मुफ्त उपहारों के चुनावी वादों पर सुप्रीम कोर्ट गंभीर, चुनाव आयोग और केंद्र को नोटिस
राजनीतिक पार्टियों के चुनावों से पहले मुफ्त में चीजें और सुविधाएं देने का वादा करके मतदाताओं को लुभाने को सुप्रीम कोर्ट ने एक गंभीर मुद्दा माना है। इससे संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और उनसे इस मुद्दे पर राय मांगी है। कोर्ट ने कहा कि वह इस संबंध में पहले भी चुनाव आयोग को निर्देश दे चुकी है, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
नियमित बजट से ज्यादा होता है मुफ्त उपहारों का बजट- सुप्रीम कोर्ट
याचिका पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमन्ना ने कहा, "मैं जानना चाहता हूं कि इसे कानूनन कैसे नियंत्रित किया जा सकता है। क्या ऐसा मौजूदा चुनावों के दौरान हो सकता है? ऐसा अगले चुनावों तक होना चाहिए। ये एक गंभीर मुद्दा है। मुफ्त उपहारों का बजट नियमित बजट से भी ज्यादा होता है।" उन्होंने कहा कि पार्टियां चुनाव जीतने के लिए अधिक से अधिक वादे करती हैं और इससे चुनाव बराबरी का मुकाबला नहीं रह जाता।
कोर्ट ने कहा- चुनाव आयोग को दिया था गाइडलाइंस बनाने का निर्देश
चुनाव आयोग को अपने पुुराने निर्देश का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसने आयोग से मुफ्त उपहारों के वादों को रोकने के लिए गाइडलाइंस बनाने को कहा था, लेकिन आयोग ने बस पार्टियों का विचार पूछने के लिए एक बैठक की। कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर भी सवाल खड़े करते हुए पूछा कि उसने याचिका में कुछ ही पार्टियों का जिक्र क्यों किया है। मामले में अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी।
याचिका में क्या कहा गया है?
मुफ्त उपहारों से संबंधिय यह याचिका अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दाखिल की है। उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि मुफ्त उपहारों के वादों को रिश्वत माना जाना चाहिए और इन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा देना चाहिए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से चुनाव आयोग को मुफ्त उपहारों का वादा करने वाली राजनीति पार्टियों के चुनाव चिन्ह जब्त करने और उनका पंजीकरण रद्द करने का निर्देश देने का अनुरोध भी किया है।
लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा और संविधान के खिलाफ हैं ऐसे वादे- याचिकाकर्ता
उपाध्याय ने याचिका में कहा है कि चुनाव के पहले मुफ्त उपहार की घोषणओं से मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित किया जाता है और ऐसे प्रलोभनों ने निष्पण चुनाव की जड़ों को हिलाकर रख दिया है। उन्होंने कहा कि ऐसे वादे न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं, बल्कि संविधान की आत्मा को भी चोट पहुंचाते हैं। उन्होंने मुफ्त उपहारों के वादों को संविधान के अनुच्छेद 14, 162, 266(3) और 282 का उल्लंघन बताया।
पंजाब का उदाहरण देकर उपाध्याय ने समझाई अपनी बात
अपनी याचिका में उदाहरण देते हुए उपाध्याय ने कहा है कि अगर आम आदमी पार्टी (AAP) पंजाब में सत्ता में आती है तो उसे अपने वादों को पूरा करने के लिए प्रति माह 12,000 करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी, वहीं अकाली दल को प्रति माह 25,000 करोड़ रुपये और कांग्रेस को 30,000 करोड़ रुपये की जरूरत होगी, जबकि राज्य का GST संग्रह मात्र 1,400 करोड़ रुपये है। उन्होंने अपनी याचिका में भाजपा का जिक्र नहीं किया है।