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    राजनीति

    क्या होता है परिसीमन और जम्मू-कश्मीर में इस पर विवाद खड़ा क्यों हुआ?

    क्या होता है परिसीमन और जम्मू-कश्मीर में इस पर विवाद खड़ा क्यों हुआ?
    लेखन मुकुल तोमर
    Dec 20, 2021, 08:41 pm 1 मिनट में पढ़ें
    क्या होता है परिसीमन और जम्मू-कश्मीर में इस पर विवाद खड़ा क्यों हुआ?
    क्या होता है परिसीमन और जम्मू-कश्मीर में इस पर विवाद क्यों खड़ा हुआ?

    जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग के मसौदे पर केंद्र शासित प्रदेश में बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। आयोग ने अपने मसौदे में जम्मू में छह और कश्मीर में एक विधानसभा सीट बढ़ाने की सिफारिश की है। घाटी की सभी पार्टियों ने इसका विरोध करते हुए इसे प्रदेश की सत्ता के संतुलन को बदलने की कोशिश बताया है। चलिए आपको विस्तार से बताते हैं कि परिसीमन आखिर होता क्या है और जम्मू-कश्मीर में इसे लेकर विवाद क्यों हो रहा है।

    परिसीमन क्या होता है?

    समय के साथ जनसंख्या में बदलाव के कारण किसी लोकसभा या विधानसभा क्षेत्र की सीमाओं के पुनर्निर्धारण की प्रक्रिया को परिसीमन कहा जाता है। परिसीमन आयोग ये कार्य करता है। यह एक स्वतंत्र निकाय होता है जिसके फैसले को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती। इसका उद्देश्य इस तरह से सीमाएं निर्धारित करना होता है कि सभी सीटों के अंतर्गत लगभग बराबर आबादी आए। ये सीटों की संख्या घटा और बढ़ा भी सकता है।

    परिसीमन को कौन लागू करता है?

    परिसीमन का आदेश राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की गई तारीख को लागू होता है। इससे पहले इसे लोकसभा और संबंधित राज्य की विधानसभा में भी पेश किया जाता है, हालांकि ये आदेश में कोई भी बदलाव नहीं कर सकती हैं।

    जम्मू-कश्मीर में क्यों बनाया गया परिसीमन आयोग और इसमें कौन शामिल?

    5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने और इसे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के रूप में दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के कारण यहां परिसीमन की जरूरत पड़ी है। सरकार ने 6 मार्च, 2020 को परिसीमन आयोग का गठन किया था जिसकी अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट की रिटायर जज रंजना प्रकाश देसाई हैं। चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा और जम्मू-कश्मीर चुनाव आयुक्त केके शर्मा भी इसके स्थायी सदस्य हैं। जम्मू-कश्मीर के पांचों सांसद आयोग के सहयोगी सदस्य हैं।

    आज दिल्ली में हुई बैठक में क्या हुआ?

    आज दिल्ली में हुई बैठक में परिसीमन आयोग ने सहयोगी सदस्यों को परिसीमन की अपनी योजना का पहला मसौदा पेश किया। इन सदस्यों से दिसंबर के अंत तक इसे लेकर अपने सुझाव आयोेग के साथ साझा करने को कहा गया है। इन सदस्यों में नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के तीन सांसद, फारूक अब्दुल्ला, एम अकबर लोन और हसनैन मसूदी, और भाजपा के दो सांसद, जितेंद्र सिंह और जुगल किशोर शर्मा, शामिल हैं।

    परिसीमन के मसौदे में क्या है?

    परिसीमन के मसौदे में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 करने की सिफारिश की गई है। इनमें से 24 सीटें पहले की तरह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में ही होंगी, वहीं जम्मू में सीटों की संख्या 37 से बढ़ाकर 43 और कश्मीर में 46 से बढ़ाकर 47 करने की सिफारिश की गई है। अनुसूचित जनजातियों के लिए नौ और अनुसूचित जातियों के लिए सात सीटें आरक्षित करने की सिफारिश भी की गई है।

    क्या जम्मू और कश्मीर की सीटों पर बराबर होगी आबादी?

    परिसीमन आयोग के अनुसार, उसने 2011 की जनगणना के आधार पर ये मसौदा तैयार किया है। 2011 में कश्मीर की आबादी 68.8 लाख थी जो जम्मू की 53.5 लाख आबादी के मुकाबले 15 लाख अधिक थी। अगर मसौदा लागू होता है तो कश्मीर में प्रति 1.46 लाख आबादी पर एक सीट होगी, वहीं जम्मू में यह आंकड़ा 1.25 लाख रहेगा। जनसंख्या और सीटों के अनुपात में यही अंतर विवाद का कारण है।

    कश्मीर की पार्टियों ने मसौदे पर क्या कहा?

    कश्मीर की सभी पार्टियों ने परिसीमन के इस मसौदे को खारिज कर दिया है और इसे पक्षपाती और अस्वीकार्य करार दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि आयोग की सिफारिशें अस्वीकार्य हैं और जम्मू को छह और कश्मीर को एक सीट देना 2011 की जनगणना के हिसाब से उचित नहीं है। पीपल्स डेमोक्रेडिट पार्टी (PDP) की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि जनगणना को नजरअंदाज करके सरकार लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करना चाहती है।

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