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    #NewsBytesExplainer: क्या होता है नार्को टेस्ट और क्या है इसका कानूनी पक्ष?
    WFI अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह ने पहलवानों को नार्को टेस्ट कराने की चुनौती दी है

    #NewsBytesExplainer: क्या होता है नार्को टेस्ट और क्या है इसका कानूनी पक्ष?

    लेखन आबिद खान
    May 24, 2023
    08:22 pm

    क्या है खबर?

    भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पहलवान पिछले एक महीने से धरने पर बैठे हैं। खिलाड़ियों की मांग है कि बृजभूषण को गिरफ्तार किया जाए।

    इस बीच बृजभूषण ने पहलवानों को नार्को टेस्ट कराने की चुनौती दी है। पहलवानों ने भी उनकी चुनौती स्वीकार करते हुए कहा कि वे नार्को टेस्ट के लिए तैयार हैं, लेकिन इसका लाइव प्रसारण होना चाहिए।

    आइए समझते हैं नार्को टेस्ट क्या होता है।

    मांग

    बृजभूषण वाले मामले में क्यों उठी नार्को टेस्ट की मांग?

    10 मई को ओलंपिक पदक विजेता पहलवान साक्षी मलिक ने बृजभूषण को नार्को टेस्ट कराने और बेगुनाही साबित करने की चुनौती दी थी।

    इसके बाद 21 मई को बृजभूषण ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर कर कहा कि वे नार्को टेस्ट, पॉलीग्राफ टेस्ट या लाई डिटेक्टर टेस्ट कराने के लिए तैयार हैं, बशर्ते विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया भी यह टेस्ट कराएं।

    फोगाट और पूनिया ने उनकी नार्को टेस्ट की चुनौती को स्वीकार कर लिया।

    नार्को

    क्या होता है नार्को टेस्ट?

    नार्को टेस्ट सच जानने की एक मेडिकल प्रक्रिया है, जिसे 'ट्रुथ सीरम टेस्ट' भी कहा जाता है।

    इसमें व्यक्ति के शरीर में इंजेक्शन के जरिए सोडियम पेंटोथल, सोडियम थायोपेंटल, स्कोपोलामाइन या सोडियम एमाइटल का प्रवेश कराया जाता है। यह सभी रसायन एक प्रकार का एनेस्थीसिया होते हैं, जो इंसान को कृत्रिम निद्रावस्था या लगभग बेहोशी की हालत में ले जाते हैं।

    इसके बाद व्यक्ति से सवाल-जवाब कर सच का पता लगाने की कोशिश की जाती है।

    साइंस

    क्या है इस टेस्ट का पीछे का विज्ञान?

    एनेस्थीसिया के प्रभाव में रहने वाला व्यक्ति न तो पूरी तरह बेहोश रहता है और न पूरी तरह होश में रहता है। उसकी झूठ गढ़ने की क्षमता खत्म हो जाती है।

    लगभग बेहोशी की हालत में व्यक्ति अपने जवाबोंं को घुमा-फिरा पाने की स्थिति में नहीं होता है, इसलिए सीधे जवाब देता है।

    व्यक्ति की तर्क करने की शक्ति भी कार्यशील नहीं रहती, इस वजह से वह वो बातें भी बोल देता है, जो सामान्य अवस्था में नहीं बोलना चाहता।

    परीक्षण

    टेस्ट से पहले होती है व्यक्ति की जांच

    किसी भी व्यक्ति का नार्को टेस्ट करने से पहले उसकी शारीरिक जांच की जाती है।

    टेस्ट के लिए दी जाने वाली दवा के ओवरडोज के कारण व्यक्ति कोमा में जा सकता है या उसकी मौत भी हो सकती है, इसलिए पहले व्यक्ति की शारीरिक जांच की जाती है। इसमें चेक किया जाता है कि व्यक्ति पर टेस्ट किया जा सकता है या नहीं।

    टेस्ट से पहले व्यक्ति की सेहत, उम्र, लिंग जैसे कई पैमानों को ध्यान में रखा जाता है।

    सफलता

    कितना सफल होता है नार्को टेस्ट?

    नार्को टेस्ट की सफलता पर हमेशा से संदेह किया जाता रहा है। कई अपराधी इतने शातिर होते हैं कि दवा के प्रभाव में भी गोलमटोल जवाब देने में सक्षम होते हैं।

    कई बार दवा के कम डोज से भी अपराधी सोच-समझकर जवाब देने लगता है।

    विशेषज्ञों का मानना है कि जरूरी नहीं कि नार्को टेस्ट में व्यक्ति हमेशा सच ही बोले। जवाबों में कई बार सच की मात्रा कम-ज्यादा हो सकती है।

    कानून

    नार्को टेस्ट को लेकर क्या है कानूनी पक्ष?

    भारत में नार्को टेस्ट कोर्ट के आदेश के बिना नहीं किया जा सकता है। इसे करने के लिए आरोपी/अपराधी की सहमति लेनी भी जरूरी होती है।

    टेस्ट के परिणामों को कोर्ट में प्राथमिक सबूत के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता क्योंकि इसके जवाब लगभग बेहोशी की हालत में दिए जाते हैं।

    हालांकि, कोर्ट तथ्यों और परिस्थितियों के हिसाब से टेस्ट के परिणामों को सीमित स्वीकार्यता दे सकता है।

    विरोध

    क्यों होता है नार्को टेस्ट का विरोध?

    नार्को टेस्ट का निजता के उल्लंघन और आत्म-दोषारोपण को लेकर विरोध होता है।

    भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत किसी भी अपराध के आरोपी को खुद के ही खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। नार्को टेस्ट में आरोपी या अपराधी से स्वयं अपराध के बारे में जानकारी निकलवाई जाती है, जो अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन माना जाता है।

    बेहोशी की हालत में निजी जानकारी प्राप्त करने को निजता का उल्लंघन भी माना जाता है।

    मामला

    क्या है बृजभूषण और पहलवानों के बीच विवाद?

    कई महिला पहलवानों ने बृजभूषण पर यौन शोषण का आरोप लगाया है। इसे लेकर पहलवान 23 अप्रैल से जंतर-मंतर पर धरने पर बैठे हैं।

    सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मामले में दिल्ली पुलिस ने 2 FIR दर्ज की हैं और 10 सदस्यीय विशेष जांच दल (SIT) मामले की जांच कर रहा है।

    इससे पहले जनवरी में भी पहलवान धरने पर बैठे थे। तब एक समिति के गठन के बाद पहलवानों ने धरना खत्म कर दिया था।

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