मध्यस्थता के जरिए अयोध्या विवाद सुलझाने पर सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपनी सुनवाई के दौरान मध्यस्थता के जरिए अयोध्या जमीन विवाद सुलझाने पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है। कोर्ट ने इस दौरान कहा कि वह जल्द से जल्द मामले को सुलझाना चाहते हैं। सुनवाई के दौरान मध्यस्थता के जरिए विवाद सुलझाने पर आम सहमति नहीं बनी। जहां मुस्लिम पक्ष के वकील ने कोर्ट के प्रस्ताव पर सहमति जताई, वहीं हिंदू पक्ष के वकील ने मध्यस्थता पर असहमति जताई।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने आज शाम 4 बजे तक सभी पक्षों से मध्यस्थता के लिए नाम देने को कहा है। इस दौरान कार्ट ने मध्यस्थता को अयोध्या विवाद सुलझाने का सबसे बेहतर तरीका बताया।
Supreme Court reserves order on the issue of referring Ram Janmabhoomi-Babri Masjid title dispute case to court appointed and monitored mediation for “permanent solution”. pic.twitter.com/JoC907Mgcm
— ANI (@ANI) March 6, 2019
रामलला विराजमान के वकील ने मध्यस्थता पर कहा, "राम के जन्म स्थान पर राम मंदिर बनाने पर कोई समझौता नहीं हो सकता। ऐसा हो सकता है कि मस्जिद के लिए अलग से जमीन दी जाए और निर्माण के लिए जन-सहयोग से धन इकट्ठा हो।" मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा, "मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता के लिए तैयार है और कोई भी समझौता सभी पक्षों के लिए बाध्य होना चाहिए।" उन्होंने कोर्ट से मध्यस्थता के पैमाने तय करने को कहा।
न्यायाधीश बोबडे ने कहा, "मध्यस्थता का विचार इसलिए आया क्योंकि यह केवल जमीन से जुड़ा विवाद नहीं है। यह भावनाओं और आस्था से भी जुड़ा हुआ है। इस दौरान उन्होंने कहा, "हम किसने आक्रमण किया, बाबर ने क्या किया, उस समय राजा कौन था, वहां मंदिर था या मस्जिद थी, यह नहीं बदल सकते।" उन्होंने कहा कि इतिहास पर में जो हुआ उस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है, हम केवल वर्तमान में जो है उसे बदल सकते हैं।
न्यायाधीश बोबडे ने कहा, "जिस दौरान मध्यस्थता चल रही हो, किसी भी पक्ष द्वारा गोपनीयता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। इसके बारे में मीडिया में कुछ नहीं कहा जाना चाहिए।" राजीव धवन ने सहमति जताते हुए कहा कि अगर कोई गोपनीयता का उल्लंघन करे तो यह इसे कोर्ट की अवमानना माना जाना चाहिए। न्यायाधीश बोबडे ने कहा, "हम इसके राजनीतिक प्रभाव को लेकर सचेत हैं। यह दिमाग, दिल और शांति से जुड़ा हुआ है।"
बेंच ने इस दौरान पूछा कि अगर वह मध्यस्थता के समर्थन में फैसला सुनाती है तो क्या उसे मीडिया को इस पर कोई खबर ना करने के लिए कहना चाहिए। न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा, "जब मध्यस्थता चल रही हो, तो इस पर कोई खबर नहीं होनी चाहिए। यह कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन मध्यस्थता के दौरान किसी पर कोई भी दबाव नहीं होना चाहिए।" मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने इस मामले में उनसे सहमति जताई।
न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि मध्यस्थता विवाद को सुलझाने और शांति बहाल का सबसे बेहतर रास्ता है। हालांकि उन्होंने यह सवाल भी किया कि जब मध्यस्थता को लेकर सभी पक्षों में सहमति ही नहीं है तो मध्यस्थता पर फैसला कैसे लिया जा सकता है। उन्होंने पूछा, "न्यायिक फैसले को मानना बाध्य होता है, लेकिन मध्यस्थता के जरिए हुए फैसले पर हम किसे बाध्य कर पाएंगे।" उन्होंने कहा कि यह दो पक्षों नहीं, बल्कि दो समुदायों का विवाद है।