पसंख्यकों की इसी हालत की तरफ शाह ने किया इशारा
अमित शाह ने सोमवार को लोकसभा में अपने बयान के जरिए पाकिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की इसी खराब हालत की तरफ इशारा किया था और इसे नेहरू-लियाकत समझौते की असफलता का सबूत बताया था।