सुप्रीम कोर्ट ने सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने को कहा, मानदंडो को बताया मनमाना
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई हुई।
इसमें सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को स्थायी कमीशन देने के सेना के मूल्यांकन मानदंडो को मनमाना करार देते हुए उन पर फिर से विचार करने को कहा।
इसके साथ सेना अधिकारियों को दो महिने में पात्र महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने पर विचार करने के भी आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश सेना के लिए बड़ा झटका है।
प्रकरण
सेना की 17 महिला अधिकारियों ने दायर की थी याचिका
बता दें कि सेना में स्थायी कमीशन नहीं मिलने को लेकर भारतीय सेना की 17 महिला अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की दी।
इसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद सेना ने महिला अधिकारियों को 50 प्रतिशत तक स्थायी कमीशन नहीं दिया गया है।
उन्होंने यह भी कहा था कि स्थायी कमीशन के पात्रताओं को पूरी करने के बाद अधिकारियों द्वारा उनकी अनदेखी की जा रही है।
सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने सेना की मूल्यांकन मानदंड प्रकिया को बताया भेदभावपूर्ण
मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस डॉ डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि महिला अधिकारियों को सेना में स्थायी कमीशन देने के लिए मूल्यांकन मानदंड प्रक्रिया मनमाना और भेदभावपूर्ण है। सेना के इस तरीके से महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने का सामान अवसर नही पाएगी।
कोर्ट ने कहा कि सेना के अधिकारियों को अगले दो महीनों में पात्र महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने पर विचार करना होगा।
टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की पालना नहीं करना पूरी तरह से गलत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है की सेना की वार्षिक गोपनीय रिकॉर्ड (ACR) प्रक्रिया को ज्यादा पारदर्शी बनाचा जाना चाहिए। ऐसे में सेना को मूल्यांकन की प्रक्रिया नए सिरे से निर्धारित करते हुए महिला अधिकारियों से भेदभाव को खत्म करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2020 के अपने फैसले के बावजूद सेना में महिला अधिकारियों को फिटनेस और अन्य योग्यताओं को पूरा करने के बाद स्थायी कमीशन नही दिए जाने को गलत बताया है।
बयान
पुरुषों के लिहाज से तैयार की गई समाज की संरचना- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हमारे समाज की संरचना पुरुषों द्वारा पुरुषों के लिए बनाई गई है। कुछ हानिरहित दिखते हैं, लेकिन यह हमारे समाज का पितृसत्तात्मक प्रतिबिंब है। सेना के मेडिकल नियम भी पुरुष प्राथमिकता को दिखाते हुए महिलाओं से भेदभाव करते हैं।"
पृष्ठभूमि
दिल्ली हाई कोर्ट ने 2010 में दिया था महत्वपूर्ण फैसला
बता दें कि सेना में महिलाओं को स्थाई कमीशन देने को लेकर 2010 में दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया था।
इसके बाद सेना और सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी थी, लेकिन फरवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था।
उस दौरान कोर्ट ने कहा था कि मेडिकल फिटनेस और शरीर के आकार के आधार पर स्थायी कमीशन नहीं देना भेदभाव पूर्ण और अनुचित है।
हालात
615 महिला अधिकारियों में से महज 277 को मिला स्थायी कमीशन
बता दें कि फरवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने सेना को पात्र महिला अधिकारियों को एक महीने में स्थायी कमीशन देने का आदेश दिया था, लेकिन इसकी सही तरह से पालना नहीं हुई।
वर्तमान में सेना में सभी मानदंडों को पूरा करने के बाद 615 महिला अधिकारी स्थायी कमीशन के लिए पात्र है, लेकिन सेना की मनमानी के कारण अभी तक महज 277 महिला अधिकारियों को ही स्थायी कमीशन दिया गया है। यह बड़ा सोचनीय विषय है।