सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, जल्लीकट्टू, कंबाला और बैलगाड़ी दौड़ को ठहराया कानूनी तौर पर वैध
सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू, कंबाला और बैलगाड़ी दौड़ पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। जल्लीकट्टू तमिलनाडु, कंबाला कर्नाटक और बैलगाड़ी दौड़ महाराष्ट्र में आयोजित की जाती है। कोर्ट ने कहा कि राज्यों की ओर से इस संबंध में कानून में किए गए संशोधन वैध हैं और यह क्रूरता से नहीं, बल्कि संस्कृति से जुड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की पीठ ने ये फैसला सुनाया है।
जल्लीकट्टू पर फैसले के लिए विधानसभा सही जगह- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तमिलनाडु सरकार ने जल्लीकट्टू को संस्कृति का हिस्सा घोषित कर दिया है तो हम इस पर अलग नजरिया नहीं दे सकते, ये फैसला लेने के लिए विधानसभा सही जगह है। कोर्ट ने कहा, "हम इस बात से सहमत हैं कि जल्लीकट्टू तमिलनाडु में पिछली एक सदी से चल रहा है। यह संस्कृति का हिस्सा है या नहीं, इसके लिए अधिक विस्तार की आवश्यकता है, जो न्यायपालिका नहीं कर सकती है।"
क्या है मामला?
2011 में सरकार ने बैलों के प्रशिक्षण और प्रदर्शनी पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) ने जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। तमिलनाडु सरकार की मांग पर 2016 में केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर कुछ शर्तों के साथ जल्लीकट्टू के आयोजन को मंजूरी दी। महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी कानून लाकर कंबाला और बैलगाड़ी दौड़ को अनुमति दी गई।
राज्य लेकर आए थे कानून
2017 में तमिलनाडु सरकार ने एक विधेयक पारित कर जल्लीकट्टू के आयोजन को पशु क्रूरता अधिनियम से बाहर रखने का फैसला लिया था। महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी इसी तरह के कानून पारित किए गए थे। इसके खिलाफ PETA फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। मामले की सुनवाई जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, ऋषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार की पीठ कर रही थी। पीठ ने 8 दिसंबर, 2022 को मामले में सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
क्या है जल्लीकट्टू?
तमिलनाडु में पोंगल के तीसरे दिन बैलों की पूजा के बाद जल्लीकट्टू का आयोजन होता है। इसमें भीड़ के बीच एक सांड को छोड़ दिया जाता है और खिलाड़ी उसे काबू में करने की कोशिश करते हैं। इसे एरु थझुवुथल और मनकुविरत्तु के नाम से भी जाना जाता है। जो खिलाड़ी बैल को 15 मीटर के भीतर काबू में कर लेता है, उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है। इस खेल को करीब 2,500 साल पुराना बताया जाता है।
क्या है कंबाला?
कंबाला दौड़ की चर्चा सबसे पहले तब हुई थी, जब श्रीनिवास गौड़ा नामक शख्स ने 100 मीटर की दूरी मात्र 9.55 सेकंड में पूरी कर ली थी। दरअसल, ये कर्नाटक में आयोजित होने वाली पारंपरिक सालाना भैंसा दौड़ है। कीचड़ से सने रास्ते पर दो भैंसों को बांधकर उन्हें हांका जाता है। जो खिलाड़ी भैंसों को लेकर सबसे पहले फिनिश लाइन तक पहुंचता है, उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है।